Wednesday, 23 November 2016

क्या मुझे तुमसे प्यार है...

क्या मुझे तुमसे प्यार है ?
रूके रूके अटके कुछ झिझकते शब्दों में तुमने पूछा क्या मुझे तुमसे प्यार है
क्या कहूं क्या नहीं इसके प्रत्युत्तर में
आज तक इस प्यार को ही नहीं समझ पाई
कैसा है स्वरूप रंग ढंग इसका
सबने बताया अपनी मनोस्थिति अनुसार शब्दों में
आच्छादित किया भावनाओं की अभिव्यक्ति से
पर कोई परिभाषा कोई भी वाक्य
कर सकता है वणर्न इसका पूर्णयता
कदापि नहीं और न ही कभी इसे
व्यक्त किया जा सकेगा लिखित में
प्यार को वगीकृत भी किया जाता है
रिश्तो के अनुसार नापा तौला जाता है
तुमसे क्या है रिश्ता मेरा कौन समझ सकता है
ना हैं खून के नाते ना भावनाओं का बंधन
केवल इंसान से इंसान का ही नहीं है ये आत्मीय संबंध
कभी लगता है मैं तुम्हारी माँ थी पिछले जन्म में
कभी सोचती हूँ तुम्हें अपने पिता की तरह
कभी पग पग पर साथ देने वाले बंधु
कभी मुझे समझने वाले मित्र
कई रूपों में तुम द्रष्टिगत होते हो
पर ये ज्वलंत प्रश्न है-क्या मुझे तुमसे प्यार है
कहते हैं औरत प्यार ही करती है या नफरत ही
उसके मध्य का कोई मार्ग ज्ञात नहीं उसे
नफरत तो निस्संदेह तुमसे नहीं है मुझे
तो फिर प्यार ही होगा तुमसे
किन्तुु मुझे प्यार किससे नहीं है
जगत की प्रत्येक निर्जीव सजीव वस्तु से
प्रत्येक दृश्य अदृश्य कण से
बिखरी विचारधाराओं व कल्पनाओं से
सभी से है प्यार मुझे
हाँ तुमसे भी बेहद प्यार करती हूँ लेकिन
इसकी मात्रा रंग रूप नहीं बता सकती
अपना प्यार व्यक्त नहीं कर सकती
ना ही प्यार का प्रतिफल चाहती हूं
तुम भी अनुभव करो इसको सुगंध की तरह
रिश्तों का नाम देकर कम ना करो
इस असीम अगोचर अतुल्निय अकल्पनीय प्यार को
जो बिना बंधन बांधे है
तुम्हें और मुझे…….
                  मीनाक्षी मेहंदी

टिप्पणी: ये मेरी पहली रचना है इसलिए मुझे सर्वप्रिय है,जिसके लिए लिखी उन्हें कभी नहीं दे पायी या दे पाऊँगी या आवश्यकता ही नही उन्हें पढ़ाने की वो इन सब आकर्षणों से परे हैं,
 पर हाँ तब से मैंने अपनी भावनाओं को कलमबद्ध करना सीख लिया....
"इसलिये उन्हें कोटिशः धन्यवाद"

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