Thursday, 17 November 2016

अर्थ का अर्थ



"धन संसाधन उपलब्ध करा सकता है किंतु विकल्प नहीं बन सकता"
 आदिमानव को जीवन सुचारू रूप से चलाने हेतु माँस,गुफा,खाल व हथियार चाहिए होते थे।कभी किसी भूखे आदिमानव ने अपनी किसी अतिरिक्त वस्तु को देने की पेशकश की होगी और जिस मानव पर माँस अतिरिक्त होगा उसने उसे खाल ,आवास या हथियार के बदले भोजन उपलब्ध करा दिया होगा।इस तरह से उपलब्ध संसाधनों का आदान प्रदान शुरू हुआ होगा।ये प्रथा सदियों से चली आ रही है तथा किसी ना किसी रूप में अब भी प्रचलित है।
    धीरे धीरे संसाधनों की विभिन्नता के संग आवश्यकता अनुभव हुई एक प्रतीक पूंजी की जिसे संग्रहित किया जा सके एवं अन्य मानवों से आवश्यकता होने पर उपलब्ध साधन क्रय किये जा सकें।
     किसी दुर्लभ धातु को अनाज,पालतू पशुओं,हथियार व अन्य आवश्यक वस्तुओं की सूची में सम्मलित कर लिया गया जिसके टुकड़ों अथवा सिक्कों से संसाधन क्रय किये जा सकते थे।
  प्रतीक मुद्रा के प्रयोग से मानव के इतिहास में बड़ा  क्रांतिकारी परिवर्तन आया,
अब मानव एक ही वस्तु का उत्पादन करके उससे प्रतीक मुद्रा के बदले विक्रय कर अपनी अन्य आवश्यक वस्तुएं क्रय कर लेता था।
 ये पूंजीवादी परिपाटी इतनी सुविधाजनक हो गयी कि अधिकांश व्यक्तियों को लगने लगा कि रुपया पैसा ही जीवन का आधार है।
    धन,सोना ,चांदी व अन्य कीमती वस्तुओं का मूल्य तभी तक है जब तक वो हमें प्रकृति द्वारा उपलब्ध विभिन्न संसाधन उपलब्ध कराते हैं,यदि आप किसी सुनसान जगह पहुँच जाते हैं तब जीवित रहने में आपकी जेब में धरी नोटों की गड्डियां व तन पर लादा हुआ सोना चांदी सहायक नही होगा।
   ये केवल प्रतीक हैं प्रकृति द्वारा उपलब्ध संसाधनों को सुविधापूर्वक प्राप्त करने हेतु।
  " इस अर्थ(धन) के महत्व का अर्थ समझ लें तो जीवन अर्थपूर्ण हो जायेगा।"


टिप्पणी: रजनीश का कथन है "तुम जिसको पैसा समझते हो वह एक मान्यता है अगर किसी दिन सरकार बदल जाए और रातोंरात यह एलान किया जाए कि फलाँ-फलाँ नोट नहीं चलेगा तो तुम क्या करोगे ? मान्यता को बदलने में देर कितनी लगती है? चंद कागज के टुकड़ों पर किसी का चित्र और हस्ताक्षर करने से वह मुद्रा बन गई और व्यवहारिक काम में आने लगी ... अब मान्यता बदल गई तो वह मुद्रा दो कौड़ी की हो जाएगी ... सारा खेल मान्यता का है .... जड़ वस्तुऐं मूल्यहीन हैं महज एक मान्यता है जिसने उन्हे मूल्यवान बना दिया है .... स्वर्ण रजत हीरे मुद्रा इनका मूल्य महज मान्यता का आरोपण है। जिस दिन तुम जगत की मान्यताओं से मुक्त हो गये उस दिन सब मिट्टी हो जाएगा उस दिन तुम चेतना को उपलब्ध होगे जो अनमोल है"

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