हे महासमय !एक विशेष कालखण्ड में गमन करना चाहती हूँ
हे कालचक्र !तुम्हें मोड़कर नये सिरे से पुनश्चहः जीना चाहती हूँ
निर्जन सूनी रातों का अकेलापन हटा प्रिय का संग पाना चाहती हूँ
अक्षुमिश्रित क्रंदित क्षणों को खिलखिलाहट बनाना चाहती हूँ
अनेकों अनकहे पलों को किसी के साथ बतियाना चाहती हूँ
चेतना के जला दिये उद्यानों को लहराते हुये देखना चाहती हूँ
स्वयं की पाँव कुचलित सम्भावनाओं को जीवंत करना चाहती हूँ
कठपुतली ना बनकर मेधाशक्ति से अपने निर्णय लेना चाहती हूँ
हे महासमय !एक विशेष कालखण्ड में गमन करना चाहती हूँ
हे कालचक्र !तुम्हें मोड़कर नये सिरे से पुनश्चहः जीना चाहती हूँ
पंखहीन हो गिरे अंतरंग क्षणों में जाकर उड़ान भरना चाहती हूँ
ह्रदय के नीरस नीरव तट को प्रिय के प्रेमरस में भिगोना चाहती हूँ
मशीनी कलपुर्जा ना बन अंतर में सुधियों का प्रकाश चाहती हूँ
रूढ़ियों की बोझ तले दबी हार को जीत में बदलना चाहती हूँ
पूर्वाग्रह से दंशित ना होकर सत्य को स्वयं परखना चाहती हूँ
व्यतीत हो चुके अमूर्त पलों को मधुर संगीत में ढालना चाहती हूँ।
हे महासमय !एक विशेष कालखण्ड में गमन करना चाहती हूँ
हे कालचक्र !तुम्हें मोड़कर नये सिरे से पुनश्चहः जीना चाहती हूँ
मीनाक्षी मेहंदी
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