Friday, 18 November 2016

तुम सवाल बहुत करती हो!!!

*प्रिय.....तुम सवाल बहुत करती हो!!!*

ये तुम्हारा उलाहना था,शिकायत या .....
यूँ ही कहा एक वाक्य जैसे कह देते हो तुम कुछ भी....

यदि ये उलाहना था....?
तो सुनो...
सवाल करती हूँ जिससे जान सकूँ तुम्हें और भी अधिक
कभी कभी हम जानना कुछ चाहते हैं,पूछते कुछ और हैं
कभी कभी कहा कुछ जाता है,
समझते हम कुछ और ही
ये बात तुम भी समझते हो
फिर भी दे दिया मीठा सा उलाहना......
*प्रिय.....तुम सवाल बहुत करती हो!!!*

यदि ये शिकायत थी .....?
तो सुनो ...
सवाल करती हूँ जिससे दूर हो मध्य परसी ख़ामोशी
ख़ामोशी ना राह बताती है ना चाह,देती है नाउम्मीदी का अँधेरा
ख़ामोशी की दीवार से टकरा,
शब्द खो देते हैं अपने अर्थ
इसी दीवार को ढाने का, प्रयास होता है मेरे सवालों में
ये बात तुम भी मानते हो
फिर भी कर दी मीठी सी
शिकायत......
*प्रिय.....तुम सवाल बहुत करती हो!!!*

यूँ ही कहा एक वाक्य...?
तो सुनो...
सवाल करती हूँ यूँ ही जिससे बतिया सकूं कुछ पल तुमसे
अच्छा लगता है तुमको उलझाना, अटपटे सवालों में
अच्छा लगता है हँसना तुम्हारे
चटपटे जवाबों पर
यही हँसी ख़ुशी के पल हरदम बाटतीं हूँ तुम्हारे साथ
ये मिठास तुम्हें भी भाती है,
तभी तो तुम भी कह देते हो मुझसे यूँ ही.....
*प्रिय.....तुम सवाल बहुत करती हो!!!*


           *मीनाक्षी मेहंदी*

टिप्पणी: तल्ख हैं जो लोग वो ही दिल को मेरे भाये है
तल्ख़ हो बेशक जुबाँ से दिल से कोमल पाए है...........

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