एक प्रसिद्ध चलचित्र का दृश्य सलोनी के मस्तिष्क पर अंकित हो गया था जिसमें नायिका चाय ले कर नायक को जगाने आती है उसकी भीगी जुल्फों से टपकता जल कुछ ऐसी रुमानियत नायक के हृदय में जगाता है जिसकी छाप नायिका की अधमिटी बिंदिया में दिखती है। अगले दिन वो भी विनीत के पास चाय लेकर गयी और अपनी भीगी जुल्फों से उसे जगाने लगी तभी विनीत झल्ला गया ये क्या सर्दी में ठंडा पानी टपका रही हो छी दूर हटो यहाँ से...
लेकिन मूवी में तो नायक खुश हुआ था आप भी तो चाव से देख रहे थे वो दृश्य....
अरे उसे ये सब अभिनय करने के लिये ₹ मिलते हैं असलियत में तो ज़ुल्फ़ के पानी से घिन ही आएगी ना।अब छोडो ये फ़िल्मी बातें और दूसरी चाय बना कर लाओ ये ठंडी हो गयी तुम्हारे फ़िल्मी बुखार में।
सलोनी चाय बनाते सोच रही है यदि वो विनीत को ₹ दे दे तो वो फ़िल्मी नायक की भांति अभिनय करेंगें क्या कुछ पल के लिए ही सही ...उसे खुश करने को।
टिप्पणी: माना कि फिल्में और हक़ीकत अलग होते हैं किंतु कुछ फ़िल्मी होने से रुमानियत जागती हो या जीवन में नया रंग भरता हो तो कभी कभी थोड़ा सा फ़िल्मी हो जाने में क्या हर्ज है।
लेकिन मूवी में तो नायक खुश हुआ था आप भी तो चाव से देख रहे थे वो दृश्य....
अरे उसे ये सब अभिनय करने के लिये ₹ मिलते हैं असलियत में तो ज़ुल्फ़ के पानी से घिन ही आएगी ना।अब छोडो ये फ़िल्मी बातें और दूसरी चाय बना कर लाओ ये ठंडी हो गयी तुम्हारे फ़िल्मी बुखार में।
सलोनी चाय बनाते सोच रही है यदि वो विनीत को ₹ दे दे तो वो फ़िल्मी नायक की भांति अभिनय करेंगें क्या कुछ पल के लिए ही सही ...उसे खुश करने को।
टिप्पणी: माना कि फिल्में और हक़ीकत अलग होते हैं किंतु कुछ फ़िल्मी होने से रुमानियत जागती हो या जीवन में नया रंग भरता हो तो कभी कभी थोड़ा सा फ़िल्मी हो जाने में क्या हर्ज है।
माना पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा से कम भी नहीं।
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