Monday, 7 November 2016

चेहरा



चेहरा
कहते हैं चेहरा हॄदय का दपर्ण होता है
मेरे चेहरे से नहीं समझ पाता है कोई मुझे
क्या आती है मुझे अपने मनोभाव छिपाने की कला
अथवा असमर्थ हूँ मैं अपने मनोभाव प्रकट कर पाने में
मेरे हंसने, खिलखिलाने का सीधा अर्थ क्यों लिया जाता है
ये भी तो सच है कि गम छिपाने के लिये मुस्कुराया जाता है
कई बार बनावटी हंसी के आवरण तले छुपाया है दुखों को
जैसे चिङिया समेट लेती है अपने बच्चों को अपने डैनों में
बच्चों की तरह ही सहलाया है मैंने अपने कष्टों को
पोषित किया है अपनी देखरेख में, पर कभी कभी लगता है
कोई समझ पाता मेरी हंसी के पीछे छुपे दर्द को
या फिर काश चेहरा होता हॄदय का दर्पण…..
                             
                                              मीनाक्षी मेहंदी

5 comments:

  1. हाँ! आपको आती है कला छुपाने की।

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  2. सही समझे हैं😊😊

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  4. अलग रंग -ढंग से सजी सुन्दर कविता बधाई अनु जी |

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  5. धन्यवाद किन्तु अनु नहीं मेहंदी

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