(अहिल्या के राम)
सारे अरमान सपने बिसरा कर मैं जिए जा रही थी
यंत्र की भाँति हर आदेश मन प्राण से निभा रही थी
क्यूँ राम बन कर कोई आ गया मेरे जीवन में पिया
इस पत्थर की अहिल्या को पुर्नजीवित कर दिया
फूट गयीं अनछुये स्पर्श से शिला में सम्वेदनायें
जग गईं अदृश्य सानिध्य से यंत्र में भावनायें
रिमोट चालित पराधीन रोबॉट ही सबको भाता है
स्वेच्छा स्वाधीनता से भला स्त्री का क्या नाता है
तुम भी आशंकित हो गये हो यंत्र के जीवित होने से
बन्धन बांध बचाना चाहते हो घोसलें को उजड़ने से
ज्ञात है तुमने अथक श्रम से जुटाया है दाना गुटका
पर मैंने भी करीने से सजाया संवारा है तिनका तिनका
कुछ क्षण स्वछंद उड़ने दो निगलेगी नहीं जग की भीड़
आश्वस्त रहो मुक्त हो कर भी सहेजूँगी ये अतिप्रिय नीड़
Adbhut!!!!!
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