वैवाहिक युगल को शीघ्र ही दो पुत्र प्राप्त हुये,पिता की इच्छा हुई एक कन्या भी हो,तभी उन दिनों सन्तोषी माँ के व्रत और पूजा की नई नई धूम मची हुई थी,डॉ साहब को भगवान पर अधिक विश्वास तो नहीं था किंतु फिर भी उन्होनें माँगा कि यदि अबके मेरे घर कन्या हुई तो मैं मैया की शक्ति मान जाऊँगा,मैया मेरे घर कन्या रूप में जन्म लो पता नहीं ये विधि का विधान था या सच्चे ह्रदय से की गई प्रार्थना की शक्ति,इस बार कन्या का ही जन्म हुआ। हर्षोउल्लास से सब भर उठे विशेषकर पिता तो फूले ना समाते थे,बड़े ही लाड़ प्यार से कन्या का पालन होने लगा।कन्या बेहद सुंदर और सौम्य स्वभाव की थी,कभी किसी बात के लिए तंग ना करने वाली।सम्भवतः सन्तोषी माँ के आशीर्वाद से उत्पन्न होने के कारण ही उसमें संतोष गुण जन्म से ही विधमान था।मेहंदी का सौभाग्य था कि उसने ऐसे घर में जन्म लिया जहाँ कन्या की चाह थी ।
बोलो! संतोषी मैया की जय।
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