Thursday, 3 November 2016

"प्रीत मेरी जल जैसी"



"प्रीत मेरी जल जैसी"
प्रीत मेरी जल जैसी निर्मल
तुम्हारा कहा सब हो जाता इसमें घुलनशील
बस तुम्हारी उपेक्षा ही रह जाती है अघुलनशील
तैर जाती है काई बन कर
देती प्राणवायु मेरे जज्बातों को
एवं कागज पर उकेर देती हूँ कुछ शब्द
प्रीत मेरी जल जैसी पारदर्शी
जिसमें समा जाती हैं तुम्हारी सब भावनायें
रंग जाती हैं तुम्हारे ही रंग में मेरी कामनाएं
तुम जब जिस रूप में मुझमें झांकते हो
दिखा देती हूँ वैसा ही तुमको प्रतिबिंब
एवं पटल पर बिखेर देती हूँ कभी इंद्रधनुष
प्रीत मेरी जल जैसी शीतल
सूर्य रश्मियाँ जब होती तीव्र प्रचंड
उड़ उड़ बन जाती हूँ मेघ उदंड
आतुर हो उठती हूँ करने को विनाश
तुम्हारी स्नेहिल दॄष्टि से हो जाती शांत
एवं तटबंध में समा जाती बन सरिता
प्रीत मेरी जल जैसी
             मीनाक्षी मेहंदी

2 comments:

  1. ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!

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  2. अच्छे शब्दों में तारीफ की है शुक्रिया हौसलाअफजाई के लिये

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