Monday, 29 May 2017

पूर्णागिरी : यात्रा संस्मरण

रात्रि भर यात्रा कर सुबह सुबह चार बजे माँ पूर्णागिरी के द्वारा शोभायमान अन्नपूर्णा शिखर तक पहुंच गए।
 पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के पिथौरागढ़ जनपद में अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह ५१सिद्ध पीठों में से एक है।यहाँ पर माँ सती का नाभि अंग गिरा था।
   तीन ओर से वनाच्छादित पर्वत शिखरों एवं प्रकृति की मनोहारी छटा के बीच कल-कल करती सात धाराओं वाली शारदा नदी के तट पर बसा टनकपुर नगर माँ पूर्णागिरि के दरबार में आने वाले यात्रियों का मुख्य पडाव है। बस से टनकपुर पहुँच कर यहाँ से टैक्सी द्वारा पूर्णागिरी पहुँच कर शुरू की माँ के भवन तक की यात्रा। जगह जगह यात्रियों के ठहरने के लिए विश्राम गृह बने हुए हैं,जहाँ पर स्नान आदि क्रियाओं से निर्वित हुआ जा सकता है। पहाड़ी शीतल जल से स्नान कर रात्रि सफर की सारी थकान दूर हो गयी तथा तरोताजा होकर माता के भवन तक चल दिये। ग्रीष्म अवकाश होने के कारण भक्तों की संख्या विशाल थी जो शीघ्रताशीघ्र माँ के दर्शन करने हेतु उमंग भर रही थी।
    गर्मी के मौसम में थोड़ी सी दूर चलते ही पसीने से लथपथ होने पर बैचैन हो गये तभी माँ ने भक्तों की परेशानी समझ कर अचानक जलवर्षा आरम्भ कर दी ततपश्चात तो पूरी यात्रा में ही ये संयोग रहा कि जब जब हम रुके तब तब बारिश और जब जब हम चलें तब घटा थम जाये। माँ की इस असीम अनुकम्पा से अनुग्रहित होते हुए जय माता दी के जयकारे लगाते हुए , रास्ते के सुरम्य दृश्यों को निहारते हुए चढ़ाई तय करते रहे।कई मायें छोटे बच्चों को गोदी में लिए आईं थी,कुछ लोग अपने बच्चों को मुंडन संस्कार के लिए लाए थे, कई भक्त सरलता से चल नहीं पा रहे थे और कई उत्साह से लगातार चलते ही जा रहे थे,विभिन्न प्रान्त व प्रदेश से आये हुए भक्त केवल मैया के दर्शनों की लालसा में एकाकार हो रहे थे। इसी अदम्य उत्साह व तरंग में कब माँ की प्रतिमा तक पहुँच गये पता ही ना चला तथा माँ के आलौकिक दर्शन करके तो समस्त कष्ट व थकान उड़न छू हो गये। भवन से उतर कर कुछ पल विश्राम तथा खान पान के पश्चात टैक्सी द्वारा पुनः टनकपुर वापसी जहाँ हमारी बस खड़ी थी।
  मार्ग में जगह जगह कई मंदिर थे सबकी अपनी अलग ही कथा किन्तु झूठे का मंदिर नाम से अलग लगा तो वहां की कथा मालूम की ...
  एक बार एक संतान विहीन सेठ को देवी ने स्वप्न में कहा कि मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। सेठ ने मां पूर्णागिरि के दर्शन किए और कहा कि यदि उसे पुत्र प्राप्त हुआ तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनवाएगा। मनौती पूरी होने पर सेठ ने लालच कर सोने के स्थान पर तांबे के मंदिर में सोने का पालिश लगाकर जब उसे देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर आने लगा तो टुन्यास नामक स्थान पर पहुंचकर वह उक्त तांबे का मंदिर आगे नहीं ले जा सका तथा इस मंदिर को इसी स्थान पर रखना पडा। आज भी यह तांबे का मंदिर या झूठे का मंदिर के नाम से जाना जाता है।
   टनकपुर से 10 km दूर स्थित शारदा नदी पर बने बाँध पर पहुँचे, नदी का अति आकर्षक बेहद चौड़ा पाट व अपार जलराशि देख ह्रदय प्रफुल्लित हो गया।बाँध पार करके महेंद्र नगर ,नेपाल में स्थित है सिद्ध बाबा मंदिर।
  कहा जाता है कि एक बार एक साधु ने अनावश्यक रूप से मां पूर्णागिरि के उच्च शिखर पर पहुंचने की कोशिश की तो मां ने रुष्ट होकर उसे शारदा नदी के उस पार फेंक दिया किंतु दयालु मां ने इस संत को सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात कर उसे आशीर्वाद दिया कि जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा वह उसके बाद तुम्हारे दर्शन भी करने आएगा। जिससे उसकी मनौती पूर्ण होगी।
    बस के पार्किंग स्थल से डैम तक बैटरी चालित रिक्शा संचालित होती है फिर डैम पैदल पार करके मोटर साइकिल चालक मिल जाते हैं जो महेंद्र नगर तक ले जाते हैं।सिद्ध बाबा के दर्शन कर पुनः बस में सवार हो चल दिये वापस अपने शहर की ओर..
    नानकमत्ता भी वापसी यात्रा में एक पड़ाव था किंतु तीव्र बारिश के कारण लग रहा था वहां नहीं जा पाएंगे परन्तु बारिश  वहां पहुंचते ही थम गयी, वहाँ के गुरूद्वारे में प्रवेश करते ही असीम शांति प्राप्त हुई।
   हमारी बस के सभी यात्री भी हँसमुख और मस्तमौला थे, सब एक दूसरे की जानपहचान के थे तो अपनापन तो था ही जिसके कारण यात्रा का आनंद कई गुना हो गया।ऐसी यात्रायें यदि समय समय पर होती रहे तो मन में ऊर्जा भर जाती है तथा इतने कष्टों भरी यात्रा हो तो घर आकर जो सुकून मिलता है उसका तो कहना ही क्या,सम्भवतः इसी कारण तीर्थ यात्राओं आदि का प्रावधान किया गया है।
                       

Sunday, 21 May 2017

कुछ खट्टी कुछ मीठी

रूचि ने बाहुबली दिखाने ना ले जाने के लिये रचित को नाराज़गी में कहा तलाक़ तलाक़ तलाक़
और धाड़ से कमरा बन्द कर सो गयी।
  रचित बेचारगी से सोफ़े पर ही सो गया।सुबह रूचि का आक्रोश व रचित दोनों शांत थे।रचित ने खुद ही चाय बना कर पी ली और ब्रेकफास्ट नहीं किया।रूचि की बातों का हाँ या ना में ही ज़बाब दे रहा था।
 ऑफिस जाते हुए रचित रूचि को उसके ऑफिस छोड़ते हुए जाता था।रूचि जब बाइक पर बैठने लगी तो रचित ने कहा नहीं देवी मैं आपके साथ नहीं जा सकता।
  अब रूचि का सब्र ज़बाब दे गया क्यों उसने खीज कर कहा।अब आप मेरे लिए पराई नारी हैं रात आपने मुझे तलाक़ दे दिया है।
 अरे वो तो मैंने गुस्से व मजाक में कह दिया था।
  गुस्से में ही सही किन्तु अब हम अजनबी हैं और बाइक दौड़ा कर ले गया।
  भुनभुनाती हुई रूचि ऑटो से ऑफिस गयी।
रचित रात को देर से आया और बिना खाना खाये ही सोफे पर सो गया।
 दो दिन बाद रचित के ऑफिस से आते ही रूचि बिफ़र गयी,ये कब तक चलेगा।मैं ये तलाक़ रद्द करती हूँ।
  नही तलाक़ ऐसे रद्द नहीं होता है।
 तो फिर से शादी कर लेते हैं।
  फिर से शादी भी ऐसे नहीं होगी।
तब क्या तरीका है।
तुम्हारे ऑफिस में जो मुग्धा काम करती है वो मुझे बहुत पसंद है उससे मेरी ...... तो हमारी फिर से शादी हो सकती है रचित ने शरारत से आँखे नचाई।
  रचित....रूचि ने बनावटी गुस्से से उसे कुशन मारने शुरू कर दिये ,रचित ने उसके हाथ पकड़ कर उसे अपने पास खींच लिया तथा कमरा उनकी खिलखिलाहटों से गुंजायमान हो गया।
           मीनाक्षी मेहंदी

Saturday, 20 May 2017

सलोनी की कहानी (10)

सलोनी की दादी व माँ ने कहा पति के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है तो सलोनी ने ये बात गिरह में बांध ली।पहली बार उसे जब खाना बनाने का अवसर मिला तो समस्त पाककला का प्रदर्शन करने की ठान ली। बड़े मनोयोग से मैन कोर्स और डेज़र्ट सब बनाया। मलाई कोफ़्ता,दाल मखानी,फ्रूट रायता,मेथी मटर मलाई, मसाला भिन्डी, बटर नान .... व गुलाब जामुन
 सभी परिवार के सदस्य खाने बैठे और तारीफ़ दर तारीफ़ सुन कर सलोनी फूली नहीं समा रही थी।
   विनीत को जब उसने पानी का गिलास दिया तो वो भुनभुना उठा - पानी क्यों किया गिलास में भी घी भर दो जैसा सब्जियों में है।
   सलोनी हतप्रभ ,इतना घी तो परंपरागत व्यंजनों में डलता ही है यदि शिकायत करनी ही थी तो अकेले में कह देते कि मुझे घी पसन्द नहीं है....
   अब दिल तक जाने का कौन सा रास्ता ढूँढना होगा....

टिप्पणी: यदि ये कहते हुए कि खाना बहुत स्वादिष्ट बना है किंतु मुझे कम घी का सादा भोजन पसन्द है अपनी बात समझाई जाती तो शायद सलोनी का मन भारी ना होता ......

Sunday, 14 May 2017

Happy mother's day

मातृ दिवस की बधाई
माँ सृष्टि है,जननी है वो है तो हम हैं किंतु केवल सृजन के कारण ही माँ महान नहीं है,असली महत्व तो पालन पोषण का है,बच्चे का पहला गुरु माँ ,जो कच्ची मिट्टी को आकार देती है कभी थपथपा कर कभी सहारा देकर      प्रयास हमेशा अच्छी आकृति गढ़ने का जो संसार के प्रतिमानों के भी अनुकूल हो।कभी कठोर कभी नर्म बन कर लगी रहती है माँ अपनी संतान को उत्कर्ष बनाने में।
    जिंदगी भर छैनी और हथौड़ी लिये तराशती रहती है अपनी ही गढ़ी आकृति को और ममता से निहारती रहती है उसे उम्र भर।अपना जीवन समर्पित कर देती है बच्चों की एक मुस्कान की ख़ातिर।कभी डरा कर कभी रुला कर कभी हँसा कर कभी खेल खेल में कभी भावुक बन कर हमें सिखाती है दुनियादारी और दुनिया का सामना करने का आत्मविश्वास देती है।
     बच्चा भले की कभी माँ से नाराज़ हो जाये माँ सदैव उसका हित ही चाहती है माँ  की नाराज़गी भी बच्चे की भलाई के लिए ही होती है।
    माँ के लिये अधिक क्या लिखूं "माँ तो माँ ही होती है"

Saturday, 13 May 2017

फाँस

जब हमारी त्वचा में कोई तिनका आ जाता है तो उसे फाँस कहते हैं,जब तक फाँस निकल नहीं जाती हमारा मन वहीं अटका रहता है,इतने वृहद तन में एक तिनका पूरा ध्यान आकर्षित कर लेता है,जब तक वो फाँस निकल ना जाये तब तक कुछ नहीं भाता है।
      ऐसे ही हमारे मन में कोई घटना या बात अटक जाती है और फाँस की भाँति चुभती रहती है किंतु मन की फाँस तन की फाँस के विपरीत होती है......
    तन की फाँस तब चुभती है जब कुछ अवांछित आ जाता है पर मन की फाँस तब चुभती है जब कुछ मिला हुआ छिन जाये या फिर कुछ कमी हम अपने जीवन में अनुभव करते हो।
    तन की फाँस तो सरलता से निकल जाती है व इसके बाद हम उसे भूल भी जाते हैं किन्तु मन की फाँस आसानी से नहीं निकलती तथा रह रह कर कसकती रहती है।
    अभी एक समारोह में एक संभ्रान्त महिला से भेंट हुई औपचारिक बातचीत में मैंने पूछा आपके कितने बच्चे हैं ,उन्होंने कहा 7 किन्तु मेरी एक बेटी नहीं रही ,एक व्यक्ति  के लिए सन्तान खोने से बड़ा दुःख कोई नहीं हो सकता किन्तु जो जीवित हैं उनकी बातचीत ना करके  उनका मन वहीँ अटका हुआ था....
   ऐसा होना स्वाभाविक ही है विछोह का दुःख असहनीय होता है किन्तु जो कभी मिला ही नही उसका भी दुःख गजब होता है ...
   काश और अगर से इन दुखों की उत्तपत्ति होती है, मनुष्य का पूरा ध्यान कमी पर ही केंद्रित हो जाता है एवं वो कमी उसे टीस देती रहती है ठीक फाँस की ही भाँति।अतीत में जो हमारे साथ हुआ अथवा जो हम परिस्थितिवश नहीं कर पाये उन बातों की कसक रह रह कर होती है तथा हमारा अतीत नासूर बन वर्तमान को दुखाता रहता है।
    " जो बीत गयी,वो बात गयी"  
 यदि सुखी रहना है तो वर्तमान में जीना सीखो,जो है जैसा है  उसे वैसा ही स्वीकार कर लो तो जीवन में आनन्द छा जायेगा ।
   सम्भवतः आत्मपीड़ा में भी एक सुख मिलता है हम स्वयं को दुःखी रख कर दूसरों की सहानुभूति एकत्र कर स्वयं को महत्वपूर्ण समझने लगते हैं,यदि मनुष्य अपनी सोच समयानुसार परिवर्तित करता रहे तो उसे कोई दुखी नहीं कर सकता।
   आवश्यकता है मन की फाँस निकाली जाये और उस जगह को उपचारित कर दिया जाये सकारात्मक सोच व वर्तमान में जीने की कला सीख कर।
                                 मीनाक्षी मेहंदी

Thursday, 11 May 2017

बुद्ध पुर्णिमा की शुभकामनाएं



वैशाख मास के पूर्णिमा के दिन बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध का जन्म हुआ इसलिए इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है ।
महात्मा बुद्ध का प्रथम धर्म -उपदेश: भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के नाम से प्रसिद्ध है जो उन्होंने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को दिया था। भेदभाव रहित होकर हर वर्ग के लोगों ने महात्मा बुद्ध की शरण ली व उनके उपदेशों का अनुसरण किया। कुछ ही दिनों में पूरे भारत में ‘बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघ शरणम् गच्छामि’ का जयघोष गूंजने लगा। मगध और उसके पड़ोसी राजा भी बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए। महात्मा बुद्ध ने पहली बार सारनाथ में प्रवचन दिया था। उन्होंने कहा कि केवल मांस खाने वाला ही अपवित्र नहीं होता, क्रोध, व्यभिचार, छल, कपट, ईर्ष्या और दूसरों की निंदा भी इंसान को अपवित्र बनाती है। मन की शुद्धता के लिए पवित्र जीवन बिताना जरूरी है।

*निर्वाण और धर्म प्रचार*  बौद्ध धर्म विश्व के प्राचीन धर्मों में से एक है। बौद्ध धर्म की सभी शिक्षाएं आत्मा की शुद्धता से संबंधित हैं। महात्मा बुद्ध की शिक्षा के चार मौलिक सिद्धांत है : संसार दुखों का घर है, दुख का कारण वासनाएं हैं, वासनाओं को मारने से दुख दूर होते हैं, वासनाओं को मारने के लिए मानव को अष्टमार्ग अपनाना चाहिए।
*अष्टमार्ग यानी, शुद्ध ज्ञान, शुद्ध संकल्प, शुद्ध वार्तालाप, शुद्ध कर्म, शुद्ध आचरण, शुद्ध प्रयत्न, शुद्ध स्मृति और शुद्ध समाधि।*

*भगवान बुद्ध का धर्म प्रचार 40 वर्षों तक चलता रहा। अंत में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में पावापुरी नामक स्थान पर 80 वर्ष की अवस्था में ई.पू. 483 में वैशाख की पूर्णिमा के दिन ही महानिर्वाण प्राप्त हुआ ।

Tuesday, 9 May 2017

दृष्टिकोण

पुरुष दृष्टिकोण

   हाँ,याद नहीं रहते मुझे दिनाँक, माह व वर्ष
कब हुआ वो पहली नज़र का असर,
 किस दिन छाया मीठी बातों का खुमार,
दिल पर कब हुआ तेरा अख़तियार ,
तुमसे हुआ है प्यार ये कब किया स्वीकार,
कब शरमाईं सकुचाती आईं थीं मेरे घर द्वार,
क्या फर्क पड़ता है इससे कि ये सब कब हुआ,
मैं मधुर स्मृति पल कभी भी कर लेता हूँ साकार
हमारा अमर प्रेम नहीं है मोहताज़ दिनाँक व सन् का 
किसी इतिहास की तरह

स्त्री दृष्टिकोण

हाँ,याद रहते हैं मुझे दिनाँक,माह व वर्ष
कब सहला गयी वो पहली नज़र,
किस दिन हुआ तुम्हारी बातों का असर,
कब मेरे अंतर में हुआ सब सिफ़र,
छा गया बस तुम्हारा ही खुमार,
कब आई मैं झिझकती सिमटती तुम्हारे शहर,
क्या फ़र्क पड़ता है यदि मैं रखती हूं सब याद,
वो सभी मधुर स्मृति पल लिपट जाते हैं दिनाँक व सन् में 
जैसे कोई ऐतिहासिक दस्तावेज और हमारा प्रेम भी अमिट लगने लगता है मुझे किसी इतिहास की तरह

                                     मीनाक्षी मेहंदी

Tuesday, 2 May 2017

सलोनी की कहानी (9)- चॉकलेट का विज्ञापन बनाम शेयर के दाम


क्या मस्ती भरा विज्ञापन- जानदार शॉट पर शानदार थिरकती अभिव्यक्ति, सलोनी और उसके सभी कजिन्स को ये विज्ञापन बेहद पसंद था। जब भी ये विज्ञापन देखते उनका मन भी झूमने लगता और बिंदास हो कर कहने लगते दिल जो कह रहा है वो सुनो ....हालाँकि अगले ही पल दिमाग की सुनते और डूब जाते कोर्स की किताबों का रट्टा मारने ।किन्तु कुछ पल के लिये ये विज्ञापन एक ऊर्जा तो निहित कर ही देता था तन मन में।
    विवाह पश्चात विनीत के कार्यालय से आने के पश्चात जब सलोनी उसके लिये चाय लेकर गयी तभी ये विज्ञापन आ गया और सलोनी चहक कर बताने लगी हम भाई बहन इस विज्ञापन की आवाज आने पर पढ़ाई छोड़ कर आ जाते थे इसे देखने ,मालूम है इसे " best ad of the year " का award मिला है।
    मैं भी इसका शेयर खरीदने की सोच रहा था 30 वाला शेयर 40 का हो गया...
   सलोनी के मन में कुछ चटक सा गया और वो सोचने लगी क्या कभी वो दिन आएगा जब विनीत शेयर भाव से इतर भी कोई बात उसके संग शेयर करेगा।

टिप्पणी: कई बार बहुत छोटी छोटी बातें हमारे मन से झड़ती रहती हैं चटकन के साथ किर्च किर्च कर और पता नहीं लगता कब रिक्तिता घिर आयी हमारे अंदर।

सलोनी की कहानी(8)- रुमानियत की हक़ीकत

एक प्रसिद्ध चलचित्र का दृश्य सलोनी के मस्तिष्क पर अंकित हो गया था जिसमें नायिका चाय ले कर नायक को जगाने आती है उसकी भीगी जुल्फों से टपकता जल कुछ ऐसी रुमानियत नायक के हृदय में जगाता है जिसकी छाप नायिका की अधमिटी बिंदिया में दिखती है। अगले दिन वो भी विनीत के पास चाय लेकर गयी और अपनी भीगी जुल्फों से उसे जगाने लगी तभी विनीत झल्ला गया ये क्या सर्दी में ठंडा पानी टपका रही हो छी दूर हटो यहाँ से...
   लेकिन मूवी में तो नायक खुश हुआ था आप भी तो चाव से देख रहे थे वो दृश्य....
   अरे उसे ये सब अभिनय करने के लिये ₹ मिलते हैं असलियत में तो ज़ुल्फ़ के पानी से घिन ही आएगी ना।अब छोडो ये फ़िल्मी बातें और दूसरी चाय बना कर लाओ ये ठंडी हो गयी तुम्हारे फ़िल्मी बुखार में।
  सलोनी चाय बनाते सोच रही है यदि वो विनीत को ₹ दे दे तो वो फ़िल्मी नायक की भांति अभिनय करेंगें क्या कुछ पल के लिए ही सही ...उसे खुश करने को।

टिप्पणी: माना कि फिल्में और हक़ीकत अलग होते हैं किंतु कुछ फ़िल्मी होने से रुमानियत जागती हो या जीवन में नया रंग भरता हो तो कभी कभी थोड़ा सा फ़िल्मी हो जाने में क्या हर्ज है।