Wednesday, 31 January 2018

स्थानांतरण(७)

स्थानांतरण के संग स्थान ही नहीं बदलता रहता बदल जाता है समूचा परिवेश,मन के जुड़ाब,आबोहवा आस पड़ोस, घर की संरचना,पुनः नये घर को विन्यासित करना जहाँ नई उमंग देता है वहीं पीछे छोड़ दिए गए घर और पड़ोस की यादें मन को झकझोरती रहती हैं।लड़कियाँ तो मायके को छोड़ ससुराल आती हैं पर मायके से सम्बन्ध जुड़ा रहता है किंतु स्थानांतरण के पश्चात तो कुछ परिजन जो बहुत निकट हो गए होते हैं दुबारा कभी मिलते है कभी नहीं भी मिलते जैसे यात्रा के समय कुछ सहयात्रियों से अच्छी जान पहचान हो जाती है और फिर वो अपने रास्ते हम अपने रास्ते।
        मेहंदी तो शैशवावस्था में थी पता नहीं उसे उस परिवार की हुड़क लगी होगी या नहीं जिन्हें सौंप कर माँ सारे घर के कार्य निबटा लिया करती थीं।शिशु कुछ कह नहीं सकता एवं बड़े होने पर तो उसे स्वयं भी नहीं पता होता कितने परिजनों का स्नेह उसे मिला है।पता नहीं डाकू वाली घटना का प्रभाव था, दुर्घटना के बाद अपनों के निकट होने की आवश्यकता अनुभव करना या कुछ अन्य कारण, डॉ साहब का स्थानांतरण अपने गृहजनपद के निकट ही हो गया।कुछ लोगों से बिछड़ने की पीड़ा तथा अपने रिश्ते नातों के करीब आने की ख़ुशी के साथ नई जगह अपनी गृहस्थी सज़ा दी गयी।मेहंदी के जीवन का भी नया अध्याय शुरू होने वाला था।अब बाल्यावस्था में कदम रखने के संग ही विद्यार्थी जीवन का भी शुभारम्भ होने वाला था।

दुर्घटना(६)

नित्य सैकड़ों हज़ारों सड़क दुर्घटनाएं होती रहती है, समाचारपत्रों में पड़ते रहते हैं किन्तु जब अपने पर बितती है तो उसकी विकरालता का अनुभव होता है।
      डॉ साहब कार्यालय के कार्य से कुछ सहकर्मियों के संग कार्यालय की कार व चालक के साथ लखनऊ जा रहे थे।अचानक सामने से आती दूसरी कार से टक्कर हो गई।भीषण दुर्घटना थी,चालक के सिवा सभी को गम्भीर चोटें आईं।डॉ साहब के भी हाथ की हड्डी टूट गयी तथा और भी घाव हो गए।चालक ने ही हिम्मत करके सबको लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया।सबका ध्यान रखा जाने लगा किन्तु चालक के अंदरूनी रक्तस्राव होता रहा जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गयी,सबके लिए यह स्थिति अप्रत्याशित थी कि जिसके कारण सबको सही समय चिकित्सा मिली वही इस जग में नहीं रहा, बहुत ही दुःखद.....यही जीवन की भंगुरता है ।
     डॉ साहब के सभी रिश्तेदार आ गए सब जोर देने लगे अपने घर के निकट ही स्थानांतरण करा लो।फ़िलहाल डॉ साहब सीधे हाथ में बंधे प्लास्टर के साथ घर आ गए तथा कई कार्य उलटे हाथ से करने लगे जिन्हें करने का उन्हें इतना अभ्यास हो गया कि सीधा हाथ सही होने के पश्चात भी उलटे हाथ से करते रहे जैसे दांत मांजना और दाढ़ी बनाना।मेहंदी जब बड़ी हुई थी तो उसे पापा को उलटे हाथ से कम करते देखना बड़ा अच्छा लगता था और उनके हाथों पर पड़े टाँकों के निशान भी वो रोज छूती थी।
    

Saturday, 27 January 2018

डॉक्टर व डाकू (५)

डॉक्टर व डाकू
मेहंदी जब शिशुवस्था में ही थी उसके पिता की नियुक्ति ऐसे क्षेत्र में हो गयी जहाँ उस समय डाकुओं का वर्चस्व था।सर्दियों की एक गहन रात्रि को द्वार पर दस्तक हुई
माँ तो तीन बच्चों के लालनपालन में थकी गहन निद्रामग्न थीं,डॉक्टर साहब ने द्वार खोला तो डाकू खड़े थे।व्याकुल होते हुए डॉ साहब ने पूछा क्या काम है
उन्होंनें कहा अपने औजार उठा और हमारे संग चल ।चमचमाते रामपुरी के फल को देख प्रतिरोध करना मूर्खता थी और वो हमेशा मानते थे हमारा कार्य रोगी को ठीक करना हो भले ही वो कोई भी हो।
     आँखों पर पट्टी बांध अपने अड्डे पर ले गए उनके एक साथी को गोली लगी थी। डॉ साहब ने सावधानीपूर्वक गोली निकाल दी।डाकू प्रसन्न होकर एक नोटों से भरी सन्दूकची ले आये तथा बोले जितने मर्जी हो ले लो।डॉ साहब ने नानुकर करी तो एक बड़ी घनी मुछों वाला (जो शायद उनका सरदार था) बोला अपनी खुशी से दे रहे है संकोच मत करो।डॉ साहब ने सोचा यदि अधिक नोट उठाये तो इन्हें लगेगा मैं लालच में आ गया और कम उठाये तो भी चिढ़ सकते हैं ,पशोपेश में डॉ साहब ने एक मुट्ठी नोट भर जेब में धर लिए।
       आँखों पर पुनः पट्टी बांध वापसी हो गयी।सुबह जागने पर पत्नी से किस्सागोई की तो वो कांप गयी।कहने लगीं मुझे क्यों नही जगाया। तब उन्होंने हंस कर कहा तुम रात भर चिंतित रहतीं इसलिये.....रात के लाये रूपये पत्नी को सौप दिए,जब गिने तब वो लगभग एक महीने के वेतन के बराबर थे।डॉ साहब ने परिहास किया वाह ऐसे मरीज मिलते रहें।
     पत्नी ने उनके मुँह पर ऊँगली रख दी और कहा मुझे आपकी सलामती से अधिक कुछ नहीं चाहिये प्रभु ना करे आप पर कभी भी कोई विपदा आये।
    ये किस्सा फिर तो परिजनों को बताने हेतु रोमांचक वार्तालाप बन गया।मेहंदी ने बड़े हो जब ये किस्सा सुना तो अपने पापा से पूछा आप क्यों गये आपको नहीं जाना चाहिए था।तब उसे गोदी में ले बड़े प्यार से डॉ साहब ने समझाया कि हम पढ़ाई पूरी करके शपथ लेते हैं कि इलाज करने में कोई भेदभाव नहीं करेंगें।मरीज तो मरीज होता है और हमारे पास बेहद आस लेकर आता है ।हमें अपना काम करना चाहिए और उन्हें न्याय प्रक्रिया के तहत दण्ड मिलेगा ।