Tuesday, 19 December 2017

सुन्दरता तो देखने वाले की दृष्टि में होती है।(४)

   " सुन्दरता तो देखने वाले की दृष्टि में होती है।"
   गर्भकाल में माँ को दही ही सर्वाधिक रुचता था सम्भवतः उसी के प्रभाव से जब सर्दी में लोहड़ी के सुअवसर पर मेहंदी हुई तो उसकी खाल बहुत सिकुड़ी हुई, नाक तोते जैसी थी उसकी मौसी ने कहा जीजी बिलकुल सुंदर लड़की नहीं हुई है, माता पिता दोनों रूपवान ,भाई भी खूब सुंदर ये कैसी है।लेकिन एक महीने की देखभाल व मालिश करने से मेहंदी में वो निखार आया कि नामकरण के दिवस किसी को यकीन ही नहीं आया ये वही कन्या है,उसकी नानी ने तो परिहास भी कर दिया कि अस्पताल में किसी से बच्ची बदल दी है....हा हा हा।
   पिता और नानी में बहस होती किसकी बेटी अधिक सुंदर है ,नानी कहती मेरी और पिता कहते मेरी इस बहस का कोई नतीजा कभी नहीं निकला क्योंकि सुंदरता तो देखने वाले की आँखों में होती है एवं अपनी संतान तो सभी को प्रिय होती है।
    पड़ोस में रहने वाले डॉ खान की अम्मीजान मेहंदी को जब भी गोद लेतीं उसकी बलैया लेती और कहतीं ये तो इतनी सुंदर है सुहागरात को जब इसका शौहर घूँघट उठायेगा तो ख़ुशी से बेहोश हो जायेगा।
   इन्हीं सब प्रशंसा तथा लाड़ प्यार के साथ मेहंदी बड़ी होती रही।

Sunday, 17 December 2017

सन्तोषी माँ की कृपा(३)

वैवाहिक युगल को शीघ्र ही दो पुत्र प्राप्त हुये,पिता की इच्छा हुई एक कन्या भी हो,तभी उन दिनों सन्तोषी माँ के व्रत और पूजा की नई नई धूम मची हुई थी,डॉ साहब को भगवान पर अधिक विश्वास तो नहीं था किंतु फिर भी उन्होनें माँगा कि यदि अबके मेरे घर कन्या हुई तो मैं मैया की शक्ति मान जाऊँगा,मैया मेरे घर कन्या रूप में जन्म लो पता नहीं ये विधि का विधान था या सच्चे ह्रदय से की गई प्रार्थना की शक्ति,इस बार कन्या का ही जन्म हुआ। हर्षोउल्लास से सब भर उठे विशेषकर पिता तो फूले ना समाते थे,बड़े ही लाड़ प्यार से कन्या का पालन होने लगा।कन्या बेहद सुंदर और सौम्य स्वभाव की थी,कभी किसी बात के लिए तंग ना करने वाली।सम्भवतः सन्तोषी माँ के आशीर्वाद से उत्पन्न होने के कारण ही उसमें संतोष गुण जन्म से ही विधमान था।मेहंदी का सौभाग्य था कि उसने ऐसे घर में जन्म लिया जहाँ कन्या की चाह थी ।

Saturday, 16 December 2017

गगन का चंद्रमा बना धरा का चंद्रमा(२)

"गगन का चाँद बना धरा का चन्द्रमा"
होलिका दहन का दिन, गगन में पूर्णिमा का चन्द्रमा पूरे जोरों से चमक बिखेरता हुआ, तीन पुत्रों के पश्चात पुत्री होने की सुचना से प्रफुल्लित पिता ने चंद्रमा को देखते हुए ही कहा कि इसका नाम शशि रखेंगें, इसका जीवन भी चंद्रमा की भांति उज्ज्वल रहेगा।अत्यंत सम्पन्न परिवार में राजकुमारी जैसा समय व्यतीत होता रहा उस चंचल शोख लड़की का।पलक झपकते ही कब वो बड़ी हो गयी ये आभास पिता को तब हुआ जब किसी ने एक डॉ लड़के का नाम वर हेतु सुझाया।दोनों घरों में आर्थिक विषमता थी पर लालाजी को सुंदर,सुशील व स्वावलंबी वर भा गया।एक शुभ महूर्त में दोनों परिणय सूत्र में बंध गए।बधू के समस्त परिचित मना करने लालाजी के पास आये कि लड़की को कुएं में धकेल रहे हो किन्तु उनकी पारखी नज़रों ने लड़के के गुणों को परख लिया था। वर के समस्त परिचित विवाह पश्चात बधू की मुंहदिखाई ये सोच कर करने आये कि अवश्य लड़की में कोई कमी होगी तभी विपिन्न घर में ब्याह दिया है परंतु सर्वगुण सम्पन्न चाँद सी दुल्हन देख सभी दांतों तले उंगली दबाते रह गये। जोड़ियाँ स्वर्ग में तय हो जाती हैं इनकी जोड़ी को देख यही प्रतीत होता था,प्रभु की असीम कृपा से दोनों अत्यधिक प्रसन्न थे।

Friday, 15 December 2017

जो मान लिया वो ठान लिया (१)

"जो मान लिया वो ठान लिया"
  निम्न मध्यम परिवार का लड़का ,पढ़ने में कुशाग्र,व्यवहारिक बुद्धि में प्रखर,मन में चिकित्सक बनने की प्रबल कामना।परिवारजनों ने नाम रखा नरेंद्र किन्तु नाम ना भाने पर बदल कर नरेश कर लिया(  अर्थ तो दोनों नामों का राजा ही है किंतु इससे बालक जमाने की बात ज्यूँ की तयूं नहीं अपनाएगा अपने दिल की सुनेगा इस प्रवर्ति का परिचय मिलता है) एक दिन ज्योतिष ने यूँ ही हस्त रेखाएं बांच कर कहा तुम कभी डॉ. नहीं बन सकते(सम्भवतः आर्थिक पृष्ठभूमि देख) बस उसी उसी दिन से ठान लिया कि डॉ ही बनना है जुट गये लगन से।20 ₹ माह की ट्यूशन पढ़ा पढ़ा कर इंटर की पढ़ाई की उसके बाद मेडिकल में चयन हो गया किन्तु पिताजी ने कह दिया कि वो कोई आर्थिक सहयोग नहीं करेंगें, स्नातक डिग्री ली किन्तु मन से चिकित्सक बनने की आस ना निकली पुनः प्रवेश परीक्षा में बैठे व लखनऊ के प्रतिशिष्ठ किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज हेतु चयनित हुये तब दादाजी संबल बने और आर्थिक सहयोग करने का वादा किया तथा वो लड़का आगे चलकर एक बेहतरीन चिकित्सक बना।किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिये शिद्दत से प्रयत्न किये जायें तो कोई ना कोई राह अवशय निकलती है तो उन्होनें डॉ बनने की इच्छा को मान लिया तो यही बनना है ये ठान लिया।यदि लगन सच्ची हो तो राहें निकल ही आती हैं।

Saturday, 23 September 2017

माँ के रूप व उनका महत्व

*दस महाविद्या-*🌹

देवी दुर्गा के दस रूप, जानिए किसकी की साधना से मिलते है क्या लाभ.....

दस महाविद्या को देवी दुर्गा के दस रूप माने जाते हैं। कहा जाता है कि इन महाविद्याओं की शक्तियां ही पूरे संसार को चलाती हैं। देवी दुर्गा के ये सभी स्वरूप तंत्र साधना में बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण माने गए हैं। आइए जानते हैं मान्यता के अनुसार किस महाविद्या की पूजा तंत्र में किस इच्छा पूर्ति के लिए की जाती है।

*देवी काली-*🌹
माना जाता है माँ ने ये काली रूप दैत्यों के संहार के लिए लिया था। जीवन की हर परेशानी व दुःख दूर करने के लिए इनकी आराधना की जाती है।

*देवी तारा-*🌹
सौंदर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग के साथ ही. मोक्ष देने वाली मानी जाती है।

*ललिता माँ-*🌹
ललिता लाल वस्त्र पहनकर कमल पर बैठी हैं। इनकी पूजा समृद्धि व यश प्राप्ति के लिए की जाती है।

*माता भुवनेश्वरी-*🌹
माता भुवनेश्वरी ऐश्वर्य की स्वामिनी हैं। देवी देवताओं की आराधना में इन्हें विशेष शक्ति दायक माना जाता हैं। ये समस्त सुखों और सिद्धियों को देने वाली हैं।

*त्रिपुर भैरवी-*🌹
मां त्रिपुर भैरवी तमोगुण और रजोगुण की देवी हैं। इनकी आराधना विशेष विपत्तियों को शांत करने और सुख पाने के लिए की जाती है।

*छिन्नमस्तिका देवी-*🌹
मां छिन्नमस्तिका की उपासना से भौतिक वैभव की प्राप्ति, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएं मिलती हैं।

*धूमावती देवी-*🌹
धूमावती देवी का स्वरुप बड़ा मलिन और भयंकर है। दरिद्रता नाश के लिए, तंत्र मंत्र, जादू टोना, बुरी नज़र, हर तरह के भय से मुक्ति के लिए मां धूमावती की साधना की जाती है।

*मां बगलामुखी-*🌹
देवी बगलामुखी शत्रु को खत्म करने वाली देवी हैं। ये अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनकी बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।

*देवी मातंगी-*🌹
गृहस्थ सुख, शत्रुओं का नाश, विलास, अपार सम्पदा, वाक सिद्धि। कुंडली जागरण, आपार सिद्धियां, काल ज्ञान, इष्ट दर्शन आदि के लिए मातंगी देवी की साधना की जाती है।

*मां कमला-*🌹
मां कमला धन सम्पदा की अधिष्ठात्री देवी हैं, भौतिक सुख की इच्छा रखने वालों के लिए इनकी आराधना सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।

*जय माता दी*...

Wednesday, 30 August 2017

तुम्हारी दृष्टि

                  " तुम्हारी दृष्टि "
कहते हो समय की एक सीमा निर्धारित होती है
सम्भवतः सभी की एक सीमा निश्चित होती है
ये बात तुम अपनी दृष्टि को क्यों नहीं समझाते हो
जो कि प्रत्येक बन्धन से मुक्त हो झाँक लेती है सब
बांचती है पत्तों,भोजपत्रों,पाषाण व पुष्पों की भाषा
धरा,निर्झर,पादप,जीव-जंतु तथा बह्मांड की भाषा
लिखे हुये पृष्ठों के मध्य की श्वेत रिक्तियों की भाषा
नेत्र,मुख,भाव भंगिमा,देह व मौन की समस्त भाषा
कही अनकही एवं सुनी अनसुनी जान लेते हर भाषा

मेरी अस्थिरता, उत्कंठा व चंचलता को परखने वाले
दिव्य चक्षु कहाँ से प्राप्त कर लिये हैं तुमने प्रियवर
गहरे तक वेधकर देखने वाली अँखियों को एकदिन
तंग आकर ढक दिया मैंने रेशमी आवरण बांध कर
स्मरण हो आयी अल्पव्यस्कता में खेले जाने वाली
आँख मिचौली,अब कैसे पहचानोगे मुझे भीतर तक
तुम्हारी आँखों से ओझल हो कर मुदित हुई ही थी !
परन्तु ये क्या,पढ़ लिया लिया तुमने मुझे पुनः संपूर्ण
टटोल टटोल कर ठीक किसी ब्रेललिपि की ही भाँति....

                            मीनाक्षी मेहंदी

Monday, 10 July 2017

पुनर्जीवित

पुनर्जीवित
मचलती तो थी प्रत्येक वर्ष सावन की रिमझिम बौछारों में
किन्तु ये शीतलता,ये सौंधी सुगन्ध,ये इन्द्रधनुष तब हुये....

जब हम तुम बादल हुये

ढूँढती तो थी गुमनाम खुशियां ज़िन्दगी के अंजान सफ़र में
किन्तु ये बेक़रार राहें,ये रंगीन नज़ारे,ये रोमांचक पड़ाव तब हुये .....

जब हम तुम हमराही हुये

तराशती तो थी स्वयं को मुग्धांत मूरत की सूरत में
किन्तु ये स्निग्ध आकृति,ये स्वच्छन्द मन,ये पुनर्जीवित तब हुये.....

जब हम तुम शिल्पकार हुये
   
              मीनाक्षी मेहंदी

Thursday, 22 June 2017

यदि प्यार हो तो दोतरफा हो वरना हो ही ना......

 ए दिल है मुश्किल फिल्म में रणबीर कपूर से कहा गया शाहरुख खान का एक डायलॉग है- ''एकतरफा प्यार की ताकत कुछ और ही होती है. औरों के रिश्तों की तरह ये दो लोगों में नहीं बंटती, सिर्फ मेरा हक है इस पर'' एक हद तक ये बात सही भी है एकतरफ़ा प्यार का अपना ही जनून तथा अपना ही सुकून होता है।हमारी खुशियां एक शख्श से जुड़ी होने के बाबजूद भी हम ही नियंत्रित करते हैं,खुद ही उसके बारे में सोच कर आनन्दित हो जाते हैं उसकी एक झलक से हमारा दिन बन जाता है,यदि कभी उससे बात करने को मिल जाये चाहे वो साधारण सी मौसम की ही बात क्यों ना हो ....तब तो दिल बल्लियों उछलने लगता है।
    एकतरफ़ा प्यार भी दो तरह का होता है एक जिसमें किसी से बिना इजहार किये प्यार किया जाता है जैसे किसी सेलेब्रेटी को प्यार करते हों इस तरह से ...
     ये प्यार हमारे मन की भावनाओं से ही नियंत्रित होता है,खुद ही रोना खुद ही हँसना,खुद ही चहकना,खुद ही उदास होना,सब भावनायें एकतरफ़ा होती हैं जिसके लिये ये सब भावनायें होती हैं उसे कुछ पता ही नहीं वो अपनी दुनिया में मग्न और हम उसे अपने मन की दुनिया में बसा कर मग्न रहते हैं, ना कोई रूठना मनाना ना ही कोई अपेक्षा ,इसे आलौकिक प्रेम या प्लेटोनिक लव से भी परिभाषित किया जाता है ,निष्काम प्रेम जो केवल प्रेम ही होता है विशुद्ध प्रेम....
   जब किसी से प्यार का इज़हार कर दिया जाता है और दूसरा पक्ष इंकार कर देता है तब भी प्यार एक तरफा रह जाता है।ये प्यार कभी कभी खतरनाक रूप भी ले लेता है, इज़हार करने वाले के अहम पर चोट लगती है कि आख़िर मुझमें कमी क्या है जो इसने मुझे इंकार कर दिया और कभी कभी बदले की भावना से ग्रसित होकर कुछ अवांछनीय कर्म भी वो कर देता है।जिससे प्यार किया उसे ही दुःख देने लगते हैं तथा उसको प्रताड़ित कर सुखी भी होते हैं,ये कैसा प्यार हुआ? जिसे चाहा उसे ही दुःखी देख कर सुखी होना कदापि प्यार नहीं हो सकता।प्यार जबरन नहीं पाया जा सकता ना ही किसी को मजबूर करके प्यार पाया जा सकता है।यदि हम किसी को जबरन बन्धन में बांध कर उसे पा भी लें तो भी उसका प्यार प्राप्त नहीं कर सकते।
         "चाहा है जिसे मुक्त कर दो उसे
           है प्यार को तौलने का तराजू यही
           चाहत का मारा चला आएगा
            ना आये तो समझो तुम्हारा नहीं"

 दोतरफा प्यार ही असल में प्यार है जिसमें दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं और एक प्यार से दूसरा प्यार मिल कर दुगुना हो जाता है।दो व्यक्तियों के मध्य का तालमेल ,उनकी नोंकझोंक, एक दूजे की परवाह व एक दूजे की पसन्द नापसन्द को अपनाना ही सच्चे मायनों में प्यार होता है।
       इस प्यार में जूनून होता है एक दूजे के साथ रहने का....दोतरफा प्यार में मतभेद भी होते हैं लड़ाई झगड़े भी पर वो सब भी जीवन को जीवंत बनाते हैं।
      एक की कमियां,खामियां दूसरा पूरी कर देता है और दोनों मिल कर परिपूर्ण हो जाते हैं।रूठना,मनाना,हँसना,रोना,पाना व खोना सब चलता रहता है एवं जीवन का प्रवाह बना रहता है।
      मेरा तो कहना यही है कि यदि प्यार हो तो दोतरफा हो वरना हो ही ना......
     
                                  मीनाक्षी  मेहंदी

Thursday, 15 June 2017

हास्यबोध

                       
हास्यबोध
जीवन में जितने भी रस हैं उसमें सर्वाधिक महत्व श्रृंगार रस को दिया जाता है सम्भवतः उसके बाद हास्य रस का ही स्थान आता है,बढ़ते हुये हास्य शो व उनकी सफलता भी इसी की परिचायक है।
    तनाव दूर करने हेतु आवश्यक है कि हास्य का महत्व समझा जाये, महानगरों में तो सुबह सुबह समूह बना कर लोग नकली अठ्ठाहस लगाते हुए हास्य चिकित्सा का लाभ उठाते दिख जाते हैं ,नकली हँसी से भी उनके स्वास्थ पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है, विचारणीय है यदि ये हास्य वास्तविक हो एवं जीवन का अभिन्न अंग बन जाये तो कितना स्वास्थ सुधार हो।
    हास्य का सबसे बड़ा उपयोग ये है कि आप अपने मन की बात निसंकोच कह सकते हैं यदि सामने वाला समझ गया तो अति उत्तम अन्यथा हँसी में उड़ा दो, समझ कर बुरा मान गया तो भी कहा जा सकता है कि अरे ये सब तो परिहास था और आपके सम्बन्ध बिगड़ने से बच जायेंगे।
       किन्तु हास व परिहास में अंतर होता है ,मजाक करने तथा मजाक बनाने के मध्य जो विभाजन रेखा है उसे समझना ही हास्य बोध है।कब किस समय किससे क्या बात कही जाये कि वो आपका मर्म समझ भी जाये और उसे बुरा भी ना लगे ये कला विकसित कर ही हास्यबोध में पारंगत हुआ जा सकता है।
     कुछ मनुष्यों में हास्यबोध जन्म से ही विधमान होता है वो अपनी चुटीली बातों से किसी को भी तनावमुक्त कर हँसा सकते हैं, ये व्यक्ति किसी भी उत्सव की शोभा बन जाते है तथा अत्यंत लोकप्रिय भी होते हैं, इनका साथ सभी को प्रिय लगता है।ये व्यक्ति से कड़वी सच्चाई भी हास्य के द्वारा व्यक्त कर देतें हैं तथा लोग जब इनका व्यंग्य समझ जाते हैं तो सुखद परिणाम भी प्राप्त होते हैं।
     हँसते हँसाते चेहरे सभी को प्रिय लगते हैं तो क्यों ना प्रयास करें अपने जीवन में हास्यबोध को महत्व देने का,जीवन के सूक्ष्म पलों में आनन्दित होने का एवं अन्य को भी हँसी से सराबोर करने का ,किन्तु हास व परिहास की सीमा रेखा का स्मरण रखते हुए यदि आपके अंदर ये समझ विकसित नही है तो समझदारी इसी में है कि हास्य से दूर ही रहें अन्यथा महाभारत होने में भी अधिक समय नहीं लगता है।
   
                                मीनाक्षी मेहंदी

टिप्पणी: हँसते हँसते कट जायें रस्ते....
            ज़िन्दगी यूँ ही चलती रहे........

Monday, 5 June 2017

निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी* 
निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को किया जाता है । इस वर्ष यह व्रत सोमवार *5* *जून* *2017* को है 
इसका नाम निर्जला है; अर्थात अत: नाम के अनुसार इसका व्रत करे तो स्वर्गादि के सिवा आयु और आरोग्यवृध्दि के तत्व विशेष रुप से विकसित होते है ।
व्यास ऋषि के कथानुसार यह अवश्य सत्य है की अधिमास सहित एक वर्ष की 25 एकादशी न की जा सके तो केवल *निर्जला* करने से ही पूरा फल प्राप्त हो जाता है ।
एक बार पाण्डव पुत्र भीम ने व्यास जी के मुख से प्रत्येक एकादशी को निराहार रहने का नियम सुनकर विन्रमता भाव से निवेदन किया कि महाराज ! मुझसे कोई व्रत नही किया जाता ।दिनभर बड़ी क्षुधा भूख लगी रहती है अत: आप कोई ऐसा कोई उपाय बताला दीजिये जिसके प्रभाव से स्वत: सदगति हो जाये तब व्यास जी ने कहा कि भीम तुमसे वर्षभर की सम्पूर्ण एकादशी नही हो सकती तो केवल एक निर्जला एकादशी का व्रत कर लो इसी से वर्षभर की एकादशी करने के समान फल हो जायगा । तब भीम ने वैसा ही किया इस एकादशी को भीम एकादशी भी इस लिये कहते हैं।

Monday, 29 May 2017

पूर्णागिरी : यात्रा संस्मरण

रात्रि भर यात्रा कर सुबह सुबह चार बजे माँ पूर्णागिरी के द्वारा शोभायमान अन्नपूर्णा शिखर तक पहुंच गए।
 पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के पिथौरागढ़ जनपद में अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह ५१सिद्ध पीठों में से एक है।यहाँ पर माँ सती का नाभि अंग गिरा था।
   तीन ओर से वनाच्छादित पर्वत शिखरों एवं प्रकृति की मनोहारी छटा के बीच कल-कल करती सात धाराओं वाली शारदा नदी के तट पर बसा टनकपुर नगर माँ पूर्णागिरि के दरबार में आने वाले यात्रियों का मुख्य पडाव है। बस से टनकपुर पहुँच कर यहाँ से टैक्सी द्वारा पूर्णागिरी पहुँच कर शुरू की माँ के भवन तक की यात्रा। जगह जगह यात्रियों के ठहरने के लिए विश्राम गृह बने हुए हैं,जहाँ पर स्नान आदि क्रियाओं से निर्वित हुआ जा सकता है। पहाड़ी शीतल जल से स्नान कर रात्रि सफर की सारी थकान दूर हो गयी तथा तरोताजा होकर माता के भवन तक चल दिये। ग्रीष्म अवकाश होने के कारण भक्तों की संख्या विशाल थी जो शीघ्रताशीघ्र माँ के दर्शन करने हेतु उमंग भर रही थी।
    गर्मी के मौसम में थोड़ी सी दूर चलते ही पसीने से लथपथ होने पर बैचैन हो गये तभी माँ ने भक्तों की परेशानी समझ कर अचानक जलवर्षा आरम्भ कर दी ततपश्चात तो पूरी यात्रा में ही ये संयोग रहा कि जब जब हम रुके तब तब बारिश और जब जब हम चलें तब घटा थम जाये। माँ की इस असीम अनुकम्पा से अनुग्रहित होते हुए जय माता दी के जयकारे लगाते हुए , रास्ते के सुरम्य दृश्यों को निहारते हुए चढ़ाई तय करते रहे।कई मायें छोटे बच्चों को गोदी में लिए आईं थी,कुछ लोग अपने बच्चों को मुंडन संस्कार के लिए लाए थे, कई भक्त सरलता से चल नहीं पा रहे थे और कई उत्साह से लगातार चलते ही जा रहे थे,विभिन्न प्रान्त व प्रदेश से आये हुए भक्त केवल मैया के दर्शनों की लालसा में एकाकार हो रहे थे। इसी अदम्य उत्साह व तरंग में कब माँ की प्रतिमा तक पहुँच गये पता ही ना चला तथा माँ के आलौकिक दर्शन करके तो समस्त कष्ट व थकान उड़न छू हो गये। भवन से उतर कर कुछ पल विश्राम तथा खान पान के पश्चात टैक्सी द्वारा पुनः टनकपुर वापसी जहाँ हमारी बस खड़ी थी।
  मार्ग में जगह जगह कई मंदिर थे सबकी अपनी अलग ही कथा किन्तु झूठे का मंदिर नाम से अलग लगा तो वहां की कथा मालूम की ...
  एक बार एक संतान विहीन सेठ को देवी ने स्वप्न में कहा कि मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। सेठ ने मां पूर्णागिरि के दर्शन किए और कहा कि यदि उसे पुत्र प्राप्त हुआ तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनवाएगा। मनौती पूरी होने पर सेठ ने लालच कर सोने के स्थान पर तांबे के मंदिर में सोने का पालिश लगाकर जब उसे देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर आने लगा तो टुन्यास नामक स्थान पर पहुंचकर वह उक्त तांबे का मंदिर आगे नहीं ले जा सका तथा इस मंदिर को इसी स्थान पर रखना पडा। आज भी यह तांबे का मंदिर या झूठे का मंदिर के नाम से जाना जाता है।
   टनकपुर से 10 km दूर स्थित शारदा नदी पर बने बाँध पर पहुँचे, नदी का अति आकर्षक बेहद चौड़ा पाट व अपार जलराशि देख ह्रदय प्रफुल्लित हो गया।बाँध पार करके महेंद्र नगर ,नेपाल में स्थित है सिद्ध बाबा मंदिर।
  कहा जाता है कि एक बार एक साधु ने अनावश्यक रूप से मां पूर्णागिरि के उच्च शिखर पर पहुंचने की कोशिश की तो मां ने रुष्ट होकर उसे शारदा नदी के उस पार फेंक दिया किंतु दयालु मां ने इस संत को सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात कर उसे आशीर्वाद दिया कि जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा वह उसके बाद तुम्हारे दर्शन भी करने आएगा। जिससे उसकी मनौती पूर्ण होगी।
    बस के पार्किंग स्थल से डैम तक बैटरी चालित रिक्शा संचालित होती है फिर डैम पैदल पार करके मोटर साइकिल चालक मिल जाते हैं जो महेंद्र नगर तक ले जाते हैं।सिद्ध बाबा के दर्शन कर पुनः बस में सवार हो चल दिये वापस अपने शहर की ओर..
    नानकमत्ता भी वापसी यात्रा में एक पड़ाव था किंतु तीव्र बारिश के कारण लग रहा था वहां नहीं जा पाएंगे परन्तु बारिश  वहां पहुंचते ही थम गयी, वहाँ के गुरूद्वारे में प्रवेश करते ही असीम शांति प्राप्त हुई।
   हमारी बस के सभी यात्री भी हँसमुख और मस्तमौला थे, सब एक दूसरे की जानपहचान के थे तो अपनापन तो था ही जिसके कारण यात्रा का आनंद कई गुना हो गया।ऐसी यात्रायें यदि समय समय पर होती रहे तो मन में ऊर्जा भर जाती है तथा इतने कष्टों भरी यात्रा हो तो घर आकर जो सुकून मिलता है उसका तो कहना ही क्या,सम्भवतः इसी कारण तीर्थ यात्राओं आदि का प्रावधान किया गया है।
                       

Sunday, 21 May 2017

कुछ खट्टी कुछ मीठी

रूचि ने बाहुबली दिखाने ना ले जाने के लिये रचित को नाराज़गी में कहा तलाक़ तलाक़ तलाक़
और धाड़ से कमरा बन्द कर सो गयी।
  रचित बेचारगी से सोफ़े पर ही सो गया।सुबह रूचि का आक्रोश व रचित दोनों शांत थे।रचित ने खुद ही चाय बना कर पी ली और ब्रेकफास्ट नहीं किया।रूचि की बातों का हाँ या ना में ही ज़बाब दे रहा था।
 ऑफिस जाते हुए रचित रूचि को उसके ऑफिस छोड़ते हुए जाता था।रूचि जब बाइक पर बैठने लगी तो रचित ने कहा नहीं देवी मैं आपके साथ नहीं जा सकता।
  अब रूचि का सब्र ज़बाब दे गया क्यों उसने खीज कर कहा।अब आप मेरे लिए पराई नारी हैं रात आपने मुझे तलाक़ दे दिया है।
 अरे वो तो मैंने गुस्से व मजाक में कह दिया था।
  गुस्से में ही सही किन्तु अब हम अजनबी हैं और बाइक दौड़ा कर ले गया।
  भुनभुनाती हुई रूचि ऑटो से ऑफिस गयी।
रचित रात को देर से आया और बिना खाना खाये ही सोफे पर सो गया।
 दो दिन बाद रचित के ऑफिस से आते ही रूचि बिफ़र गयी,ये कब तक चलेगा।मैं ये तलाक़ रद्द करती हूँ।
  नही तलाक़ ऐसे रद्द नहीं होता है।
 तो फिर से शादी कर लेते हैं।
  फिर से शादी भी ऐसे नहीं होगी।
तब क्या तरीका है।
तुम्हारे ऑफिस में जो मुग्धा काम करती है वो मुझे बहुत पसंद है उससे मेरी ...... तो हमारी फिर से शादी हो सकती है रचित ने शरारत से आँखे नचाई।
  रचित....रूचि ने बनावटी गुस्से से उसे कुशन मारने शुरू कर दिये ,रचित ने उसके हाथ पकड़ कर उसे अपने पास खींच लिया तथा कमरा उनकी खिलखिलाहटों से गुंजायमान हो गया।
           मीनाक्षी मेहंदी

Saturday, 20 May 2017

सलोनी की कहानी (10)

सलोनी की दादी व माँ ने कहा पति के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है तो सलोनी ने ये बात गिरह में बांध ली।पहली बार उसे जब खाना बनाने का अवसर मिला तो समस्त पाककला का प्रदर्शन करने की ठान ली। बड़े मनोयोग से मैन कोर्स और डेज़र्ट सब बनाया। मलाई कोफ़्ता,दाल मखानी,फ्रूट रायता,मेथी मटर मलाई, मसाला भिन्डी, बटर नान .... व गुलाब जामुन
 सभी परिवार के सदस्य खाने बैठे और तारीफ़ दर तारीफ़ सुन कर सलोनी फूली नहीं समा रही थी।
   विनीत को जब उसने पानी का गिलास दिया तो वो भुनभुना उठा - पानी क्यों किया गिलास में भी घी भर दो जैसा सब्जियों में है।
   सलोनी हतप्रभ ,इतना घी तो परंपरागत व्यंजनों में डलता ही है यदि शिकायत करनी ही थी तो अकेले में कह देते कि मुझे घी पसन्द नहीं है....
   अब दिल तक जाने का कौन सा रास्ता ढूँढना होगा....

टिप्पणी: यदि ये कहते हुए कि खाना बहुत स्वादिष्ट बना है किंतु मुझे कम घी का सादा भोजन पसन्द है अपनी बात समझाई जाती तो शायद सलोनी का मन भारी ना होता ......

Sunday, 14 May 2017

Happy mother's day

मातृ दिवस की बधाई
माँ सृष्टि है,जननी है वो है तो हम हैं किंतु केवल सृजन के कारण ही माँ महान नहीं है,असली महत्व तो पालन पोषण का है,बच्चे का पहला गुरु माँ ,जो कच्ची मिट्टी को आकार देती है कभी थपथपा कर कभी सहारा देकर      प्रयास हमेशा अच्छी आकृति गढ़ने का जो संसार के प्रतिमानों के भी अनुकूल हो।कभी कठोर कभी नर्म बन कर लगी रहती है माँ अपनी संतान को उत्कर्ष बनाने में।
    जिंदगी भर छैनी और हथौड़ी लिये तराशती रहती है अपनी ही गढ़ी आकृति को और ममता से निहारती रहती है उसे उम्र भर।अपना जीवन समर्पित कर देती है बच्चों की एक मुस्कान की ख़ातिर।कभी डरा कर कभी रुला कर कभी हँसा कर कभी खेल खेल में कभी भावुक बन कर हमें सिखाती है दुनियादारी और दुनिया का सामना करने का आत्मविश्वास देती है।
     बच्चा भले की कभी माँ से नाराज़ हो जाये माँ सदैव उसका हित ही चाहती है माँ  की नाराज़गी भी बच्चे की भलाई के लिए ही होती है।
    माँ के लिये अधिक क्या लिखूं "माँ तो माँ ही होती है"

Saturday, 13 May 2017

फाँस

जब हमारी त्वचा में कोई तिनका आ जाता है तो उसे फाँस कहते हैं,जब तक फाँस निकल नहीं जाती हमारा मन वहीं अटका रहता है,इतने वृहद तन में एक तिनका पूरा ध्यान आकर्षित कर लेता है,जब तक वो फाँस निकल ना जाये तब तक कुछ नहीं भाता है।
      ऐसे ही हमारे मन में कोई घटना या बात अटक जाती है और फाँस की भाँति चुभती रहती है किंतु मन की फाँस तन की फाँस के विपरीत होती है......
    तन की फाँस तब चुभती है जब कुछ अवांछित आ जाता है पर मन की फाँस तब चुभती है जब कुछ मिला हुआ छिन जाये या फिर कुछ कमी हम अपने जीवन में अनुभव करते हो।
    तन की फाँस तो सरलता से निकल जाती है व इसके बाद हम उसे भूल भी जाते हैं किन्तु मन की फाँस आसानी से नहीं निकलती तथा रह रह कर कसकती रहती है।
    अभी एक समारोह में एक संभ्रान्त महिला से भेंट हुई औपचारिक बातचीत में मैंने पूछा आपके कितने बच्चे हैं ,उन्होंने कहा 7 किन्तु मेरी एक बेटी नहीं रही ,एक व्यक्ति  के लिए सन्तान खोने से बड़ा दुःख कोई नहीं हो सकता किन्तु जो जीवित हैं उनकी बातचीत ना करके  उनका मन वहीँ अटका हुआ था....
   ऐसा होना स्वाभाविक ही है विछोह का दुःख असहनीय होता है किन्तु जो कभी मिला ही नही उसका भी दुःख गजब होता है ...
   काश और अगर से इन दुखों की उत्तपत्ति होती है, मनुष्य का पूरा ध्यान कमी पर ही केंद्रित हो जाता है एवं वो कमी उसे टीस देती रहती है ठीक फाँस की ही भाँति।अतीत में जो हमारे साथ हुआ अथवा जो हम परिस्थितिवश नहीं कर पाये उन बातों की कसक रह रह कर होती है तथा हमारा अतीत नासूर बन वर्तमान को दुखाता रहता है।
    " जो बीत गयी,वो बात गयी"  
 यदि सुखी रहना है तो वर्तमान में जीना सीखो,जो है जैसा है  उसे वैसा ही स्वीकार कर लो तो जीवन में आनन्द छा जायेगा ।
   सम्भवतः आत्मपीड़ा में भी एक सुख मिलता है हम स्वयं को दुःखी रख कर दूसरों की सहानुभूति एकत्र कर स्वयं को महत्वपूर्ण समझने लगते हैं,यदि मनुष्य अपनी सोच समयानुसार परिवर्तित करता रहे तो उसे कोई दुखी नहीं कर सकता।
   आवश्यकता है मन की फाँस निकाली जाये और उस जगह को उपचारित कर दिया जाये सकारात्मक सोच व वर्तमान में जीने की कला सीख कर।
                                 मीनाक्षी मेहंदी

Thursday, 11 May 2017

बुद्ध पुर्णिमा की शुभकामनाएं



वैशाख मास के पूर्णिमा के दिन बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध का जन्म हुआ इसलिए इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है ।
महात्मा बुद्ध का प्रथम धर्म -उपदेश: भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के नाम से प्रसिद्ध है जो उन्होंने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को दिया था। भेदभाव रहित होकर हर वर्ग के लोगों ने महात्मा बुद्ध की शरण ली व उनके उपदेशों का अनुसरण किया। कुछ ही दिनों में पूरे भारत में ‘बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघ शरणम् गच्छामि’ का जयघोष गूंजने लगा। मगध और उसके पड़ोसी राजा भी बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए। महात्मा बुद्ध ने पहली बार सारनाथ में प्रवचन दिया था। उन्होंने कहा कि केवल मांस खाने वाला ही अपवित्र नहीं होता, क्रोध, व्यभिचार, छल, कपट, ईर्ष्या और दूसरों की निंदा भी इंसान को अपवित्र बनाती है। मन की शुद्धता के लिए पवित्र जीवन बिताना जरूरी है।

*निर्वाण और धर्म प्रचार*  बौद्ध धर्म विश्व के प्राचीन धर्मों में से एक है। बौद्ध धर्म की सभी शिक्षाएं आत्मा की शुद्धता से संबंधित हैं। महात्मा बुद्ध की शिक्षा के चार मौलिक सिद्धांत है : संसार दुखों का घर है, दुख का कारण वासनाएं हैं, वासनाओं को मारने से दुख दूर होते हैं, वासनाओं को मारने के लिए मानव को अष्टमार्ग अपनाना चाहिए।
*अष्टमार्ग यानी, शुद्ध ज्ञान, शुद्ध संकल्प, शुद्ध वार्तालाप, शुद्ध कर्म, शुद्ध आचरण, शुद्ध प्रयत्न, शुद्ध स्मृति और शुद्ध समाधि।*

*भगवान बुद्ध का धर्म प्रचार 40 वर्षों तक चलता रहा। अंत में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में पावापुरी नामक स्थान पर 80 वर्ष की अवस्था में ई.पू. 483 में वैशाख की पूर्णिमा के दिन ही महानिर्वाण प्राप्त हुआ ।

Tuesday, 9 May 2017

दृष्टिकोण

पुरुष दृष्टिकोण

   हाँ,याद नहीं रहते मुझे दिनाँक, माह व वर्ष
कब हुआ वो पहली नज़र का असर,
 किस दिन छाया मीठी बातों का खुमार,
दिल पर कब हुआ तेरा अख़तियार ,
तुमसे हुआ है प्यार ये कब किया स्वीकार,
कब शरमाईं सकुचाती आईं थीं मेरे घर द्वार,
क्या फर्क पड़ता है इससे कि ये सब कब हुआ,
मैं मधुर स्मृति पल कभी भी कर लेता हूँ साकार
हमारा अमर प्रेम नहीं है मोहताज़ दिनाँक व सन् का 
किसी इतिहास की तरह

स्त्री दृष्टिकोण

हाँ,याद रहते हैं मुझे दिनाँक,माह व वर्ष
कब सहला गयी वो पहली नज़र,
किस दिन हुआ तुम्हारी बातों का असर,
कब मेरे अंतर में हुआ सब सिफ़र,
छा गया बस तुम्हारा ही खुमार,
कब आई मैं झिझकती सिमटती तुम्हारे शहर,
क्या फ़र्क पड़ता है यदि मैं रखती हूं सब याद,
वो सभी मधुर स्मृति पल लिपट जाते हैं दिनाँक व सन् में 
जैसे कोई ऐतिहासिक दस्तावेज और हमारा प्रेम भी अमिट लगने लगता है मुझे किसी इतिहास की तरह

                                     मीनाक्षी मेहंदी

Tuesday, 2 May 2017

सलोनी की कहानी (9)- चॉकलेट का विज्ञापन बनाम शेयर के दाम


क्या मस्ती भरा विज्ञापन- जानदार शॉट पर शानदार थिरकती अभिव्यक्ति, सलोनी और उसके सभी कजिन्स को ये विज्ञापन बेहद पसंद था। जब भी ये विज्ञापन देखते उनका मन भी झूमने लगता और बिंदास हो कर कहने लगते दिल जो कह रहा है वो सुनो ....हालाँकि अगले ही पल दिमाग की सुनते और डूब जाते कोर्स की किताबों का रट्टा मारने ।किन्तु कुछ पल के लिये ये विज्ञापन एक ऊर्जा तो निहित कर ही देता था तन मन में।
    विवाह पश्चात विनीत के कार्यालय से आने के पश्चात जब सलोनी उसके लिये चाय लेकर गयी तभी ये विज्ञापन आ गया और सलोनी चहक कर बताने लगी हम भाई बहन इस विज्ञापन की आवाज आने पर पढ़ाई छोड़ कर आ जाते थे इसे देखने ,मालूम है इसे " best ad of the year " का award मिला है।
    मैं भी इसका शेयर खरीदने की सोच रहा था 30 वाला शेयर 40 का हो गया...
   सलोनी के मन में कुछ चटक सा गया और वो सोचने लगी क्या कभी वो दिन आएगा जब विनीत शेयर भाव से इतर भी कोई बात उसके संग शेयर करेगा।

टिप्पणी: कई बार बहुत छोटी छोटी बातें हमारे मन से झड़ती रहती हैं चटकन के साथ किर्च किर्च कर और पता नहीं लगता कब रिक्तिता घिर आयी हमारे अंदर।

सलोनी की कहानी(8)- रुमानियत की हक़ीकत

एक प्रसिद्ध चलचित्र का दृश्य सलोनी के मस्तिष्क पर अंकित हो गया था जिसमें नायिका चाय ले कर नायक को जगाने आती है उसकी भीगी जुल्फों से टपकता जल कुछ ऐसी रुमानियत नायक के हृदय में जगाता है जिसकी छाप नायिका की अधमिटी बिंदिया में दिखती है। अगले दिन वो भी विनीत के पास चाय लेकर गयी और अपनी भीगी जुल्फों से उसे जगाने लगी तभी विनीत झल्ला गया ये क्या सर्दी में ठंडा पानी टपका रही हो छी दूर हटो यहाँ से...
   लेकिन मूवी में तो नायक खुश हुआ था आप भी तो चाव से देख रहे थे वो दृश्य....
   अरे उसे ये सब अभिनय करने के लिये ₹ मिलते हैं असलियत में तो ज़ुल्फ़ के पानी से घिन ही आएगी ना।अब छोडो ये फ़िल्मी बातें और दूसरी चाय बना कर लाओ ये ठंडी हो गयी तुम्हारे फ़िल्मी बुखार में।
  सलोनी चाय बनाते सोच रही है यदि वो विनीत को ₹ दे दे तो वो फ़िल्मी नायक की भांति अभिनय करेंगें क्या कुछ पल के लिए ही सही ...उसे खुश करने को।

टिप्पणी: माना कि फिल्में और हक़ीकत अलग होते हैं किंतु कुछ फ़िल्मी होने से रुमानियत जागती हो या जीवन में नया रंग भरता हो तो कभी कभी थोड़ा सा फ़िल्मी हो जाने में क्या हर्ज है।

Friday, 28 April 2017

अक्षयतृतीया - स्वयम सिद्ध महूर्त


अक्षय तृतीया जो इस वर्ष 28 अप्रैल को है उसका महत्व क्यों है जानिए कुछ महत्वपुर्ण जानकारी
-🙏 आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था ।
🙏-महर्षी परशुराम का जन्म आज ही के दिन हुआ था ।
🙏-माँ अन्नपूर्णा का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था
🙏-द्रोपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज ही के दिन बचाया था ।
🙏- कृष्ण और सुदामा का मिलन आज ही के दिन हुआ था ।
🙏- कुबेर को आज ही के दिन खजाना मिला था ।
🙏-सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ आज ही के दिन हुआ था ।
🙏-ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी आज ही के दिन हुआ था ।
🙏- प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण जी का कपाट आज ही के दिन खोला जाता है ।
🙏- बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में साल में केवल आज ही के दिन श्री विग्रह चरण के दर्शन होते है अन्यथा साल भर वो वस्त्र से ढके रहते है ।
🙏- इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था ।
🙏- अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है

Wednesday, 26 April 2017

23 /4/2016 की यादों की कलम से...

"कुछ यूँ एक बर्ष बीत गया"

यादों का युग लिए...कुछ यूँ...एक बर्ष बीत गया...

दीपक की आलोकित लौ सा, 
यादों का बर्ष बीत गया
कुछ यूँ....एक बर्ष...

नहीं मिट पायीं अंतर्मन में, चिड़ियों सी चहकती
वो गुलाब सी यादें तुम्हारी, पल पल जो महकती

बैशाख की फसलों के ,जब पके कनक
सुगबुगाने लगी ,तुम्हारी यादों की खनक

ज्येष्ठ की लंबी तपती, झुलसाती दुपहरिया
कट गयी तकते हुए, सूनी सूनी डगरिया

आषाढ़ की वो बढ़ती, ऊमस वाली गर्मी
तुम्हारी यादों ने ,ना दिखाई कोई नर्मी

श्रावण में ना बरसी,झमाझम रिमझिम फ़ुहार
यादें करती रहीं ,तरबतर निरंतर धुंआधार

भाद्रपक्ष में सुगन्धित, गीली मिट्टी की गंध
धूमायित जीवन मन्दिर में, यादों की सुगंध

आश्विन में गणपति का, कर दिया विसर्जन
उन्मत्त यादें करती रही, नित नूतन सृजन

कार्तिक  के अनवरत त्यौहार, व दीपावली
वेदों की ऋचा सी गूँजी, यादों की अरावली

मार्गशीष में बिछ गयी ,तजे पत्तों की चादर
तुम्हारी अपरिमित यादों की, उठती रही लहर

पौष में शरद आये ,सहमे हुए से सकुचाते
यादें कुंदन बन गयीं, स्वर्ण सा तपाते तपाते

माघ में धरती ,अच्छादित हुयी कोहरे से
समिधा सी सुलगती यादें, मौन क्रंदन से

फ़ागुन लेकर आया ,चटक रंग व उमंग 
मन सागर को मथते रहे ,यादों के संग

चैत्र लाया नवसंवत,भक्ति भरे भावगीत
निनिर्मेष हृदय में बजते रहे, यादों के संगीत

कुछ यूँ....एक वर्ष बीत गया
यादों का युग लिये
कुछ यूँ....एक बर्ष......
           मीनाक्षी मेहंदी

Saturday, 8 April 2017

विशेष कालखण्ड में गमन


 हे महासमय !एक विशेष कालखण्ड में गमन करना चाहती हूँ
हे कालचक्र !तुम्हें मोड़कर नये सिरे से पुनश्चहः जीना चाहती हूँ

निर्जन सूनी रातों का अकेलापन हटा प्रिय का संग पाना चाहती हूँ
अक्षुमिश्रित क्रंदित क्षणों को खिलखिलाहट बनाना चाहती हूँ
अनेकों अनकहे पलों को किसी के साथ बतियाना चाहती हूँ
चेतना के जला दिये उद्यानों को लहराते हुये देखना चाहती हूँ
स्वयं की पाँव कुचलित सम्भावनाओं को जीवंत करना चाहती हूँ
कठपुतली ना बनकर मेधाशक्ति से अपने निर्णय लेना चाहती हूँ

 हे महासमय !एक विशेष कालखण्ड में गमन करना चाहती हूँ
हे कालचक्र !तुम्हें मोड़कर नये सिरे से पुनश्चहः जीना चाहती हूँ

पंखहीन हो गिरे अंतरंग क्षणों में जाकर उड़ान भरना चाहती हूँ
ह्रदय के नीरस नीरव तट को प्रिय के प्रेमरस में भिगोना चाहती हूँ
मशीनी कलपुर्जा ना बन अंतर में सुधियों का प्रकाश चाहती हूँ
रूढ़ियों की बोझ तले दबी हार को जीत में बदलना चाहती हूँ
पूर्वाग्रह से दंशित ना होकर सत्य को स्वयं परखना  चाहती हूँ
 व्यतीत हो चुके अमूर्त पलों को मधुर संगीत में ढालना चाहती हूँ।

 हे महासमय !एक विशेष कालखण्ड में गमन करना चाहती हूँ
हे कालचक्र !तुम्हें मोड़कर नये सिरे से पुनश्चहः जीना चाहती हूँ
   
                                 मीनाक्षी मेहंदी

Wednesday, 5 April 2017

सिद्धिदात्री माँ नवम शक्ति

 सिद्धिदात्री
नवां रूप, सिद्धिदात्री, सिद्धियाँ या जीवन में सम्पूर्णता प्रदान करने वाला है| सम्पूर्णता का अर्थ है – विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना, यही सम्पूर्णता है|आप कुछ चाहो और वो पहले से ही वहां आ जाये| आपकी कामना उठे, इस से पहले ही सबकुछ आ जाये – यही सिद्धिदात्री है।
     सिद्धिदात्री माँ को कोटि कोटि नमन।

Tuesday, 4 April 2017

महागौरी माँ

महागौरी, माँ का आठवां रूप, अति सुंदर है, सबसे सुंदर ! सबसे अधिक कोमल, पूर्णत: करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती हुईं| यह वो रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है|
    महागौरी माँ को कोटि कोटि नमन।

Monday, 3 April 2017

कालरात्रि माँ

कालरात्रि
कालरात्रि देवी माँ के सबसे क्रूर,सबसे भयंकर रूप का नाम है| दुर्गा का यह रूप ही प्रकृति के प्रकोप का कारण है| प्रकृति के प्रकोप से कहीं भूकंप, कहीं बाढ़ और कहीं सुनामी आती है; ये सब माँ कालरात्रि की शक्ति से होता है| इसलिये, जब भी लोग ऐसे प्रकोप को देखते हैं, तो वो देवी के सभी नौ रूपों से प्रार्थना करते हैं।माँ का रूप भले ही भयानक हो किन्तु ये सदैव शुभ फल प्रदान करती हैं,तभी इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है।
    कालरात्रि माँ को कोटि कोटि नमन।

Sunday, 2 April 2017

कात्यायनी माँ

कात्यायनी
कात्यायनी अज्ञात की वो शक्ति है, जोकि अच्छाई के क्रोध से उत्पन्न होती है| क्रोध अच्छा भी होता है और बुरा भी| अच्छा क्रोध ज्ञान के साथ किया जाता है और बुरा क्रोध भावनाओं और स्वार्थ के साथ किया जाता है| ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है; जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिप्रद हो सकता है| इस प्रकार, कात्यायनी क्रोध का वो रूप है जो सब प्रकार की नकरात्मकता को समाप्त कर सकता है।
       कात्यायन कुल में उत्पन्न हुई देवी जो पितृ कुल की प्रतिनिधि हैं।

Saturday, 1 April 2017

स्कंदमाता पंचम दिवस

स्कंदमाता
स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति है जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती है – वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।
      मातृ शक्ति बनने की आलौकिक शक्ति नारी को प्रदान करने वाली देवी कोटि कोटि नमन।

Friday, 31 March 2017

कूष्माण्डा माँ चतुर्थ दिवस

 कूष्माण्डा
‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘इश’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला – सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला| यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा ; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है| इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है; जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं|
      कूष्माण्डा माँ को कोटि कोटि नमन।

Thursday, 30 March 2017

चंद्रघण्टा

चन्द्रघंटा
प्राय:, हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिये और अपने मन को साफ़ करने के लिये संघर्ष करते हैं|   किन्तु ऐसा नहीं होने वाला| आप अपने मन से छुटकारा नहीं पा सकते| आप कहीं भी भाग जायें, चाहे हिमालय पर ही क्यों न भाग जायें, आपका मन आपके साथ ही भागेगा| यह आपकी छाया के समान है|हाँ, प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया बहुत सहायक हो सकते हैं; पर फिर भी मन सामने आ ही जाता है| मन को घंटे की ध्वनि के समान स्वीकार करें – घंटे की ध्वनि एक होती है, यह कई नहीं हो सकती, यह केवल एक ही ध्वनि उत्पन्न कर सकता है - सभी छायाओं के बीच मन में एक ही ध्वनि ! सारी अस्तव्यस्तता दैवीय शक्ति का उद्भव करती है – वो है चन्द्रघंटा अर्थात् चन्द्र और घंटा|
       घण्टे की नाद से समस्त विकार दूर करने वाली देवी को कोटि कोटि नमन।

Wednesday, 29 March 2017

ब्रह्मचारिणी

ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी का अर्थ है अनंत में व्याप्त, अनंत में गतिमान – असीम| ब्रह्मा असीम है जिसमें सबकुछ समाहित है| आप यह नहीं कह सकते कि, ‘मैं इसे जानता हूँ’, क्योंकि यह असीम है; जिस क्षण ‘आप जान जाते हैं’, यह सीमित बन जाता है और अब आप यह नहीं कह सकते कि, “मैं इसे नहीं जानता”, क्योंकि यह वहां है – तो आप कैसे नहीं जानते? क्या आप कह सकते हैं कि, ”मैं अपने हाथ को नहीं जानता| आपका हाथ तो वहां है न| है न ? इसलिये, आप इसे जानते हैं| ब्रह्म असीम है, इसलिये आप इसे नहीं जानते – आप इसे जानते हैं और फिर भी आप इसे नहीं जानते| दोनों ! इसीलिये, यदि कोई आपसे पूछता है तो आपको चुप रहना पड़ता है| जो लोग इसे जानते हैं वे बस चुप रहते हैं क्योंकि यदि मैं कहता हूँ कि, “मैं नहीं जानता” , मैं पूर्णत: गलत हूँ और यदि मैं कहता हूँ कि, “मैं जानता हूँ”, तो मैं उस जानने को शब्दों द्वारा, बुद्धि द्वारा सीमित कर रहा हूँ| इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी वो है, जोकि असीम में विद्यमान है, असीम में गतिमान है| गतिहीन नहीं, बल्कि अनंत में गतिमान| ये बहुत ही रोचक है – एक गतिमान होना, दूसरा विद्यमान होना|ब्रह्मचर्य का अर्थ है तुच्छता में न रहना, आंशिकता से नहीं पूर्णता से रहना| इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी चेतना है, जोकि सर्व-व्यापक है|

प्रथम दिवस माँ शैलपुत्री

माँ दुर्गा के ९ रूप |

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी चन्द्रघंटा कूष्माण्डा स्कंदमाता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी
सिद्धिदात्री

देवी माँ या निर्मल चेतना स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है और सभी नाम ग्रहण करती है| हर रूप और हर नाम में एक दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है|
|| या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ||

शैलपुत्री
शैल का अर्थ है शिखर| दुर्गा को शैल पुत्री क्यों कहा जाता है, यह बहुत दिलचस्प बात है| जब ऊर्जा अपने शिखर पर होती है, केवल तभी आप शुद्ध चेतना या देवी रूप को देख, पहचान और समझ सकते हैं| उससे पहले, आप नहीं समझ सकते, क्योंकि इसकी उत्त्पति शिखर से ही होती है – किसी भी अनुभव के शिखर से| यदि आप 100% क्रोधित हैं, तो आप देखें कि किस प्रकार क्रोध आपके सारे शरीर को जला देता है| किसी भी चीज़ का 100% आपके सम्पूर्ण अस्तित्त्व को घेर लेता है – तब ही वास्तव में दुर्गा की उत्पत्ति होती है|






Tuesday, 28 March 2017

नव सम्वत की शुभकामनाएं


वैदिक नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् 2074 (28 मार्च, 2017)" की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।

Monday, 27 March 2017

live in relationship

 live-in relationship क्या है?
दो वयस्क व्यक्ति समान्यतः स्त्री पुरुष बिना कोई समाजिक बंधन मानते हुए अथवा बिना वैवाहिक संबंध के साथ रहते हैं उसे लिव इन रिलेशनशिप कहते हैं।
  आजकल ये सम्बन्ध बढ़ते जा रहे हैं इसका कारण है उन्मुक्त जीवन की आकांक्षा।जब तक मन करा साथ रहे जब मन हो अलग हो जाओ बिना किसी क़ानूनी दावँ पेंच के, कोई किसी की आज़ादी में दखल अन्दाजी ना करे अपनी इच्छानुसार जियो।विवाह करने में तो कई बातों का ध्यान रखना होता है ,पर लिव इन में परिवारजनों और समाज की परम्पराओं का पालन करना जरूरी नही है।
        कई बार किसी ऐसे व्यक्ति से प्रेम हो सकता है जिससे विवाह करने में कई पारिवारिक व सामाजिक अड़चनें होती हैं तब विवश्तास्वरूप भी जोड़े लिवइन में रहने को सुगम मार्ग समझते हैं।
      क्रान्ति युगे युगे ,हर युग में पहले से चली आ रही मान्यताओं और परम्परा के विरुद्ध युवा आवाज़ उठाता रहा है अधिकतर जन विरुद्ध ही होते हैं पर परिवर्तन हर युग में अपनी जगह बनाता है,कई लोग तन से साथ होते हैं पर मन से किसी और के साथ रहते हैं ये भी तो एक लिव इन ही है........
कुछ लोगों की मान्यता है कि व्यक्ति यदि विवाह संस्था को ना माने तो पुनः जानवर या आदि मानव बन जायेगा परन्तु  सभ्य बन कर भी क्या प्राप्त कर लिया मानव ने....रोज के झगड़े,तनाव.... बच्चों के कारण साथ रहने की विवशता ,इससे अच्छा है ,लिवइन में रहना,सच कहूँ तो लिव इन में ही सही मायने में स्वतंत्रता है,जिसमे कोई लिंगभेद नहीं होता दोनों इंसान बन कर रहते हैं अपनी अपनी इच्छा व रुचिनुसार जी सकते हैं,बिना किसी पाबंदी के एक दूसरे का सम्मान करते हुए।
जैसे विवाह रूपी संस्था में कुछ वचन लिए जाते हैं ऐसे ही लिव इन में भी कुछ बिन्दू स्पष्ट होने चाहिए
1 कौन किस किस मद में कितना खर्चा करेगा
2 दोनों की दिनचर्या के अनुसार कार्यों का विभाजन
3 यदि सन्तान हुई तो उसका निर्वाह और भरण पोषण दोनों करेंगे किन्तु अलग होने पर उसकी जिम्मेदारी कौन उठाएगा
4 किसी एक के  परिवारजनों को यदि कोई आपत्ति है तो दूसरे को उससे कोई मतलब नही अपने परिजनों को स्वयं समझाओ।
5 अलग होने के पश्चात एक दूसरे पर अनर्गल आपेक्ष कोई प्रत्यरोपित नहीं करेगा
इसके अलावा अन्य बिंदुओं पर भी सहमति अपनी परिस्थिति अनुसार की जा सकती है।
लिव इन से दहेज,घरेलु हिंसा,जातिप्रथा आदि दोष भी   स्वतः समाप्त हो जायेंगे।
        प्रत्येक  सिक्के के दो पहलू होते हैं, कुछ अच्छा होता है कुछ बुरा उसे किस तरह उपयोग करें ये हमारे ऊपर निर्भर करता है ।
   कई कबीलाई संस्कृतियों में अब भी ये प्रथा है कि विवाह पूर्व जोड़े संग रह कर देखतें हैं कि वो एक दूसरे के योग्य हैं या नहीं यदि सहमति हुई तो विवाह सम्बन्ध तय कर दिया जाता है अन्यथा नहीं।
     सबसे बड़ी बात रिश्ता चाहे समाजिक मान्यता प्राप्त हो या ना हो, यदि दिल से जुड़ा है और विश्वास पर टिका है तभी चलता है अन्यथा नही वरना सामाजिक मान्यतायों अनुसार किये गए विवाह में भी कुछ जोड़े पृथक होते ही हैं।
      अब तो लिवइन से उत्पन्न हुई सन्तानों को भी क़ानूनी मान्यता व हक़ प्राप्त हैं।

Saturday, 25 March 2017

प्रेम जीवाश्म

कल तुम खिन्न थे- जब मैं थी अविचिलित,निष्क्रिय एवं अपरिवर्तित
मुझमें शने शने समाते गये प्रेम व अपनत्व से भरपूर कई उर्वर बीज 
क्यूंकि तुमने जिजीविषा से प्रहार कर उत्पन्न कर दीं असंख्य दरारें

आज तुम खिन्न हो- जब बीज प्रस्फुटन से निकले नवांकुर,कोपलें व पुष्प
चटकी व सुगन्धित चट्टान अपेक्षित नहीं की थी सम्भवतः तुमने
क्यूंकि भाती थी चिकनी,समतल शिला जिस पर नहीं टिकती थीं प्रेमिल बूंदे

कल भी तुम खिन्न रहोगे- जब तुम्हारी स्मृतियों,नेह व प्रेम के चिह्न अमिट रहेंगें
अथक प्रयासों के बाद भी नहीं मिटायें जा सकेंगें युग युगान्तर तक
क्यूंकि तुम्हारा प्रेम जीवाश्म सा संरक्षित हो गया है मुझमें अनन्त काल तक.....
   
                                       मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: जीवाश्म( fossil)
            बहुत प्राचीन काल के जीव-जंतुओं, वनस्पतियों आदि के वे अवशिष्ट रूप जो ज़मीन की खुदाई पर निकलते हैं; पुराजीव; चट्टान में भी छपे पाये जाते हैं ....

Monday, 20 March 2017

विश्व गौरैया दिवस

                     विश्व गौरैया दिवस
नानी की कहानी की चिरइया
आंगन में फुदकती चिरइया
दाना पानी गटकती चिरइया
चीं चीं करती प्यारी चिरइया

सुबह का मधुर अलार्म चिरइया
कलरव करते चिरोटा चिरइया
घोंसला बना अंडे सेती चिरइया
कृषक की सहयोगी मित्र चिरइया

बचपन की स्मृति तुम चिरइया
दिखती क्यों नही अब चिरइया
विकिरण से नष्ट होती चिरइया
भूतापवृद्धि से लुप्त होती चिरइया

पर्यावरण हेतु आवश्यक चिरइया
सरंक्षित कर लो साथी चिरइया
अन्यथा इतिहास होगी चिरइया
एवं चित्रों में ही देखेगी चिरइया

                मीनाक्षी मेहंदी

Sunday, 19 March 2017

वयःसंधि


वयःसंधि मानव में उस कालखंड को कहते हैं जिसमें बच्चा बढ़ कर जवान बन जाता है,इस अवस्था को किशोरावस्था भी कहा जाता है,समान्यतः ये 12 से 19 वर्ष की आयु तक रहती है।इस समय मानसिक शक्ति प्रबल होती है।शारीरिक और भावनात्मक बदलाव चरम पर होते हैं।इस आयु में बालक असाधारण कार्य करना चाहता है ,यदि वो सफल हो जाये तो उसी क्षेत्र में आगे बढ़कर उसे अपना जीवनोपर्जन का माध्यम भी बनाना चाहता है,यदि असफल हो जाये तो उसे अपना जीवन अर्थहीन लगने लगता है।
वयःसंधि बेहद खतरनाक होती है इस समय व्यक्ति बन भी सकता है और बिगड़ भी सकता है,इस समय उसे जो परिवेश मिलता है उसी पर उसका भविष्य निर्भर करता है।इस समय लिये गये निर्णय उसके पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं।
       इस वयःसंधि के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है किंतु एक वयःसंधि और होती है जिसके बारे में अधिक सुनने पढ़ने को नहीं मिलता वो है युवा से प्रौढ़ होने के मध्य की अवस्था जिसे अधेड़ावस्था भी कहते हैं।ये समान्यतः 45 से 60 के मध्य की आयु मानी जाती है।    इस काल में भी कई हार्मोनल बदलाव होते है साथ ही साथ उत्साह,रोमांच व शारीरिक क्षमता भी पहले जैसी नहीं रहतीं।रोग भी शरीर में बसने हेतु आतुर होने लगते हैं।पारिवारिक उत्तरदायित्व पूरे होने लगते हैं।उस समय अकेलेपन और नीरसता का वातावरण उत्पन्न होने लगता है,तब मानव के मन में पहले की दबी हुयी कुंठाएँ उभरने लगती हैं उसे लगता है उसने पूरा जीवन दूसरों की प्रसन्नता हेतु समर्पण कर दिया है अपने लिये तो जिया ही नहीं।यदि उसने अपना पूर्व का जीवनकाल अपनी इच्छानुसार जिया है तब तो वो सहज रूप से अपने इस जीवनकाल में भी नई ऊर्जा के साथ नये पथ (भौतिक,बौद्धिक या अध्यात्मिक) पर अग्रसर हो जाते हैं।किन्तु अधिकांश स्वयं को एकाकी मानने लगते हैं,उनमे नया कार्य करने की ना तो रूचि रहती है ना ही साहस ।इस समय उनके पास बुद्धिमानी और अनुभव की अदम्य ऊर्जा होती है तो भी वो निर्भीक हो निर्णय नहीं ले पाते और जैसा जीवन चल रहा है वैसा ही चलने देने को अपनी नियति मान लेते हैं ।
      इसका नतीजा ये होता है कि वो कटु और चिड़चिड़े होने लगते हैं जिसका प्रभाव उनके साथ साथ उनसे जुड़े सभी लोगों पर होने लगता है जिसके कारण कई बार उन्हें उपेक्षा का दंश भी झेलना पड़ता है।
      यदि हम जीवन की हर अवस्था को एक नवीन रूप माने तो प्रत्येक अवस्था का आनंद ले सकते हैं।
     कोई भी कार्य करने की यदि अदम्य इच्छा जोर मार रही हो तो उसे केवल आयु के विषय में सोच कर ना करना बुद्धिमानी नहीं है।अपने मन की सुनने के लिए और उसे कार्यन्वित करने के लिए आयु की आड़ नहीं लेनी चाहिये,आयु तो केवल एक संख्या है जो वर्ष दर वर्ष बढ़ती ही जायेगी.......
    आपके नूतन प्रयासों को आपके सिवा कोई रोक नहीं सकता,यदि आप जीवनपर्यंत एक ही परिपाटी पर चले हैं तब भी आप जब चाहे अपनी धारणा को बदल सकते हैं।आपमें अभी भी बहुत ऊर्जा है जिसके द्वारा आप जीवन का आनन्द ले सकते हैं ,ये जीवन एक बहुमूल्य उपहार है इसे ऐसे कार्य में लगाइये जो आप हमेशा से करना चाहते थे,साथ में अपने सामाजिक दायित्व भी निभाइये।
     आप पायेंगें कि आप पुनः तरोताज़ा हो गये हैं तथा
नीरस व उबाऊ जीवन काटने के स्थान पर जीवन का  रसास्वादन कर रहे हैं ।
                                    मीनाक्षी मेहंदी

Friday, 17 March 2017

ख़ुशी का पैमाना

                    " ख़ुशी का पैमाना"

   कल एक मूवी देखी,पांच दोस्तों की कहानी जिनके लिये ख़ुशी की परिभाषा अलग अलग थी।एक के लिए शक्ति,दूसरे के लिये प्रसिद्धि ,तीसरे के लिए धन ,चौथे के लिए सफलता और पाँचवे के लिए दुःख का अभाव ही ख़ुशी का पैमाना था।वो अपनी अपनी खुशियों को पाने के लिए निकल पड़ते हैं ,5 साल बाद फिर मिलने के लिए और अपनी अपनी मंजिल को पाने के बाद जब वो पुनः मिलते हैं तो पाते है कि कोई भी खुश नहीं है क्योंकि अपना लक्ष्य पाने हेतु उन्होंने जो कार्य किये थे वो उनकी अंतरात्मा को कचोट रहे थे।
    दुःख का अभाव भी ख़ुशी का पैमाना नहीं है।जीवन में ख़ुशी पाने की लालसा में शायद व्यक्ति ख़ुशी से और भी दूर होता चला जाता है।ख़ुशी तो अंतरनिहित होती है जो परिस्थितिजन्य होती है।कभी कभी समान परिस्थिति हमे सुख देती है और मन के दुःखी होने पर पर वही हमें दुःखद प्रतीत होती है।
     कुछ लोगों का मानना है कि ऊपरवाला कभी किसी को पूर्ण सुख नहीं देता कुछ ना कुछ अभाव जीवन में अवश्य होता है।मनुष्य की फितरत है कि वो उस कमी को सोच सोच कर ही दुःख प्रतीत करता रहता है जो मिल गया उसे नहीं देखता।
     लेकिन परमपिता परमात्मा हमें बहुत दुखी भी नहीं देख सकता है जब भी हम अत्यधिक कष्ट या दुःख में होते हैं तो वह हमारे कष्ट हरने के लिये किसी ना किसी रूप में हमारी सहायता के लिए प्रयास करता है और किसी को माध्यम बनाता है सहयोग के लिये,अब ये हमारी योग्यता पर निर्भर होता है कि हम उस माध्यम को पहचान अथवा समझ पाते हैं या नहीं।
      पूर्ण सुख या पूर्ण दुःख जैसी कोई अवधारणा नहीं होती एक के होने में ही दूसरे का होना पाया जाता है, सुख का महत्व तभी ज्ञात होता है जब दुःख को अनुभव किया हो ,बिना दुःख की अनुभूति के सुख की अनुभूति भी नहीं होती।
    अतः ख़ुशी का कोई निश्चित पैमाना नहीं है,ख़ुशी को सब अपनी अपनी मनोस्थिति अनुसार प्रतीत करते हैं।कहते हैं ना कोई खुश हुआ गुब्बारे बेच कर और कोई खुश हुआ गुब्बारे खरीद कर।
                                   मीनाक्षी मेहंदी
    

Monday, 13 March 2017

होलिका पर्व की मंगल कामनाएं

होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है। विष्णु पुराणकी एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया। वह चाहता था कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड़ दे, परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने उसे बहुत सी प्राणांतक यातनाएँ दीं लेकिन वह हर बार बच निकला। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अतः उसने होलिका को आदेश दिया के वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए। परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया। होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं।

होलिका दहन पर सभी अपनी अपनी बुराइयों का दहन करें।