Saturday, 19 November 2016

प्रिय मित्र को समर्पित

तेरा मेरा नेहबंध कैसा है
समझे हो तुम कभी
मैँ तो जब भी कोशिश करती हूँ
कुछ सुलझा कुछ अनसुलझा_सा पाती हूँ
क्यों एक कसक सी है जीवन में............
मैं समझ नहीं पाती हूँ
मन बंट गया हो जैसे दो भागों में............
हर पल एक अधूरापन सा घेरा रहता है
सुबह सुबह अँगड़ाई के साथ ही
याद तुम्हारी आती है
साँझ लेकर आती है
जुदाई का गहरा सा अहसास
कैसा है ये अपना नेह बंध
कभी एकदम खुला कभी अनजाना सा
अगर तुम समझ पाये हो इस बंधन को
तो समझा दो मुझे भी
जिस तरह समझा देते हो हर बार
दोस्ती की नयी परिभाषा
कैसा है ये अपना नेहबंध
कैसा है ये अपना नेहबंध......

Note: Any Person can make you realise how wonderful the world is..
But
Only few will make you realise how wonderful you are in their world.
Care for those few..

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