रात्रि भर यात्रा कर सुबह सुबह चार बजे माँ पूर्णागिरी के द्वारा शोभायमान अन्नपूर्णा शिखर तक पहुंच गए।
पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के पिथौरागढ़ जनपद में अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह ५१सिद्ध पीठों में से एक है।यहाँ पर माँ सती का नाभि अंग गिरा था।
तीन ओर से वनाच्छादित पर्वत शिखरों एवं प्रकृति की मनोहारी छटा के बीच कल-कल करती सात धाराओं वाली शारदा नदी के तट पर बसा टनकपुर नगर माँ पूर्णागिरि के दरबार में आने वाले यात्रियों का मुख्य पडाव है। बस से टनकपुर पहुँच कर यहाँ से टैक्सी द्वारा पूर्णागिरी पहुँच कर शुरू की माँ के भवन तक की यात्रा। जगह जगह यात्रियों के ठहरने के लिए विश्राम गृह बने हुए हैं,जहाँ पर स्नान आदि क्रियाओं से निर्वित हुआ जा सकता है। पहाड़ी शीतल जल से स्नान कर रात्रि सफर की सारी थकान दूर हो गयी तथा तरोताजा होकर माता के भवन तक चल दिये। ग्रीष्म अवकाश होने के कारण भक्तों की संख्या विशाल थी जो शीघ्रताशीघ्र माँ के दर्शन करने हेतु उमंग भर रही थी।
गर्मी के मौसम में थोड़ी सी दूर चलते ही पसीने से लथपथ होने पर बैचैन हो गये तभी माँ ने भक्तों की परेशानी समझ कर अचानक जलवर्षा आरम्भ कर दी ततपश्चात तो पूरी यात्रा में ही ये संयोग रहा कि जब जब हम रुके तब तब बारिश और जब जब हम चलें तब घटा थम जाये। माँ की इस असीम अनुकम्पा से अनुग्रहित होते हुए जय माता दी के जयकारे लगाते हुए , रास्ते के सुरम्य दृश्यों को निहारते हुए चढ़ाई तय करते रहे।कई मायें छोटे बच्चों को गोदी में लिए आईं थी,कुछ लोग अपने बच्चों को मुंडन संस्कार के लिए लाए थे, कई भक्त सरलता से चल नहीं पा रहे थे और कई उत्साह से लगातार चलते ही जा रहे थे,विभिन्न प्रान्त व प्रदेश से आये हुए भक्त केवल मैया के दर्शनों की लालसा में एकाकार हो रहे थे। इसी अदम्य उत्साह व तरंग में कब माँ की प्रतिमा तक पहुँच गये पता ही ना चला तथा माँ के आलौकिक दर्शन करके तो समस्त कष्ट व थकान उड़न छू हो गये। भवन से उतर कर कुछ पल विश्राम तथा खान पान के पश्चात टैक्सी द्वारा पुनः टनकपुर वापसी जहाँ हमारी बस खड़ी थी।
मार्ग में जगह जगह कई मंदिर थे सबकी अपनी अलग ही कथा किन्तु झूठे का मंदिर नाम से अलग लगा तो वहां की कथा मालूम की ...
एक बार एक संतान विहीन सेठ को देवी ने स्वप्न में कहा कि मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। सेठ ने मां पूर्णागिरि के दर्शन किए और कहा कि यदि उसे पुत्र प्राप्त हुआ तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनवाएगा। मनौती पूरी होने पर सेठ ने लालच कर सोने के स्थान पर तांबे के मंदिर में सोने का पालिश लगाकर जब उसे देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर आने लगा तो टुन्यास नामक स्थान पर पहुंचकर वह उक्त तांबे का मंदिर आगे नहीं ले जा सका तथा इस मंदिर को इसी स्थान पर रखना पडा। आज भी यह तांबे का मंदिर या झूठे का मंदिर के नाम से जाना जाता है।
टनकपुर से 10 km दूर स्थित शारदा नदी पर बने बाँध पर पहुँचे, नदी का अति आकर्षक बेहद चौड़ा पाट व अपार जलराशि देख ह्रदय प्रफुल्लित हो गया।बाँध पार करके महेंद्र नगर ,नेपाल में स्थित है सिद्ध बाबा मंदिर।
कहा जाता है कि एक बार एक साधु ने अनावश्यक रूप से मां पूर्णागिरि के उच्च शिखर पर पहुंचने की कोशिश की तो मां ने रुष्ट होकर उसे शारदा नदी के उस पार फेंक दिया किंतु दयालु मां ने इस संत को सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात कर उसे आशीर्वाद दिया कि जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा वह उसके बाद तुम्हारे दर्शन भी करने आएगा। जिससे उसकी मनौती पूर्ण होगी।
बस के पार्किंग स्थल से डैम तक बैटरी चालित रिक्शा संचालित होती है फिर डैम पैदल पार करके मोटर साइकिल चालक मिल जाते हैं जो महेंद्र नगर तक ले जाते हैं।सिद्ध बाबा के दर्शन कर पुनः बस में सवार हो चल दिये वापस अपने शहर की ओर..
नानकमत्ता भी वापसी यात्रा में एक पड़ाव था किंतु तीव्र बारिश के कारण लग रहा था वहां नहीं जा पाएंगे परन्तु बारिश वहां पहुंचते ही थम गयी, वहाँ के गुरूद्वारे में प्रवेश करते ही असीम शांति प्राप्त हुई।
हमारी बस के सभी यात्री भी हँसमुख और मस्तमौला थे, सब एक दूसरे की जानपहचान के थे तो अपनापन तो था ही जिसके कारण यात्रा का आनंद कई गुना हो गया।ऐसी यात्रायें यदि समय समय पर होती रहे तो मन में ऊर्जा भर जाती है तथा इतने कष्टों भरी यात्रा हो तो घर आकर जो सुकून मिलता है उसका तो कहना ही क्या,सम्भवतः इसी कारण तीर्थ यात्राओं आदि का प्रावधान किया गया है।
पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के पिथौरागढ़ जनपद में अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह ५१सिद्ध पीठों में से एक है।यहाँ पर माँ सती का नाभि अंग गिरा था।
तीन ओर से वनाच्छादित पर्वत शिखरों एवं प्रकृति की मनोहारी छटा के बीच कल-कल करती सात धाराओं वाली शारदा नदी के तट पर बसा टनकपुर नगर माँ पूर्णागिरि के दरबार में आने वाले यात्रियों का मुख्य पडाव है। बस से टनकपुर पहुँच कर यहाँ से टैक्सी द्वारा पूर्णागिरी पहुँच कर शुरू की माँ के भवन तक की यात्रा। जगह जगह यात्रियों के ठहरने के लिए विश्राम गृह बने हुए हैं,जहाँ पर स्नान आदि क्रियाओं से निर्वित हुआ जा सकता है। पहाड़ी शीतल जल से स्नान कर रात्रि सफर की सारी थकान दूर हो गयी तथा तरोताजा होकर माता के भवन तक चल दिये। ग्रीष्म अवकाश होने के कारण भक्तों की संख्या विशाल थी जो शीघ्रताशीघ्र माँ के दर्शन करने हेतु उमंग भर रही थी।
गर्मी के मौसम में थोड़ी सी दूर चलते ही पसीने से लथपथ होने पर बैचैन हो गये तभी माँ ने भक्तों की परेशानी समझ कर अचानक जलवर्षा आरम्भ कर दी ततपश्चात तो पूरी यात्रा में ही ये संयोग रहा कि जब जब हम रुके तब तब बारिश और जब जब हम चलें तब घटा थम जाये। माँ की इस असीम अनुकम्पा से अनुग्रहित होते हुए जय माता दी के जयकारे लगाते हुए , रास्ते के सुरम्य दृश्यों को निहारते हुए चढ़ाई तय करते रहे।कई मायें छोटे बच्चों को गोदी में लिए आईं थी,कुछ लोग अपने बच्चों को मुंडन संस्कार के लिए लाए थे, कई भक्त सरलता से चल नहीं पा रहे थे और कई उत्साह से लगातार चलते ही जा रहे थे,विभिन्न प्रान्त व प्रदेश से आये हुए भक्त केवल मैया के दर्शनों की लालसा में एकाकार हो रहे थे। इसी अदम्य उत्साह व तरंग में कब माँ की प्रतिमा तक पहुँच गये पता ही ना चला तथा माँ के आलौकिक दर्शन करके तो समस्त कष्ट व थकान उड़न छू हो गये। भवन से उतर कर कुछ पल विश्राम तथा खान पान के पश्चात टैक्सी द्वारा पुनः टनकपुर वापसी जहाँ हमारी बस खड़ी थी।
मार्ग में जगह जगह कई मंदिर थे सबकी अपनी अलग ही कथा किन्तु झूठे का मंदिर नाम से अलग लगा तो वहां की कथा मालूम की ...
एक बार एक संतान विहीन सेठ को देवी ने स्वप्न में कहा कि मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। सेठ ने मां पूर्णागिरि के दर्शन किए और कहा कि यदि उसे पुत्र प्राप्त हुआ तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनवाएगा। मनौती पूरी होने पर सेठ ने लालच कर सोने के स्थान पर तांबे के मंदिर में सोने का पालिश लगाकर जब उसे देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर आने लगा तो टुन्यास नामक स्थान पर पहुंचकर वह उक्त तांबे का मंदिर आगे नहीं ले जा सका तथा इस मंदिर को इसी स्थान पर रखना पडा। आज भी यह तांबे का मंदिर या झूठे का मंदिर के नाम से जाना जाता है।
टनकपुर से 10 km दूर स्थित शारदा नदी पर बने बाँध पर पहुँचे, नदी का अति आकर्षक बेहद चौड़ा पाट व अपार जलराशि देख ह्रदय प्रफुल्लित हो गया।बाँध पार करके महेंद्र नगर ,नेपाल में स्थित है सिद्ध बाबा मंदिर।
कहा जाता है कि एक बार एक साधु ने अनावश्यक रूप से मां पूर्णागिरि के उच्च शिखर पर पहुंचने की कोशिश की तो मां ने रुष्ट होकर उसे शारदा नदी के उस पार फेंक दिया किंतु दयालु मां ने इस संत को सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात कर उसे आशीर्वाद दिया कि जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा वह उसके बाद तुम्हारे दर्शन भी करने आएगा। जिससे उसकी मनौती पूर्ण होगी।
बस के पार्किंग स्थल से डैम तक बैटरी चालित रिक्शा संचालित होती है फिर डैम पैदल पार करके मोटर साइकिल चालक मिल जाते हैं जो महेंद्र नगर तक ले जाते हैं।सिद्ध बाबा के दर्शन कर पुनः बस में सवार हो चल दिये वापस अपने शहर की ओर..
नानकमत्ता भी वापसी यात्रा में एक पड़ाव था किंतु तीव्र बारिश के कारण लग रहा था वहां नहीं जा पाएंगे परन्तु बारिश वहां पहुंचते ही थम गयी, वहाँ के गुरूद्वारे में प्रवेश करते ही असीम शांति प्राप्त हुई।
हमारी बस के सभी यात्री भी हँसमुख और मस्तमौला थे, सब एक दूसरे की जानपहचान के थे तो अपनापन तो था ही जिसके कारण यात्रा का आनंद कई गुना हो गया।ऐसी यात्रायें यदि समय समय पर होती रहे तो मन में ऊर्जा भर जाती है तथा इतने कष्टों भरी यात्रा हो तो घर आकर जो सुकून मिलता है उसका तो कहना ही क्या,सम्भवतः इसी कारण तीर्थ यात्राओं आदि का प्रावधान किया गया है।