Tuesday, 9 May 2017

दृष्टिकोण

पुरुष दृष्टिकोण

   हाँ,याद नहीं रहते मुझे दिनाँक, माह व वर्ष
कब हुआ वो पहली नज़र का असर,
 किस दिन छाया मीठी बातों का खुमार,
दिल पर कब हुआ तेरा अख़तियार ,
तुमसे हुआ है प्यार ये कब किया स्वीकार,
कब शरमाईं सकुचाती आईं थीं मेरे घर द्वार,
क्या फर्क पड़ता है इससे कि ये सब कब हुआ,
मैं मधुर स्मृति पल कभी भी कर लेता हूँ साकार
हमारा अमर प्रेम नहीं है मोहताज़ दिनाँक व सन् का 
किसी इतिहास की तरह

स्त्री दृष्टिकोण

हाँ,याद रहते हैं मुझे दिनाँक,माह व वर्ष
कब सहला गयी वो पहली नज़र,
किस दिन हुआ तुम्हारी बातों का असर,
कब मेरे अंतर में हुआ सब सिफ़र,
छा गया बस तुम्हारा ही खुमार,
कब आई मैं झिझकती सिमटती तुम्हारे शहर,
क्या फ़र्क पड़ता है यदि मैं रखती हूं सब याद,
वो सभी मधुर स्मृति पल लिपट जाते हैं दिनाँक व सन् में 
जैसे कोई ऐतिहासिक दस्तावेज और हमारा प्रेम भी अमिट लगने लगता है मुझे किसी इतिहास की तरह

                                     मीनाक्षी मेहंदी

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