Saturday, 12 November 2016

पहचान लोगे ना.......???


"मिलूंगी तो हूँ ही मैं तुमसे"

मिलूंगी तो हूँ ही मैं तुमसे
इस जन्म नही तो अगली बार
नही जानती कब किस रूप में
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

ग्रीष्म की तप्त ऋतु में
प्रकट हूंगी जल स्रोत बन
तुम्हारी तृषा समेटने को
या शीतल छाया बन छाऊँगी
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

क्या पता बन जाऊँ कोई वृक्ष
तुम्हारी पसन्द अमलतास सा
या निहारो दृष्टि भर वो गुलाब
तुम्हारे आंगन में बन जाऊंगी
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

कभी बिन बुलाए ही बनूँगी गुनगुनी धूप सर्द मौसम की
गर्माहट भरा विश्राम देकर
झमेले तुम्हारे सभी भूलाऊंगी
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

ओढ़ा दूँगी मेघों का आवरण
बदली बन तुम्हें भिगो जाऊंगी
खिल जाऊंगी इंद्रधनुष बनके
बिखर कर भी रंग दिखाऊंगी
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

यदि हो प्रकृति की अनुकम्पा
तो सहचर बन मिल जाऊंगी
अर्पण और समर्पण से प्रीत अपनी सदियों तक निभाऊंगी
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

वादा रहा मिलूंगी अवश्य
कुछ पल या सदा के लिये
मूर्त या अमूर्त किसी भी
रूप में तुम्हारे पास आऊंगी
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे...
         मीनाक्षी मेहंदी

1 comment: