"जो मान लिया वो ठान लिया"
निम्न मध्यम परिवार का लड़का ,पढ़ने में कुशाग्र,व्यवहारिक बुद्धि में प्रखर,मन में चिकित्सक बनने की प्रबल कामना।परिवारजनों ने नाम रखा नरेंद्र किन्तु नाम ना भाने पर बदल कर नरेश कर लिया( अर्थ तो दोनों नामों का राजा ही है किंतु इससे बालक जमाने की बात ज्यूँ की तयूं नहीं अपनाएगा अपने दिल की सुनेगा इस प्रवर्ति का परिचय मिलता है) एक दिन ज्योतिष ने यूँ ही हस्त रेखाएं बांच कर कहा तुम कभी डॉ. नहीं बन सकते(सम्भवतः आर्थिक पृष्ठभूमि देख) बस उसी उसी दिन से ठान लिया कि डॉ ही बनना है जुट गये लगन से।20 ₹ माह की ट्यूशन पढ़ा पढ़ा कर इंटर की पढ़ाई की उसके बाद मेडिकल में चयन हो गया किन्तु पिताजी ने कह दिया कि वो कोई आर्थिक सहयोग नहीं करेंगें, स्नातक डिग्री ली किन्तु मन से चिकित्सक बनने की आस ना निकली पुनः प्रवेश परीक्षा में बैठे व लखनऊ के प्रतिशिष्ठ किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज हेतु चयनित हुये तब दादाजी संबल बने और आर्थिक सहयोग करने का वादा किया तथा वो लड़का आगे चलकर एक बेहतरीन चिकित्सक बना।किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिये शिद्दत से प्रयत्न किये जायें तो कोई ना कोई राह अवशय निकलती है तो उन्होनें डॉ बनने की इच्छा को मान लिया तो यही बनना है ये ठान लिया।यदि लगन सच्ची हो तो राहें निकल ही आती हैं।
निम्न मध्यम परिवार का लड़का ,पढ़ने में कुशाग्र,व्यवहारिक बुद्धि में प्रखर,मन में चिकित्सक बनने की प्रबल कामना।परिवारजनों ने नाम रखा नरेंद्र किन्तु नाम ना भाने पर बदल कर नरेश कर लिया( अर्थ तो दोनों नामों का राजा ही है किंतु इससे बालक जमाने की बात ज्यूँ की तयूं नहीं अपनाएगा अपने दिल की सुनेगा इस प्रवर्ति का परिचय मिलता है) एक दिन ज्योतिष ने यूँ ही हस्त रेखाएं बांच कर कहा तुम कभी डॉ. नहीं बन सकते(सम्भवतः आर्थिक पृष्ठभूमि देख) बस उसी उसी दिन से ठान लिया कि डॉ ही बनना है जुट गये लगन से।20 ₹ माह की ट्यूशन पढ़ा पढ़ा कर इंटर की पढ़ाई की उसके बाद मेडिकल में चयन हो गया किन्तु पिताजी ने कह दिया कि वो कोई आर्थिक सहयोग नहीं करेंगें, स्नातक डिग्री ली किन्तु मन से चिकित्सक बनने की आस ना निकली पुनः प्रवेश परीक्षा में बैठे व लखनऊ के प्रतिशिष्ठ किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज हेतु चयनित हुये तब दादाजी संबल बने और आर्थिक सहयोग करने का वादा किया तथा वो लड़का आगे चलकर एक बेहतरीन चिकित्सक बना।किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिये शिद्दत से प्रयत्न किये जायें तो कोई ना कोई राह अवशय निकलती है तो उन्होनें डॉ बनने की इच्छा को मान लिया तो यही बनना है ये ठान लिया।यदि लगन सच्ची हो तो राहें निकल ही आती हैं।
बिल्कुल सही। लगन सच्ची हो तो राहें निकल ही आती हैं।
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