Saturday, 31 March 2018

२६जनवरी का कार्यक्रम(१७)

२६जनवरी का  कार्यक्रम (१७)
   मेहंदी ने खूब उत्साहपूर्वक घर पर बताया कि वो सरस्वती वंदना में सबसे आगे खड़ी होगी और एक और सामूहिक नृत्य में उसे चुना गया है,प्रतिदिन विद्यालय में अभ्यास भी कराया जायेगा।घर पर भी वो अभ्यास के दौरान बताये गये स्टेप्स दोहराती रहती।एक दिन पापा ने कहा पढ़ाई पर भी ध्यान देती रहना परीक्षा के दिन नृत्य काम नहीं आयेगा।मेहंदी के दिल को बात लग गयी वो पहले की तरह जीजान से पढ़ाई में लग गयी।एक शाम विद्युत आपूर्ति ना होने पर वो मोमबत्ती जला कर पढ़ रही थी ,पढ़ते पढ़ते इतनी लीन हो गयी कि उसके खुले केश मोमबत्ती की ज्वाला से झुलसने लगे उसे पता ही ना चला,बड़े भाई किसी कार्य से आये और चिल्ला उठे मेहंदी के बालों में आग लग गयी और जल्दी से मेहंदी को मोमबत्ती से परे किया।आग से कोई अन्य नुकसान तो नहीं हुआ किन्तु एक तरफ के बाल बहुत जल गए तब मम्मी ने आव देखा ना ताब झट से मेहंदी का मुंडन करा दिया।अगले दिन स्कार्फ़ पहना कर विद्यालय भेज दिया।मैम ने जब अभ्यास कराना शुरू किया तो स्कार्फ उतारने को बोला मेहंदी के नानकुर करने पर खुद ही स्कार्फ़ खींच दिया और गंजा सर देख कर आवक रह गईं।विद्यालय की  छुट्टी होते ही मेहंदी के घर गयीं और बोलीं भाभीजी ये क्या कर दिया मैंने तो सुन्दर होने के कारण इसे सबसे आगे खड़ा किया था,अब गंजी लड़की कैसी लगेगी,आप ने ये क्या किया, अब तो इसे कार्यक्रम में नहीं रख पाऊँगी। मम्मी ने पूरी बात बताई तो मैम सर ठोंक कर रह गईं।मेहंदी को पढ़ाई में तल्लीन होने की सज़ा पूरे दिन स्कार्फ़ पहनने तथा कार्यक्रम से बाहर होने की मिली।

Sunday, 25 March 2018

उतना लीजिये थाली में ,जो ना जाये नाली में(१६)

"उतना लीजिये थाली में ,जो ना जाये नाली में"

     मेहंदी के बाबा उसके चाचाजी व चाची जी के साथ पुश्तैनी घर में रहते थे कुछ दिनों के लिए रहने आये।सब बच्चे बाबा से खूब खुश थे उनसे तरह तरह की बातें करते,मेहंदी तो मितभाषी थी बाबा से कम ही बोलती।बाबा भी उसे कम ही तजव्वो देते थे।बाबा की एक अजीब आदत थी जब वो खाना खाते तो ख़ूब बड़े बड़े ग्रास प्रत्येक सब्जी से निकालते थे।मेहंदी की मम्मी हमेशा से खाना ना छोड़ने और जितना खा सकते हो उतना ही लेने की सलाह देती थीं।सभी सदस्य इसका पालन भी करते थे,अपवाद स्वरूप ही कभी भोजन कोई थाली में छोड़ता था।बाबा को ऐसा करते देख उसके मुख से निकल गया कि बाबा तो आधा खाते हैं आधा बर्बाद करते हैं,बसजी बाबा का पारा चढ़ गया जरूर इसकी माँ ने सिखाया होगा वरना ये तो बोलती ही नहीं है।गुस्से में उन्होंने खाना खाने से भी इंकार कर दिया।मम्मी मनाती रह गयी पर वो मुँह फुलाये बैठे रहे
डॉ साहब के आने पर उन्हें सब बताया।अपनी लाड़ली के लिए तो वो कुछ सुन ही नहीं सकते थे उन्होंने अपने पिताजी को समझाया कि शशी बच्चों को खाना बर्बाद करने को मना करती है वही मेहंदी ने सीखा है, ग्रास निकलते हुए उसने पहली बार देखा तो उसे लगा आप खाना छोड़ रहे हो,इसलिए ऐसा कह दिया फिर मम्मी से नई थाली परोस कर लेन को कहा और प्रेम से अपने सामने खिलाया तब बाबा माने।बूढ़े बच्चे एक समान होते हैं इसलिये ही कहा जाता है।मेहंदी अपने बाबा से थोड़ा और सहमी रहने लगी कि कहीं मुँह से गलत ना निकल जाये तथा ये भी सोचती रही कि गलती तो उसकी थी पर बाबा अपनी बहू से इतना नाराज़ क्यों हुए,आखिर किसी की भी गलती का ठीकरा बहू के ऊपर ही क्यों फूटता है।

Monday, 19 March 2018

बुद्धधु बक्से से लगाव (१५)

           बुद्धधु बक्से से लगाव (१५)
    घर में आते ही सबका चहेता बन गया बुद्धधु बक्सा।मेहंदी तो संध्या समय जब कार्यक्रम आते तभी विद्यालय से मिला गृहकार्य करती।लिखते लिखते टीवी के बिलकुल पास पहुँच जाती तब डॉ साहब को समाचार देखने में व्यवधान होता और वो चुटकी लेते अरे बेटी ज़रा दूर से टीवी देखो वरना प्रतिमा पुरी टीवी में खींच लेगी।मेहंदी वाकई में डर जाती उसे लगता पापा कह रहे हैं तो सच ही होगा।मेहंदी को प्रतिमा पुरी कोई मदन पुरी नामक फ़िल्मी खलनायक की बहन ही लगती थी बाद में तो अमरीश पुरी का पर्दापण भी फिल्मों में हो गया पहले हो गया होता तो दोनों की ही बहन लगतीं। फिर तो नये नये टीवी एंकर व समाचार वाचकों को मेहंदी पहचानने लगी और वो सब रोज के जीवन का एक हिस्सा ही बन गये।रोज रात का खाना टीवी के सामने ही होता, चित्रहार या फिल्म तो सप्ताह में एक ही बार आते थे रोज के समाचार तथा कृषिदर्शन भी देख लिए जाते थे।शायद वो कार्यक्रम देखने से अधिक चलती व बोलती तस्वीरों की दीवानगी होती थी।कवि सम्मेलन या क्रिकेट मैच देखने का शौक भी पापा के साथ साथ मेहंदी को भी हो गया।लेकिन पढ़ाई में कोई कोताही नहीं होती थी,कभी भी अधूरे या गलत काम के लिए अध्यापिका से मेहंदी डाँट नहीं पड़ी।कुल मिला कर बुद्धधु बक्से के साथ रह कर डॉ साहब के बच्चे बुद्धधु नहीं बन रहे थे।

Friday, 16 March 2018

बुद्धधु बक्से का आगमन(१४)

         बुद्धधु बक्से का आगमन(१४)
    एक छोटे से बक्से से आती आवाज रेडियो में तो सुनते ही थे किंतु एक छोटे से बक्से में चलते फिरते चित्र, गाने और फिल्में देखने की दीवानगी ही कुछ और होती थी।बड़े बच्चों सभी को भाता था ये बक्सा,चित्रहार की दीवानगी तो चरम पर होती ही थी पर रविवार को प्रसारित होने वाली फ़ीचर फिल्म की दीवानगी का आलम तो निराला ही होता था।उस समय मोहल्ले क्या शहर में ही कुछ प्रतिष्ठित लोगों के यहाँ ही टीवी सेट होता था।ऐसे में टीवी वाले परिवार में रविवार शाम बच्चों का जमघट लग जाया करता था।मेहंदी और उसके भाई भी सामने रहने वाले डॉ परिवार के यहाँ रविवार को फिल्म देखने पहुंच गए,उन्हें आदर पूर्वक सोफे पर बैठा दिया गया।सारे परिवार के लोग व उनके परिचित भी चाव से चलचित्र देखने लगे।उनके घर का पूरा जीना बच्चों से भर गया।किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पर आवाज सुन कर ही खुश थे।कोई गम्भीर मूवी आ रही थी जिसमें संवाद कम थे,अपेक्षित आनंद ना आने पर जीने में भरे बच्चों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया जिससे सब झल्ला उठे।डॉ साहब ने सबसे शांत रहने को कहा किन्तु शोर में कोई कमी नहीं आयी जब डॉ साहब का धैर्य जबाब दे गया तो वो हंटर उठा लाये व हवा में उसे फटकारने लगे।जीने से सब नदारद हो गये ।मेहंदी के बालमन को लगा कहीं उसके साथ भी ऐसा व्यवहार ना हो वो उठ कर घर आ गयी।पापा ने फ़िल्म खत्म होने से पहले आने का कारण पूछा तो उसने सब बयां कर दिया,पापा उसके भोलेपन पर हँस पड़े।तब तक दोनों भाई भी फिल्म  देख कर आ गए और मेहंदी को चिढ़ाने लगे कि हम तो पूरी फिल्म देख कर आये तू क्यों आ गयी।डॉ साहब ने अगले दिन ही बुद्धधु बक्सा क्रय कर लिया कि मेरी लाडली अपने घर पर ही टीवी देखेगी, पूरी रिश्तेदारी में शायद उन्हीं के घर सबसे पहले टीवी आया था।
    

Thursday, 1 March 2018

होली की नादानी(१३)

                होली की नादानी(१३)
    होली के रंगारंग उत्सव पर मौसी और ममेरी बहन आये थे।डॉ साहब के मित्र ख़ूब उत्साहित कि साली साहिबा आयीं हैं उनके साथ होली खेलने को मिलेगी।
    मेहंदी और ममेरी बहन को होली से बहुत हो डर लगता था।वो तरह तरह के लाल हरे रंग पुतवाना फिर उन्हें हटाना, बड़ा ही बोरिंग काम लगता था।तो उन दोनों ने तय किया कि होली नहीं खेलेंगें किन्तु किसी को बतायेंगें भी नहीं कि हमें होली पसन्द नही है।सुबह होते ही डॉ साहब व भाइयों ने रंग घोलना और हुड़दंग मचाना शुरू कर दिया।मम्मी ने उन सब को बाहर भेजा ये कहकर ,जब खाना बन जायेगा तब घर में रंग शुरू करना।दोनों बहनें खाना बना कर निबटी ही थीं तभी डॉ साहब के दोस्तों की टोली आ गयी।ममेरी बहन और मेहंदी घबरा गईं अब तो ये सब हमे पोत देंगें क्या करें।मेहंदी को ध्यान आया घर में एक ख़ूब बड़ा सन्दूक है जिसमें रजाई गद्दे रखे रहते हैं,उसके पीछे इतना स्थान था कि दोनों छिप जातीं।वही छिप कर वो बाहर से आता हुड़दंग सुनती रहीं और डरतीं भी रहीं, कोई उन्हें यहाँ ढूंढ ना ले।जब छिपे छिपे दोनों थक गयी तो धीरे धीरे बाहर निकल कर आयीं,तो क्या देखा ख़ूब रंग हो गया है तथा सब नहाने और धुलाई आदि में व्यस्त हैं। बाहर से आये सब चले गए हैं, उन दोनों से किसी ने पूछा भी नहीं कि कहाँ थी रंग क्यों नही लगाया है।उन दोनों को रंगों से बचने की ख़ुशी भी हो रही थी और दुःख भी हो रहा था कि कोई उनके साथ होली खेलने के लिए लालायित ही नहीं था और वो व्यर्थ में ही छिपी रहीं।कभी कभी ऐसा भी होता है दुनिया के डर कहीं और नहीं हमारे भीतर ही छिपे होते हैं हम खुद को डराते रहते हैं तथा इस कारण जग के कई निराले रंगों का सामना करने से वंचित रह जाते हैं।