Sunday, 20 November 2016

"तुम"- एक प्रेम समीकरण



"तुम - एक प्रेम समीकरण"
गणित विषय का आकर्षण है,
उसमें समाई अदभुत जादूगरी
इसके जोड़ भाग हैं जीवन में,
रचे उतार चढ़ाव की बाजीगरी
विभिन्न आँकड़ो से युक्त है ये,
अनूठा अदभुत अनुपम संसार
शून्य से अनंत तक का इसमें,
समाया अनोखा वृहद विस्तार
सबसे सुहावने लगते हैं वो ,
मान लो वाले जटिल सवाल
गढ़ते हैं अज्ञात पद व मान,
बुनते समीकरणों का जाल
ऐसे ही कल्पना जगत में,
'तुम' हो मेरा माना हुआ पद
तुम्हें मान व अपना प्रेम मिला,
रच देती हूँ कभी कोई पद्ध
'तुम' नहीं हो ,कहीं नहीं हो ,
ना जड़ में हो ना ही चेतन में
पर मेरे अज्ञात तुम बसे हो,
मेरे चिंतन एवं अवचेतन में
मेरा काल्पनिक प्रेम ज्यूँ हो,
गणित का सवाल उलझा
लगा लो कोई भी सूत्र ढूंढ के,
ये यूँ ही रहेगा अनसुलझा
'तुम' हो अंजान, स्वप्निल,
जगमगाते मेरा अंतरकरण
तथा उतर आते हो बन कर,
मेरी रचना में प्रेम समीकरण
                मीनाक्षी मेहंदी



टिप्पणी : ना तो कुछ पूरा झूठ होता है ना कुछ पूरा सच।कुछ सपना,कुछ यथार्थ ,कुछ कल्पना और कुछ कहीं अवचेतन में बसी कोई छवि। उसी से उतर कर आते हैं रचनाओं के पात्र ,जो कभी जाने पहचाने लगते हैं तो कभी अंजाने...कभी अपने से और कभी पराये.....

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