Monday, 31 October 2016

गोवर्धन पूजा का महत्व





गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है । यह दिवस यह सन्देश देता है कि हमारा जीवन प्रकृति की हर एक चीज पर निर्भर करता है । जैसे -पेड़ पौधो ,पशु पक्षी,नदी और पर्वत आदि इसलिए हमें उन सभी का धन्यवाद देना चाहिए । भारत देश में जलवायु संतुलन का विशेष कारण पर्वत मालायें एवं नदियां हैं । इस प्रकार यह दिन इन सभी प्राकृतिक धन सम्पति के प्रति हमारी भावना को व्यक्त करता है ।
      इस दिन विशेष रूप से गाय माता की पूजा का महत्व होता है । उनके दुध, धी
, छांछ, दही ,मक्खन यहाँ तक की गोबर एवम् मूत्र से भी मानव जाति का कल्याण हुआ है । ऐसे में गाय जो हिन्दू धर्म में गंगा नदी के तुल्य मानी जाती है , को इस दिन पूजा जाता है ।

     गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ

Sunday, 30 October 2016

शुभ दीपावली




आज के दिन प्रभु श्रीराम रावण का वध करने के पश्चात 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या वापस आये थे,उनके आगमन की ख़ुशी में सभी नगरवासियों ने दीप प्रज्जवलित कर उनका स्वागत किया था।तब से तम पर प्रकाश की विजय का ये पर्व मनाया जाता है ।आप सब के जीवन का तम भी प्रकाश में परिवर्तित हो जाये यही मंगलकामना है।
पर्व है पुरुषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का,
देहरी पर दीप एक जलता रहे,
अंधकार से युद्ध यह चलता रहे,

हारेगी हर बार अंधियारे की घोर-कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की स्वर्ण-लालिमा,
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ है,
कायम रहे इसका अर्थ, वरना व्यर्थ है,
आशीषों की मधुर छांव इसे दे दीजिए,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए!!

झिलमिल रोशनी में निवेदित अविरल शुभकामना
आस्था के आलोक में आदरयुक्त मंगल भावना!!!

इसी कामना के साथ

 🔆🔆 दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं🔆🔆

Saturday, 29 October 2016

नर्क चतुर्दर्शी का महत्व




   दीपावली पर्व महोत्सव के दूसरे दिन रूप चतुर्दर्शी की सभी मित्रों को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।

यह त्यौहार नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी या नर्का पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।

इसे यम चौदस भी कहा जाता है । शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है जैसे मंत्री समुदाय के बीच राजा। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीपावली और गोवर्धन पूजा, भाईदूज।

शास्त्रों में उल्लेख है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार की अर्द्घ रात्रि में देवी अंजनी के उदर से हनुमानजी जन्मे थे। देश के कई स्थानों में इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में भक्ति भाव से मनाते हैं ।

नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारात सजाई जाती है।
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।
दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे एक वर्ष का  समय और दे दें। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उपरोक्त कारणों से नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली के नाम से जाना जाता है। और इसके बाद क्रमशः दीपावली, गोधन पूजा और भाई दूज मनायी जाती है।
   सभी को रूप चौदस की अनन्त शुभकामनाएं

Friday, 28 October 2016

धनतेरस का महत्व

क्या महत्व है धनतेरस का
***** २८ अक्टूबर २०१६ ** जिस प्रकार देवी लक्ष्मी
सागर मंथन से उत्पन्न
हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत
कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी
लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी
कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और
लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली
दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही
दीपामालाएं सजने लगती हें।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन
ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि
को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी
जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा
कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर
प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने
की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के
अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन
(वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस
अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर
में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग
अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है।
अगर सम्भव न हो तो कोइ बर्तन खरिदे। इसके पीछे
यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का
प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में
संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को
सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है
वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है।
भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं
उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए
संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस
दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की
पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें।
प्रथा
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और
आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के
पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी
समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव
कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। |
ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई
तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन
होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को
प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत
दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज
दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े।
दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी
और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और
उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने
आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस
राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत
राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त
नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर
उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के
अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज
को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक
ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई
ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से
मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से
यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति
है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें
बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की
त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके
दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है
उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण
है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा
की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धन्वंतरि
धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और
चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए
चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही
महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक
कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से
पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते
समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता
क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि
वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा
का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन
का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक
बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते
समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप
सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि
के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर
सके।
एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न
किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है
क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा
कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर
दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी
अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के
अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता
के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम
देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि
की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और
सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का
कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का
सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें
दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी
लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।
सभी को धनतेरस की अनन्त शुभकामनाएं

Thursday, 27 October 2016

दीपावली की सफाई



दीपावली की सफ़ाई
सोचा छुड़ा लूँ मकड़ी के जाले
पोछूँ धूल नव पुरातन सामान से
जो है व्यर्थ त्याग दूँ
जो है प्रिय सहेज लूँ
प्रत्येक कोना खंगाल लिया
बर्ष भर में क्या क्या एकत्रित किया
झाड़ी धूल कुछ किताबो की तो
गिर गया एक सूखा हुआ पुष्प
उस कुसुम की मिटी हुई सुगंध
सुबासित कर गयी कई यादेँ
खोला पुराने बक्से को तो
खुल गए यादों के पिटारे कई
कितनी शुभकामनायें कितने पत्र
कितने पल संजोये है ये अपने भीतर
खो गयी उस खजाने में भूल सफाई
पढ़ते हुए आँखे नम हो आयीं
जीवंत हो गये भूले बिसरे क्षण
दूर नजदीक के कई आत्मीय नाते
अनायस मन में विचार आया रहेगी
 वंचित हमारी नयी पीढ़ी इस सौगात से
 उनके घर में नहीं होगी जगह पुराने बक्से की
सम्भवत पर्याप्त होगा जेब में धरा स्मार्ट फ़ोन
गत बर्षों की भाँति आज भी सोच रही हूँ
हमारे पूर्वजों ने क्या जान बूझ कर
इस परंपरा की नीवं थी रखी
जिससे दीपावली पर ना हो
केवल घर की ही सफ़ाई
अपितु उड़ जाये जमी धूल
पुरानी रूचियों,रिश्तों व यादों से भी.........
              मीनाक्षी मेहंदी

Wednesday, 26 October 2016

सलोनी की कहानी (3)- चूहादौड़ बनाम न.1 की हौड़



चूहा दौड़ बनाम न.वन

नवविवाहित सलोनी रिश्तेदारों से घिरी बैठी थी।चुहलबाजी चल रही थीं,उस साल ग्रह नक्षत्र इतने बुलंद थे कि सलोनी की ससुराल की जानपहचान उन्हीं दिनों में लगभग 20 शादियां हुईं थीं।सलोनी के देवर से किसी रिश्तेदार महिला ने मजाक में कहा सारी दुल्हनों में बताओ सबसे सुंदर दुल्हन कौन?
देवर ने चट कहा हमारी भाभी न.1,ये सुनते ही सलोनी का पति भुनभुनाने लगा तुम तो सभी शादियों में गये हो ना तुमने तो सबको देखा है,न.1 कह कर क्यों किसी को सर पर चढ़ा रहे हो।देवर का रुआंसा मुख देख़ सलोनी आहत मन और नम आँखों के साथ खिलखिलाते हुए बोली"अरे देवरजी मैं किसी चूहा दौड़ में शामिल नहीं हूँ मुझे दूर ही रखो ऐसे खिताबों से"।पल भर में ही माहौल पुनः हल्का फुल्का हो गया किन्तु क्या सलोनी का मन भी......

टिप्पणी: "कभी कभी यूँ भी हमने अपने मन को बहलाया है,जिन बातों को खुद ना समझे औरों को समझाया है"
औरों को समझाते समझाते सलोनी ये तो समझ ही गयी-"हँसो जीभर के जब भी गम मिले कोई विरासत में, भला रोने से भी कहीं मुश्किलें आसां होती हैं"।

Tuesday, 25 October 2016

सलोनी की कहानी (२)- सोने की सीढ़ी




"सोने की सीढ़ी"
सलोनी की दादी सास बोलीं आज बहुत अच्छा महूर्त है प्यारी बहुरिया आज तो मुझे सोने की सीढ़ी चढ़ाने की युक्ति कर ही ले।
लजाती सलोनी ने भी दादीजी का मान रखने की ठान ली।
रात को खूब परफ्यूम छिड़का माहौल को आनंदप्रद बनाने के लिये,पर दुसंयोग से एक खिड़की थोड़ी खुली रह गयी और सुगन्ध तिर गयी वायुमण्डल में।तुरन्त देवरों की नटखट आवाजें गूंजने लगी क्या हुआ भाभी?ससुरजी का मन्द स्मित देख सकुचाती सलोनी यही कह पाई "गलती से परफ्यूम बॉटल टूट गयी"। विनीत दनदनाते आये हर समय नुकसान के अलावा कुछ आता भी है तुम्हें? "एक्सपायरी डेट हो गयी थी" सलोनी यही कह पाई।भुनभुनाते हुए विनीत निद्रामग्न हो गये और सलोनी परफ्यूम बॉटल पकडे हुए दादीजी की सोने की सीढ़ी को सच कैसे करे सोचती सोने का प्रयास करती रही।

टिप्पणी: क्या कहें किससे कहें खामोश हैं खामोशियां,हर कदम पे आशियाँ पे खेलती हैं बिजलियाँ.....
कुछ बातें ना कही जा सकती हैं ना समझाई जा सकती हैं बस सलोनी की तरह भोगी ही जा सकती हैं,सलोनी एक ऐसा पात्र है जिसका पति उसे नहीं चाहता।क्यों?ये ना तो सलोनी जानती है ना कोई अन्य और सम्भवतः सलोनी का पति खुद भी नहीं....

Monday, 24 October 2016

सलोनी की कहानी (1)- गूलर के फल


कॉलेज प्रांगण में विशाल पेड़ के नीचे फ़ैले फलो को देख सलोनी ने मिली से पूछा ये क्या हैं?
अरे ये गूलर के फल हैं
सलोनी ने एक फल चख कहा,कितना फीका व बेस्वाद
हाँ,मिली ने कहा तभी तो कहावत है,"भूख में गूलर भी पकवान लगते हैं"
भगवान किसी को गूलर जैसी किस्मत ना दे सलोनी बड़बड़ाई।
और अब शादी के एक वर्ष पश्चात पति को गहरी निद्रा में मग्न देख बेआवाज़ सिसकती सलोनी सोच रही है"काश ऊपरवाले ने उसकी किस्मत गूलर फ़ल जैसी ही लिख दी होती "तो आज दुनिया उसे बाँझ कह कर तो ना पुकारती।
             
टिप्पणी: सबका अपना अपना सच,सबका अपना अपना यथार्थ......

Sunday, 23 October 2016

अहोई अष्टमी पर विशेष

अहोई अष्टमी सन्तान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला व्रत।माँ बनने से किसी भी नारी को लगता है वो पूर्ण हो गयी,पर क्या माँ बनना ही जीवन का परम् लक्ष्य है,यदि कोई नारी किसी कारणवश माँ नही बन पाती तो उसे शुभ कार्यों से दूर रखना और कदम कदम पर तिरस्कृत करना उचित है।क्या केवल माँ बनना ही उसके नारीत्व का परिचायक है,उसके अंदर जो सुभार्या और संस्कारी बहू के लक्षण विधमान हैं उनका कोई मोल नहीं यदि वो माँ नहीं बन पाती है तो...
यदि कोई दिव्यांग है तो उसकी कमी को पुनः पुनः इंगित ना किया जाये यही सिखाया जाता है हमें बचपन से,तब ये शिक्षा देने वाली नारी स्वयं की गृहलक्ष्मी को क्यों औरों की निगाह में गिराती है बार बार एक कमी को सुना सुना कर।हो सकता है उसमें कोई कमी ना हो और वो तुम्हारे घर की इज़्ज़त ही बचा रही हो सब चुपचाप सुन और सहन करके ,उसकी इस भावना को ही समझ लो ।उस पर तुर्रा ये कि बाहर वालों से कहा जाता है हम तो कुछ नही कहते और कोई सास नन्द होती तो हर समय ताने ही मारती रहतीं,अरे और क्या ताने होते हैं...
हर नारी के अंदर स्वाभाविक रूप से ममता होती है वो अपने नारीत्व की पूर्णता चाहती है अतः वो तो वैसे ही दुःखी है उसे और कौंच कौंच कर उसकी पीढा बड़ा कर तुम क्यों अपना सम्मान खोते हो उसकी नज़रों में।
  एक लड़की जो अपना सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे घर को अपना घर समझ हिलमिल रहने आयी है,उसे खुद ही दूर कर रहे हो वो भी तिरस्कृत करके..
    ये कैसा दस्तूर है,कैसी इंसानियत है।
   कम से कम इंसानियत के नाते ही उसकी पीढ़ा को समझो और अच्छा व्यवहार करो ,अपना बड़प्पन बनाये रखो और संजोये रखो रिश्तों की गरिमा को,जिससे कल को यदि उपचार से उसकी" व्याधि" दूर हो जाये तो फिर वो अपने हृदय से आपसे दूर ना हो जाये।कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता यदि कोई नारी भी पूर्ण नहीं है तो उसे स्वीकार करो ....यही रिश्तों को बचाने का सही तरीका है।
    अहोई अष्टमी की शुभकामनाएं सभी मातृ शक्ति को बन्दन और जो इस सौभाग्य से वंचित हैं अहोई माता कथा की नायिका की तरह उसकी भी कोख़ खोलें...यही सुभेच्छा है।

Saturday, 22 October 2016

कोई बात भी लिखो ना.....

ख़त तो लिखा है कोई बात भी लिखो ना.....
सुबह और शाम के हालात भी लिखो ना.....
मुझसे मिलने से पहले जो वक्त गुजरा है
कुछ उस वक्त की बाबात भी लिखो ना.....
बचपन व लड़कपन की शरारतें
शौक क्या हैं जो तुम्हें है भाते
कुछ अपने बारे में अल्फ़ाज भी लिखो ना.....
कौन है तुम्हारे मन के सबसे पास
किससे कहते हो मन की आस
कुछ रिश्ते नातो का हाल भी लिखो ना......
तुम्हारे ख़्बाबो में जो बसी थी मूरत
क्या मिलती है उससे मेरी सूरत
कुछ दिल के जज़्बात भी लिखो ना.....
ख़त तो लिखा है.....

टिप्पणी: सगाई से शादी के मध्य के ख़त ,कितना कुछ लिखा जाता है ,कितना कुछ जानने की आतुरता होती है।ऐसे में पिया का ख़त आता है सिर्फ़ कुशलक्षेम पूछता हुआ तो प्रिया गुनगुनाने लगती है ......कुछ ऐसी ही पंक्तियाँ.....

Friday, 21 October 2016

बेतुका प्रश्न


*_बेतुका प्रश्न_*

ये क्या बेतुका प्रश्न पूछ लिया मेरे भाई

मैंने क्यों की एक इंजिनियर से कुड़माई

सबसे सुपात्र वर हमारे समाज में डॉक्टर इंजिनियर

ही होते हैं,देनी चाहिए मुझे बधाई

मैं हूँ साहित्य अभिरुचि की कल्पनाशील नारी

और उसने की है उच्च तकनीक कौशल की पढ़ाई

मैं सोचती हूँ दिल से और वो दिमाग से

तो क्या रब ने बेमेल जोड़ी हमारी है बनाई

किससे करती शादी?किसी कवि या कथाकार से

सुना है किसी ने कविता कहानी की रोटी खाई

हमारे देश मेँ माता पिता ऐसे ही विवाह तय करते हैँ

यदि पसंद करेंगे किसी लेखक को होगी जगहंसाई

आप भी जब बिटिया का वर देखने जाओगे

तो चाहोगे ऐसे ही वर से जाएँ वो ब्याहाई

प्रेम विवाह का प्रसंग अलग हो जाता है

पारंपरिक विवाह मेँ क्या वर भी पाता है वधु मनचाही

प्रमुख होते है वधु के शारीरिक मापदण्ड और वर की कमाई

वैवाहिक विज्ञापनों पर कभी क्या नज़र नहीं दौड़ाई

तब भी ये बात आपके मन मेँ कहाँ से आई

ये क्या बेतुका प्रश्न पूछ लिया मेरे भाई

किन्तु यदि निरपेक्ष भाव से देखा जाये

तो नीली छतरी वाले ने की है

सोची समझी चतुराई

दायें हाथ से बायां हाथ ही थाम कर चल सकते है

अतः विपरीत विचारों मेँ ही साथ निभाने की शक्ति जाती है पाई

जब जब दिल के घोड़े भागना चाहते है सरपट

तब तब दिमाग ने उस पर है लगाम लगाई

जब जब दिमाग हो जाता दुनियादारी से जूझ जूझ नीरस

तब तब दिल ने उसे बहलाया और प्रेम सुधा है बरसाई।
              *_मीनाक्षी मेहंदी_*


Thursday, 20 October 2016

मेरी कल की पोस्ट का तात्पर्य यही था कि ऐसा ना हो उपभोगता वाद से बचो प्यारी सखियों...

Wednesday, 19 October 2016


करवा चौथ की अनन्त शुभकामनायें

ये पर्व है आस्था का,अटूट समर्पण का,पति की दीर्घायु के लिए पत्नी निर्जल रह करती है मंगलकामनाएं।
सदियों से ये व्रत उपवास रखे जा रहे हैं जो बढ़ाते हैं आपसी प्रेम और सौहार्द को ।मेरी माँ पहनती थी करवाचौथ पर हर साल अपने विवाह की लाल लाल साड़ी जिस पर सजे होते थे सुनहरे सितारे,जब चाँद को पूजने निकलती थीं तो पापा रेकॉर्ड लगा देते थे "चाँद जैसे मुखड़े पर बिंदिया सितारा" तब मम्मी की मन्द मन्द मुस्कान और पापा की अँखियों में छलकती उनके रूप की सराहना अलग ही समां बांध देती थी।
    वो निश्छल प्रेम जिससे अभिभूत रहते थे जीवनसाथी। कोई नई साडी की मांग नहीं ,कोई ब्यूटी पार्लर की लंबी चौड़ी भीड़ नहीं,ना कोई विशेष सौन्दर्य प्रसाधन,बस लाल बिंदी,गाढ़ा सिंदूर और हल्की सी लिपस्टिक,बहुत हुआ तो पहन आती थीं मनिहार से कलाई भर कर लाल लाल चूड़ियां।
 मैं भी विवाह पश्चात मनाती रही ऐसे ही ये पर्व किन्तु देखते ही देखते हावी होने लगा हमारे व्रत त्योहारों पर बाज़ारवाद,जिसे बढ़ावा देने में अग्रणी रहे सास बहू सीरियल। उपवास का पर्व बन गया लालसाओं का पर्व  , जरूर लेने  है नये वस्त्र, करना है नया श्रृंगार ,जुटने लगी बाज़ारों में भीड़ और फलने फूलने लगा बाजार वाद।
कुछ महिलायों का व्यवहार तो ऐसा होता है कि ये पति की दीर्घायु का पर्व ना होकर हो उनकी सभी डिमांड पूरी करने का पर्व।
अरे सखियों ,व्रत उपवास का अर्थ है संयम,यदि अपनी भूख प्यास पर आत्मनियंत्रण रख सकती हो तो उपभोक्तावाद पर भी नियंत्रण रखो ,कई अवसर आते हैं खरीदारी के विशेषतौर पर विवाह उत्सव तो होते ही हैं शॉपिंग के लिए।
तब इस दिन को मुक्त कर दो अपनी ऊलजलूल मांगों से,मनाओ इसे निश्छल व निस्वार्थ रूप में।
देखना नया हर्ष उल्लास उठेगा मन में ,और पति के प्रति प्रेम जताने के लिए कोई आवश्यकता नहीं अनुभव होगी भौतिक वस्तुयों की।
      "सभी को इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं"

Tuesday, 18 October 2016

online friendship

Online friendship
लड़की : हम आपके हैं कौन
लड़का : मित्र सदा के लिए
लड़की : सिर्फ़ मित्र
लड़का : हाँ सदा तुम्हारा सहयोगी
लड़की : as u wish
तुमको ये हो न हो मुझको यकीं है मुझे प्यार तुमसे नहीं है नहीं है
लड़की : हम आपके हैं कौन
लड़का : lovers forever
लड़की : सच
लड़का : मुच यानी सचमुच
लड़की : as u wish
ले तो आये हो हमें सपनों के गाँव में प्यार की छाँव में बैठाय रखना सजना ओ सजना
लड़की : हम आपके हैं कौन
लड़का : time pass
लड़की : as u wish
पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले झूठा ही सही
लड़की : हम आपके हैं कौन
लड़का .........
लड़की : मुझसे बोर हो गए?
लड़का .........
लड़की : कोई और मिल गयी?
लड़का .........
लड़की : कुछ तो कहो..
लड़का .........
लड़की : as u wish
लड़का .........
लड़की .........
दूरी ना रहे कोई आज इतना करीब आओ
मैं तुम........
ये गाना जब हम सुनते हैं तो गायक की आवाज़,स्वर,शब्द संयोजन,संगीत आदि आकर्षित करते हैं हमारे मन में सराहना का भाव आता है...
यही गाना कोई पति अपनी पत्नि के लिये गाता है तो मन में मधुर मिलन का भाव आता है
यही गाना कोई प्रेमी गाता है तो रुमानियत और छेड़छाड़ भरी शरारत का भाव मन में आता है
यही गाना यदि कोई online friend गाता है तो "बच्चू अभी टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस नहीं हुई है physical distance तो रहेंगें" कहते हुए हास्य पुट जगाता है
यही गीत किसी के द्वारा गाये जाने पर अश्लील भी लग सकता है
गीत वही है ,सुनने वाला भी वही है,बस गाने वाले के संग हमारी जैसी भावना है वैसे ही मन के भाव परिवर्तित हो जाते हैं....
इसी प्रकार सभी के जीवन में कठिनाइयां और अवसर दोनों आते है पर हर व्यक्ति अपनी सोच के अनुसार उसका सामना और सदुपयोग् करता है , जैसा जिसका दृष्टिकोण होता है वैसा ही उसका भविष्य निर्माण होता है।

Sunday, 16 October 2016

बेनाम रिश्ते

बेनाम रिश्तों के नाम नहीं होते
पर वो जीवन की साँस होते हैं
बेनाम रिश्ते बताये नहीं जाते
पर उनके किस्से तमाम होते हैं
बेनाम रिश्ते समझे नहीं जाते
पर वो हमें हरदम समझते हैं
बेनाम रिश्ते गाये नहीं जाते
पर वो दिल का साज होते हैं
बेनाम रिश्ते ज़माना नहीं समझता
पर वो हमें महकाते हैं
बेनाम रिश्ते अपनाये नहीं जाते
पर वो सबसे अपने लगते हैं
बेनाम रिश्ते तोड़े नहीं जाते
पर वो ही हमें सिसकाते हैं
बेनाम रिश्ते छोड़े नहीं जाते
पर उम्र भर तड़फ़ाते हैं
बेनाम रिश्ते बाँधते नहीं कभी
पर बिन बंधन बंध जाते हैं
बेनाम रिश्ते ही क्यों मेहँदी
कसक सबसे गहरी दे जाते हैं।

Saturday, 15 October 2016

काश......

जिंदगी होती कोई किताब,पुनः पुनः पढ़ लिया जाता
जिंदगी होती कोई फिल्म,बार बार देख लिया जाता
जिंदगी होती कोई एल्बम,पलट पलट निहार लिया जाता
जिंदगी होती कोई समय यंत्र,संग संग बीता वक़्त लौट आता
जिंदगी होती कोई कागज़,मिटा मिटा स्याही लिख लिया जाता
जिंदगी के चलचित्र में बसे दोस्तों को ,नजदीक अति नजदीक बुला लिया जाता।
काश...............काश..............काश...............
                                 मीनाक्षी मेहंदी

Monday, 10 October 2016

राम नवमी की अनन्त शुभकामनायें

राम जनम
अयोध्या आनन्दित
धर्म स्थापना

हर्षित जन
प्रभु अवतरित
यज्ञ सुफ़ल

राम व भ्राता
दशरथ आँगन
हर्ष अपार

तीनों रानियाँ
दशरथ के संग
लेतीं बलैयां
    मीनाक्षी मेहंदी

Sunday, 9 October 2016

नन्नी देवियाँ
करती रुमझुम
पधारीं गृह

Saturday, 8 October 2016

" सोने की बेबीडॉल "
मुझे नहीं बनना ,सोना तो है निर्जीव,निष्क्रिय, और केवल देखने मात्र में सुंदर
जीवन की सुंदरता तो है हँसने,खिलखिलाने,गुनगुनाने,चलने,नाचने, रोने और करुण होने में ....
जीवंत होने में ही सुख है अतः मैं बनना चाहूंगी
"पंचतत्व की बेबीडॉल"
मीनाक्षी मेहंदी

टिप्पणी: जीवंत होना ही सौन्दर्य है, सोना तो निर्जीव है।

Friday, 7 October 2016

"जानना चाहते हो कि मैं क्यों लिखती हूँ
तुम्हारी ख़ामोशी की तरह खाली पन्ने भी खलते हैं"
📃✍
                   मीनाक्षी मेहंदी

Thursday, 6 October 2016

जाने कहाँ गए वो दिन जब मम्मी कहती थीं आज दुनिया का आठवाँ अजूबा हुआ है,पोस्टमैन आया और मीनाक्षी के नाम का पत्र लेकर नहीं आया...

टिप्पणी: पत्रों का जादू कुछ अलग ही होता था,तब ना हर हाथ में फ़ोन होता था ना तुरत फुरत सन्देश भेजने की प्रक्रिया।हालांकि नयी तकनीकों की सुविधा अलग ही है दूरियां का एहसास पल में छूमन्तर हो जाता है ,अपने प्रियजनों की जब चाहो तब देख लो,उनकी पल पल की ख़बर ,उनके सन्देश,उनका चेहरा सब ....
लेकिन पत्रों का संसार अलग ही था सबसे पहले भेजने के बाद पता नही मिला होगा या नही कब पहुचेगा फिर ज़बाब आने का इंतजार,जबाब आने बाद जल्दी से पढ़ कर पुनः उत्तर देने की शीघ्रता।जब मन करे उन सहेज कर रखे गये पत्रों को पुनः पुनः पढ़ना।जो बहुत दूर चले गए हैं उनके आशीर्वाद और प्रेम को उनकी हस्तलिपि के संग महसूस करना ये अलग ही अहसास होता है।कई पत्र एक साथ आने पर हस्तलिपि से अंदाज लगाना कि कौन सा पत्र किसका है? सबसे पहले किसे पढ़ें और सबसे बाद में किसे......
 वो मधुर अहसास वो ही समझ सकता है जिसने उन पलों को जिया होगा,आज की दुनिया भी बहुत सुखद हे इसी के द्वारा तो अपने मन के विचार आप सबके सामने प्रस्तुत कर पा रही हूँ।
 परन्तु कभी कभी बेहद याद आते हैं वो बीते हुए पल और वो पत्रों का हसीं संसार।

Wednesday, 5 October 2016

अलौकिक प्रेम
 श्रीकृष्ण के थीं सोलह हजार रानी
राधा को पत्नी बनाया नहीं
जितनी भी अमर प्रेम कहानियाँ हैं
वो पूर्ण नहीं, हैं सदैव अधूरी ही
हीर रान्झा,लैला मजनूं,सोहनी महिवाल आदि
मिलन होता तो रहते इतने प्रसिद्ध
संभवत यही कारण रोकता रहा है
कहने से अपने हृदय की जिद
लगता है यदि मिल जायेंगे हम तुम
समाप्त हो जायेगा तिलिस्म ख्यालों का
रंगीन अक्स छूने पर अहसास होंगे
अदृशय जैसे बुलबुला पानी का
आभासी संसार होता है अति सुंदर
हरदम ही वास्तविक जगत से
मिलन का भ्रम बना रहे सदा
अभिभूत रहूं छूकर तुम्हें हृदय से......

Tuesday, 4 October 2016

(आभास - तुम्हारे होने का)
मैं मुग्ध बाबरी सी निहारती रह गयी
प्रथम बार जब देखा था तुम्हें झरोखे से
चाहा तुम दिखो नित्य दिन बार बार मुझे
सच्चे हृदय की पुकार सुनते हैं ईश्वर भी
खुले आँगन में थाली भर जल रख दिया
और दिखा दिया मेरा चन्द्रमा पास में मेरे
किलकारियां मार प्रसन्न थी पा मनचाहा खिलौना
यकायक आई अमावस लुप्त हो गए तुम
तब हुआ प्रतीत ये था केवल आभास-तुम्हारे होने का
अगले दिन पुनः उतरे तुम थाली में महीन फ़ाँक से
अब सजग हूँ कि बस निहारना ही है तुम्हें
छूते ही होगे विलुप्त जल की हिलोरों में
समझ गयी हूँ चन्द्रमा नहीं मिलता किसी को
ऐसे ही तुम ना हो पास ना ही साथ मेरे
पर मुदित हूँ तुम्हारे प्रतिबिंब को निहार कर ही
और बतियाती तुम्हारे प्रतिबिंब से निरंतर।
               मीनाक्षी मेहँदी


टिप्पणी: एक प्रसिद्ध चलचित्र का प्रसिद्ध संवाद है "किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो सारी क़ायनात तुम्हें उससे मिलाने में लग जाती है" ऐसा असल में होता भी है अगर हम प्रबलता से कुछ पाना चाहे तो बृह्मांडिय शक्तियां सक्रिय होकर हमें उससे मिलाने में जुट जाती हैं, किंतु हमारी प्रार्थना या चाहत में इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वो हमारे आभामण्डल (ora) को भेद कर पहुँच सके सर्वशक्तिमान तक..........
शेष उस शक्ति पर निर्भर है कि वो हमें कब किस रूप में हमारा मनचाहा हम तक पहुँचाये।

Monday, 3 October 2016

परिवर्तन

मंद पवन के झोंको समान

मैं बहती एकदम चुपचाप

किसी को स्पर्श कर जाती

अनूठा अहसास दे जाती

प्राप्त नहीं करती थी कुछ

ज्ञात नहीं करती थी कुछ

अनायास संपर्क पा तुम्हारा

वेगमयी हुआ मन मेरा

मुझमें भर आई प्रचण्डता

प्रस्फुटित हुई जीवन्तता

आया विचारों का झंझावत

और मैं एक आँधी बन गयी

सब कुछ उड़ाने की जिद मेँ

अपना अस्तित्व ही भूल गयी

मीनाक्षी मेहँदी

टिप्पणी: परिवर्तन संसार का नियम है;कभी कभी किसी घटना या किसी व्यक्ति से हम इतना प्रभावित होते हैं कि हमारा समूचा व्यक्तित्व ही बदल जाता है।
ये परिवर्तन सकारात्मक भी हो सकते हैं नकारात्मक भी।

Sunday, 2 October 2016

you are my peppermint

I found three types of chatters on social media
Some are like candy,
The sweetness remains as long as they talk
Some are like peppermint, they freshen up our whole day only with a small chat
Some are like chewing gum, sweetness is short-lived and after that we can neither swallow nor spit it.

Love at first sight

“प्रथम दृशित कोई चेहरा 
मुग्ध कर सकता इतना
सोये स्वप्न को जगाता
कामनाओं को भड़काता
प्रज्जवलित प्रेम को करता
श्वांसो को गर्म सुलगाता
मस्तिष्क को कर नियंत्रित
ह्रदय को तीव्र धड़काता
प्रति घड़ी व प्रति क्षण उसे ही
निहारने की चाह जगाता
सुधबुध बिसार अपनी उसके
ख़्यालों में ही खो जाता
हाँ हाँ यही दीवानापन तो
प्रथम दॄष्टि प्रेम कहलाता”
मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी:प्रेम ना तो किया जाता है ना होता है ये तो अनायास किसी घटना की तरह घटित हो जाता है जैसे हम सड़क पर चलते हुए सभी यातायात के नियम मान रहे हों एवं हमारे सामने बड़ा सा वाहन आ जाये, वो हमें दिखते हुए भी दिखाई ना दे और हम उससे टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाएं, कुछ- कुछ ऐसा ही प्रेम में होता है।उसके पश्चात जिस प्रकार कोकुन से तितली निकल आती है रूपांतरित होकर,ऐसे ही प्रेम भी व्यक्ति को बदल देता है या यूँ भी कह सकते हैं उनके अंदर का मूल स्वरूप जो दब चुका होता है समय व परिस्थतियों के कारण वो प्रस्फुठित होने लगता है और वो जीने लगता है,समझने लगता है स्वयं को पहले से अधिक……..

प्रथम दृष्टि प्रेम

जब तुम पर पड़ी प्रथम द्रष्टि
कैसे बताऊँ दशा अपनी
मुग्ध हो निहारती रह गयी
बिसरा गयी सुध बुध अपनी
साँस सुलगने लगी
जागृत हुई प्रेमकामना अपनी
मस्तिष्क पर नियंत्रण न रहा
तीव्रतर हुई धड़कन अपनी
निहारती रहूँ तुम्हे यूँ ही
बनी यही चाह अपनी
हृदय उद्देलित हुआ प्रथम ही
प्रथम ही जगी इच्छाएं अपनी
सभी गीत और ग़जल लगे यूँ
लिखे गए हालत पर अपनी
प्रथम दॄष्टि प्रेम समझ गयी
समर्पित हुई तुम्हें न रही अपनी l

मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: प्रेम को जितने भी शब्दों और कल्पनाओं से अच्छादित करने का प्रयत्न किया जाये ,यह पूर्ण नहीं हो पाता है,जो इसके अहसास की स्निग्ध छाया का रसपान करता है ,वही इसकी विशालता को समझ सकता है।

जब ताली एक हाथ से नहीं बजती तो एक तरफ़ा प्यार क्यों हो जाता है और चलता रहता है.......



🙏🏼आप सभी को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी और लालबहादुर शास्त्री जी के जन्म दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएँ।
दो महान विभूतियाँ - एक ही दिन जन्मदिन
देश के लिये इन दोनों के योगदान के बारे में वर्णन
की आवश्यकता नही है ,बहुत कुछ जाना और पढ़ा होगा इनके विषय में।
दोनों में कुछ समानताएं और कुछ विभिन्नताएं और इन दोनों में ही क्यों हर किसी में कुछ समानता और कुछ विषमता होती है।
किन्तु हर व्यक्ति के भीतर कुछ पृथक होता है,ये अलग ही उसे विलक्षण बनाता है।जो अपनी इस विलक्षणता को समझ कर उसी के अनुरूप कार्य करता है,वही महान विभूतियों की श्रेणी में पूजा जाता है।
 हम महान विभूतियों को पूजने क्यों लगते है?वो भी तो इंसान ही हैं हमारी तरह, परन्तु उन्होनें अपनी शक्तियों को पहचाना, संघर्ष किया इस समाज के उत्थान के लिए,कुछ पृथक करने का जज़्बा,अपने से अधिक दूसरों के बारे में सोचा।
तो क्यों ना हम भी इन महान व्यक्तियों से प्रेरणा लें और प्रयास करें अपने भीतर समाहित शक्ति को पहचानने का एवं उसे समाज व देशहित में लगाने का।
किसी भी महापुरुष को मानने की जगह यदि हम महापुरुष की मानने लगे तो हमारे देखते ही देखते बदल जायेगा ये समाज ये विश्व और बहने लगेगा राग,बंधुत्व और एकता का।
आज इन महान विभूतियों के जन्मदिवस पर मेरी यही कामना है कि राग द्वेष से ऊपर उठ कर सभी में विश्व बंधुत्व की भावना का संचार हो सभी का कल्याण हो।


Saturday, 1 October 2016

जय माता दी
"शारदीय नवरात्र की सभी को शुभकामनायें"
माँ शक्ति,भक्ति,यश,वैभव,सौभाग्य व स्वास्थ
प्रदान करें।