Saturday, 26 November 2016

विलम्बित न्याय

फुटपाथ पर रक्त रह गया चित्कारता
बेघर बेसहारा जन्नतनशीं हो गए
जो अत्यधिक परिपूर्ण थे अर्थ से
वो ही इस युग में समर्थ हो गए
इंसाफ के मंदिर से थीं चंद उम्मीदें
विलंबित न्याय से निर्णय बेमानी हो गए
देर आये दुरुस्त आये सोचती रही जनता
उनको बाइज़्ज़त देख सब हैरान हो गए
कानून की आँखों पर बंधी रही पट्टी
इंसाफ के तराज़ू में नोट भारी हो गए
                 मीनाक्षी मेहंदी

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