Saturday, 12 November 2016

तुम तो दोस्त......थे...?????

"तुम तो दोस्त थे"
रह रह कर चुभाते रहे ह्रदय में शूल,
हम रूठे तो मनाया क्यों नहीं?
अर्थहीन हो गए जब सब शब्द,
आँसू पोंछ गले से लगाया क्यों नहीं?
कुछ कहा तुमने कुछ सुना हमने,
लगा कहासुनी हुई हमारे मध्य,
हम चल दिए पलट कर रुख ,
आवाज़ लगा क़दमों को रोका क्यों नहीं?
कुछ कहना सितम हो सकता है,
बेबस मन सुन कर चुप हो सकता है,
तुम्हे सुन चुप हो गए हम ,
पहल कर मौनावरण तोड़ा क्यों नहीं?
छलनी हो गया एक पल में,
सदियों में जमा था जो विश्वास,
अविश्वास पनपने दिया तुमने,
स्नेह,आदर जोड़ा क्यों नहीं?
किया स्वीकार ये कटु सत्य,
ना थी कोई भूल दोनों की,
तदापि बढ़ा परस्पर वैमनस्य,
आँसुओ से प्रायश्चित किया क्यों नहीं?
तुम तो दोस्त थे प्रिय अतिप्रिय,
अटूट था हमारा सम्बन्ध,
रिश्ता चूर चूर किया किसने
साथ दोस्ती का निभाया क्यों नहीं?
               मीनाक्षी मेहँदी

1 comment:

  1. बहुत सुन्‍दर भावों को शब्‍दों में समेट कर रोचक शैली में प्रस्‍तुत करने का आपका ये अंदाज बहुत अच्‍छा लगा,

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