Thursday, 10 November 2016

एक प्रश्न

"एक प्रश्न"
हे सखी ,आज तुमने मुझे उलझन में डाल दिया
करके सीधा सा प्रश्न..क्या मैं ख़ुश हूँ?
ये ख़ुशी क्या है हमारे मन की एक भावना ही तो है
जब जैसे जी चाहे अपने विचारों को हम मोड़ दें
जैसा चाहते हों वैसा तरीका अपना कर खुश हो लेँ
इस प्रकार तो खुश होना बहुत सरल है...
किन्तु मन को बहलाना भी इतना ही सरल है?
यदि कोई गम मेरे निकट नही है
तो समझ लो मैं शायद खुश ही हूँ...
लेकिन सच्ची ख़ुशी क्या है?
तुम ही बता दो
मैं तो सुख ढूंढते ढूंढ़ते थक गई हूँ
लगता है सुख कोई मृगमरीचिका है
जो है मुझमें ही निहीत
और मैं अन्य स्थानों पर खोजती भागी जा रही हूँ
नहीँ मिल पा रही है जब कहीँ भी ख़ुशी
मैं दीवानी होती जा रही हूँ
सुनो ख़ुशी और आनंद ऐसे इत्र है ...
जिन्हें जितना दूसरा पर छिड़कोगे
उतनी सुगंध तुम्हारे भीतर समायेगी
किन्तु मेरे हाथ तो रीते हैं
उनमें कोई सुगन्ध पात्र नहीं है
कहाँ से इत्र मैं छिड़क पाऊँगी
औरों को सुगन्धित कर खुद भी महक पाऊँगी
मेरे पास तो हैँ सिर्फ गिले,शिकवे,ताने,कुछ सिसकते पल
वही तुम्हे बता पाऊँगी
स्वयँ तो हूँ दुखी अपना हाल बताते बताते तुम्हें भी उदास कर जाऊँगी
अतः मेरी सखी मुझसे कुछ ना पूछो
मुझे नहीं पता ख़ुशी क्या है?
मेहँदी रहती है स्वयँ में मग्न रह कर ख़ुश
तुम भी स्वयँ में मग्न रह कर
मुझे ख़ुश समझ लो...
मीनाक्षी मेहँदी

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