चेहरा
कहते हैं चेहरा हॄदय का दपर्ण होता है
मेरे चेहरे से नहीं समझ पाता है कोई मुझे
क्या आती है मुझे अपने मनोभाव छिपाने की कला
अथवा असमर्थ हूँ मैं अपने मनोभाव प्रकट कर पाने में
मेरे हंसने, खिलखिलाने का सीधा अर्थ क्यों लिया जाता है
ये भी तो सच है कि गम छिपाने के लिये मुस्कुराया जाता है
कई बार बनावटी हंसी के आवरण तले छुपाया है दुखों को
जैसे चिङिया समेट लेती है अपने बच्चों को अपने डैनों में
बच्चों की तरह ही सहलाया है मैंने अपने कष्टों को
पोषित किया है अपनी देखरेख में, पर कभी कभी लगता है
कोई समझ पाता मेरी हंसी के पीछे छुपे दर्द को
या फिर काश चेहरा होता हॄदय का दर्पण…..
मीनाक्षी मेहंदी
हाँ! आपको आती है कला छुपाने की।
ReplyDeleteसही समझे हैं😊😊
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ReplyDeleteअलग रंग -ढंग से सजी सुन्दर कविता बधाई अनु जी |
ReplyDeleteधन्यवाद किन्तु अनु नहीं मेहंदी
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