Wednesday, 28 February 2018

आम का धमाल(१२)

आम का धमाल(१२)
   मेहंदी को आम बहुत पसंद थे, पके हुये रस से भरे हुये आम।एक दिन वो आम उठा कर आँगन में आ गयी इत्मीनान से खाने के लिए ,अभी एक टुकड़ा ही चखा था कि ना जाने कहाँ से एक बन्दर आ गया और आम छीनने लगा किन्तु मेहंदी तो मेहंदी थी उसने भी आम नही दिया ।अब दृश्य कुछ यूँ बना मेहंदी आम खाते हुए आगे आगे और उसका फ्रॉक पकड़े हुए बन्दर पीछे पीछे।मम्मी पूजा कर रही थी मेहंदी ने उन्हें आवाज़ दी .....मम्मी बन्दर से बचाओ।या तो माँ ने सुना नहीं या उनके लिए पूजा अधिक महत्वपूर्ण थी।मेहंदी की चीखें सुनकर पापा और बड़े भाई कर आये तथा सारा माजरा समझ कर मेहंदी से कहा कि आम फेंक दो। पर नही आम का लोभ इतनी आसानी से कैसे छूट जाये,आख़िर पापा और भाई ने बन्दर को भगा दिया तब मेहंदी ने चैन से आम खाया। एक सवाल किन्तु मेहंदी के जहन में घूमता रहा यहीं पास में पूजा करती मम्मी ने उसकी आवाज नही सुनी और अंदर दूर कमरे में बैठे पापा व भाई ने सुन ली।क्या एक माँ के लिये सन्तान से बढ़कर भी कोई और महत्वपूर्ण कार्य हो सकता है।माँ क्यों नही आयीं उसे बचाने........आख़िर क्यों...?

Tuesday, 27 February 2018

पिता - सुरक्षा कवच (११)

   " पिता-सुरक्षा कवच"
   डॉ साहब मिलनसार तथा व्यवहारिक हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे अतः उनका मित्रता का दायरा भी विस्तृत था,हालाँकि रोगियों से फुर्सत कम ही मिलती थी फिर भी व्यवसायिक तथा व्यक्तिगत जीवन में संतुलन बनाए रखते थे।उनके घर आने जाने वाले मित्र 4 बरस की मेहंदी को भी ख़ूब लाड़ किया करते थे।ऐसे ही एक डॉ मित्र ने एक बार मेहंदी के पेट पर बर्थमार्क छूकर एक ऐसी अप्रत्याशित बात कही जो मेहंदी को बड़ी अटपटी लगी उसने पापा को बताई ।पापा ने ध्यानपूर्वक सुना और उसके बाद वो अंकल कभी घर नहीं आये, क्यों नही आये ये जानने की आवश्यकता मेहंदी को कभी अनुभव नही हुई वो तो खुश थी कि अटपटे अंकल अब नहीं आते हैं।साथ ही पापा पर दृढ़ विश्वास कायम हो गया कि उसके पापा उसकी हर परिस्थिति में रक्षा करने की क्षमता रखते हैं, उस दिन से मेहंदी की हर छोटी बड़ी समस्या को पापा की अदालत में ही पेश किया जाने लगा और मेहंदी को उनके फैसले से कभी निराश नहीं होना पड़ा।इतनी छोटी आयु में ही उसे समझ आ गया कि पापा ही उसका सुरक्षा कवच हैं।उसके पापा ही उसके मित्र भी थे जिन्हें वो निसंकोच सब बता देती थी।
टिप्पणी: हर पिता को ऐसा ही होना चाहिये बच्चों की बातों को उपेक्षित ना कर पूरे ध्यान से सुन समाधान करना चाहिये, पिता या माता बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करेंगें तो बच्चे गलत संगत में जाने से बच सकते हैं विशेषकर एकल परिवारों में .....



Friday, 23 February 2018

खाल तुम्हारी हड्डी हमारी(१०)

                खाल तुम्हारी हड्डी हमारी"
   मेहंदी सरल स्वभाव की थी किंतु पढ़ने में कुशाग्र थी, इसके भाइयों को पढ़ाने आचार्यजी आते थे वो जो सवाल भाइयों को करने देते थे उन्हें मेहंदी उनसे पहले ही झट बता देती थी।पिता तो अपनी होनहार बाला पर वारी वारी जाते थे।एक बार आचार्यजी ने कुछ सवाल करने को दिये जिन्हें मेहंदी ने झट बता दिया किंतु छोटे भाई ने लिख कर भी गलत कर दिया।आचार्यजी का पारा चढ़ गया और उन्होंने कहा कि छोटी बहन ने ऐसे ही बता दिया और तुमसे लिख कर भी सही ज़बाब नहीं आया तथा एक झापड़ लगा दिया, छोटे भैया को भी आक्रोश आ गया उन्होंने कुर्सी पर खड़े होकर कस कर चपत आचार्यजी के लगा दी।उन्होंने मम्मी को बुलाया व सब हाल बताया मम्मी कुछ कहतीं तभी जीना चढ़ते हुए पापा की पदचाप गूँजी। वस्तुस्थिति पता चलने पर डॉ साहब ने अपने बेटे को ख़ूब पीटा ये कहते हुए कि गुरु पर हाथ उठाता है तेरी हिम्मत कैसे हुई गुरूजी पर हाथ उठाने की। आचार्यजी तो स्वयं डॉ साहब का गुस्सा देख हैरान हो गये और कहने लगे जाने दीजिए नासमझ बालक है धीरे धीरे समझदार हो जायेगा।
   डॉ साहब ने कहा कि आज से इसे जितना पीटना हो पढ़ाने के लिए पीटियेगा ये कुछ नहीं कहेगा । खाल तुम्हारी हड्डी हमारी , जितनी सख़्ती ज़रूरी हो पढ़ाने के लिये वो आजमाइयेगा। उस दिन के बाद भैया का चुलबुलापन तो बरक़रार रहा किन्तु वो पढ़ाई में भी मन एकाग्र करने लगे।

Sunday, 11 February 2018

झूला बना जिंदगी व मौत का झूला(९)

     लवली से दोस्ती होने के साथ ही मेहंदी उसके साथ ही विद्यालय से घर वापस आने लगी।जाती भाइयों के साथ थी और आती लवली के साथ।एक दिन लवली उसे अपने घर ले गयी उसके बरामदे में झूला लगा  हुआ था,ये देख मेहंदी तो ख़ुशी से नाच उठी,फटाक से झूले पर बैठी और खूब झोंठे लिये।लवली के घर में उपस्थित चाची व उसकी मम्मी ने भी उसे ख़ूब लाड़ किया और कहा जब मन हो झूला झूलने आ जाया करो।चाहो तो छुट्टी में रोज़।जी आंटीजी मेहंदी तो प्रसन्न हो गयी किन्तु लवली को मेहंदी के इतने लाड़ अच्छे नहीं लगे।वो मेहंदी से कतराने लगी।उधर वंश मेहंदी के लिए रोज सीट रखता कोई उस सीट पर बैठने की कोशिश करता तो उससे हाथापाई भी करता किन्तु मेहंदी उससे अधिक लवली से बात करने को लालायित रहती थी।एक दिन सुबह विद्यालय जाने से पूर्व मेहंदी ने मम्मी को बता दिया कि मैं आज देर से आऊंगी लवली के घर झूला झूलने जाऊंगी।उस दिन भी लवली  मेहंदी को उपेक्षित करती रही परन्तु  मेहंदी को इतनी समझ ही कहाँ थी,उसने लवली से कहा कि वो उसके घर चलेगी झूलने,लवली ने बेमन से अच्छा कह दिया किन्तु छुट्टी में जल्दी से बाहर चली गयी।वंश मेहंदी का हाथ पकड़े छुट्टी में बाहर निकला पर वो तो लवली को ही ढूंढ रही थी तभी उसे लवली आगे जाती हुई दिखी,मेहंदी वंश के मना करने के पश्चात भी आनन फ़ानन हाथ छुड़ा कर भागी और सामने से आती किसी गाड़ी से टकरा कर गिर गयी।मूर्छित होते होते मेहंदी ने सुना कोई कह रहा था अरे ये तो डॉ नरेश की बेटी है और जब मेहंदी को होश आया तो पापा उसके उपचार में लगे थे।सौभाग्यवश मेहंदी को अधिक चोट नही आई थी किन्तु उस दिन से वंश सहम गया था शायद उसे लग रहा था कि उसकी हाथ पकड़ने की जिद की वजह से मेहंदी भागी वरना वो हल्के हल्के जाती और उस दिन से वंश की मासूम मोहब्बत  सहम कर ख़ामोश हो गयी।
      

Monday, 5 February 2018

विद्यालय का प्रथम दिवस(८)



मेहंदी की शिक्षा दीक्षा प्रारम्भ हो गई, उसकी पढ़ने में बेहद रूचि थी।जब भाई पढ़ने जाते थे तब वह भी विद्यालय जाने के लिये रोती थी।आखिर वो दिन आया जब वो पहले दिन विद्यालय गयी।इतने सारे बच्चे एक साथ वो तो घबरा कर भैया के पीछे प्रार्थना की पंक्ति में लग गयी,भैया ने बताया नर्सरी की पंक्ति दूसरी है पर वो नहीं हटी।भैया उसे उसकी कक्षा में सबसे आगे की सीट पर बैठा आये। पास में बैठी लड़की लवली व लड़के वंश से परिचय हुआ मेहंदी ल शब्द का उच्चारण र कह कर करती थी उसने लवली को रवरी कह दिया ये सुन लवली का मुँह बन गया पर भोली मेहंदी उसे अपनी सहेली मानने लगी। उनकी कक्षा अध्यापिका के बड़े बड़े नाखून देख कर मेहंदी का तो जैसे खून ही जम गया।पर जब अध्यापिका(जिन्हें सब मैम कह रहे थे) ने अपने हाथों की विभिन्न मुद्राएं बना कर ट्विंकल ट्विंकल लिटल स्टार सिखाई उसका भय भी जाता रहा।ये तो उसने घर पर भी सीखी थी जब उसके भाइयों को घर पर सर पढ़ाने आते थे तब।उसने वो कविता एक्शन सहित दोहरा ली।मैम भी खुश हो गईं।पता लगा कि वंश मैम का बेटा है,मेहंदी से हाथ मिला कर उसने उसे अपनी दोस्त बना लिया और कहा कि तुम्हारे लिये सबसे आगे की सीट रोज रखूँगा। इस तरह एक प्यारा दिन विद्यालय में बिता कर मेहंदी घर आकर पापा की प्रतीक्षा करने लगी और उनके आने पर सारी बातें विस्तार से बताईं । ट्विंकल ट्विंकल सुनाई उसका उत्साह देख डॉ साहब भी निहाल हो गये।