Monday, 6 February 2017

एकांत


त्यागा सयास आत्मविस्मृति को;
जाग्रत किया अभिव्यक्ति को
हुये छिन्न भिन्न स्वप्न पुनः स्थापित;
हो उठी उत्फुल्लता जीवंत
संवेदनशील लगा तुम्हारा सामीप्य;
शब्दों में उत्पन्न हुआ तारत्म्य
सानिध्य में ना रही समस्याएं;
व्यक्त हुईं कलम से भावनायें
जानी जब तुम्हारी सहभागिता;
समाप्त हुई मन की आतुरता
मेरी चितवन में बसे हो तुम;
बन्धु,मित्र,प्रेमी सभी हो तुम
अदृश्य,अंतरंग,अतिप्रिय हो तुम;
हे एकांत! सर्वाधिक घनिष्ठ हो तुम।
                   मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: एकांत से अधिक प्रिय साथी कोई नहीं हो सकता,जब भी हताश या निराश हो अथवा कभी यूँ ही एकांत का रसावादन करके देखो ......
और जीवन का आनन्द लो😊😊

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