Tuesday, 19 December 2017

सुन्दरता तो देखने वाले की दृष्टि में होती है।(४)

   " सुन्दरता तो देखने वाले की दृष्टि में होती है।"
   गर्भकाल में माँ को दही ही सर्वाधिक रुचता था सम्भवतः उसी के प्रभाव से जब सर्दी में लोहड़ी के सुअवसर पर मेहंदी हुई तो उसकी खाल बहुत सिकुड़ी हुई, नाक तोते जैसी थी उसकी मौसी ने कहा जीजी बिलकुल सुंदर लड़की नहीं हुई है, माता पिता दोनों रूपवान ,भाई भी खूब सुंदर ये कैसी है।लेकिन एक महीने की देखभाल व मालिश करने से मेहंदी में वो निखार आया कि नामकरण के दिवस किसी को यकीन ही नहीं आया ये वही कन्या है,उसकी नानी ने तो परिहास भी कर दिया कि अस्पताल में किसी से बच्ची बदल दी है....हा हा हा।
   पिता और नानी में बहस होती किसकी बेटी अधिक सुंदर है ,नानी कहती मेरी और पिता कहते मेरी इस बहस का कोई नतीजा कभी नहीं निकला क्योंकि सुंदरता तो देखने वाले की आँखों में होती है एवं अपनी संतान तो सभी को प्रिय होती है।
    पड़ोस में रहने वाले डॉ खान की अम्मीजान मेहंदी को जब भी गोद लेतीं उसकी बलैया लेती और कहतीं ये तो इतनी सुंदर है सुहागरात को जब इसका शौहर घूँघट उठायेगा तो ख़ुशी से बेहोश हो जायेगा।
   इन्हीं सब प्रशंसा तथा लाड़ प्यार के साथ मेहंदी बड़ी होती रही।

Sunday, 17 December 2017

सन्तोषी माँ की कृपा(३)

वैवाहिक युगल को शीघ्र ही दो पुत्र प्राप्त हुये,पिता की इच्छा हुई एक कन्या भी हो,तभी उन दिनों सन्तोषी माँ के व्रत और पूजा की नई नई धूम मची हुई थी,डॉ साहब को भगवान पर अधिक विश्वास तो नहीं था किंतु फिर भी उन्होनें माँगा कि यदि अबके मेरे घर कन्या हुई तो मैं मैया की शक्ति मान जाऊँगा,मैया मेरे घर कन्या रूप में जन्म लो पता नहीं ये विधि का विधान था या सच्चे ह्रदय से की गई प्रार्थना की शक्ति,इस बार कन्या का ही जन्म हुआ। हर्षोउल्लास से सब भर उठे विशेषकर पिता तो फूले ना समाते थे,बड़े ही लाड़ प्यार से कन्या का पालन होने लगा।कन्या बेहद सुंदर और सौम्य स्वभाव की थी,कभी किसी बात के लिए तंग ना करने वाली।सम्भवतः सन्तोषी माँ के आशीर्वाद से उत्पन्न होने के कारण ही उसमें संतोष गुण जन्म से ही विधमान था।मेहंदी का सौभाग्य था कि उसने ऐसे घर में जन्म लिया जहाँ कन्या की चाह थी ।

Saturday, 16 December 2017

गगन का चंद्रमा बना धरा का चंद्रमा(२)

"गगन का चाँद बना धरा का चन्द्रमा"
होलिका दहन का दिन, गगन में पूर्णिमा का चन्द्रमा पूरे जोरों से चमक बिखेरता हुआ, तीन पुत्रों के पश्चात पुत्री होने की सुचना से प्रफुल्लित पिता ने चंद्रमा को देखते हुए ही कहा कि इसका नाम शशि रखेंगें, इसका जीवन भी चंद्रमा की भांति उज्ज्वल रहेगा।अत्यंत सम्पन्न परिवार में राजकुमारी जैसा समय व्यतीत होता रहा उस चंचल शोख लड़की का।पलक झपकते ही कब वो बड़ी हो गयी ये आभास पिता को तब हुआ जब किसी ने एक डॉ लड़के का नाम वर हेतु सुझाया।दोनों घरों में आर्थिक विषमता थी पर लालाजी को सुंदर,सुशील व स्वावलंबी वर भा गया।एक शुभ महूर्त में दोनों परिणय सूत्र में बंध गए।बधू के समस्त परिचित मना करने लालाजी के पास आये कि लड़की को कुएं में धकेल रहे हो किन्तु उनकी पारखी नज़रों ने लड़के के गुणों को परख लिया था। वर के समस्त परिचित विवाह पश्चात बधू की मुंहदिखाई ये सोच कर करने आये कि अवश्य लड़की में कोई कमी होगी तभी विपिन्न घर में ब्याह दिया है परंतु सर्वगुण सम्पन्न चाँद सी दुल्हन देख सभी दांतों तले उंगली दबाते रह गये। जोड़ियाँ स्वर्ग में तय हो जाती हैं इनकी जोड़ी को देख यही प्रतीत होता था,प्रभु की असीम कृपा से दोनों अत्यधिक प्रसन्न थे।

Friday, 15 December 2017

जो मान लिया वो ठान लिया (१)

"जो मान लिया वो ठान लिया"
  निम्न मध्यम परिवार का लड़का ,पढ़ने में कुशाग्र,व्यवहारिक बुद्धि में प्रखर,मन में चिकित्सक बनने की प्रबल कामना।परिवारजनों ने नाम रखा नरेंद्र किन्तु नाम ना भाने पर बदल कर नरेश कर लिया(  अर्थ तो दोनों नामों का राजा ही है किंतु इससे बालक जमाने की बात ज्यूँ की तयूं नहीं अपनाएगा अपने दिल की सुनेगा इस प्रवर्ति का परिचय मिलता है) एक दिन ज्योतिष ने यूँ ही हस्त रेखाएं बांच कर कहा तुम कभी डॉ. नहीं बन सकते(सम्भवतः आर्थिक पृष्ठभूमि देख) बस उसी उसी दिन से ठान लिया कि डॉ ही बनना है जुट गये लगन से।20 ₹ माह की ट्यूशन पढ़ा पढ़ा कर इंटर की पढ़ाई की उसके बाद मेडिकल में चयन हो गया किन्तु पिताजी ने कह दिया कि वो कोई आर्थिक सहयोग नहीं करेंगें, स्नातक डिग्री ली किन्तु मन से चिकित्सक बनने की आस ना निकली पुनः प्रवेश परीक्षा में बैठे व लखनऊ के प्रतिशिष्ठ किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज हेतु चयनित हुये तब दादाजी संबल बने और आर्थिक सहयोग करने का वादा किया तथा वो लड़का आगे चलकर एक बेहतरीन चिकित्सक बना।किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिये शिद्दत से प्रयत्न किये जायें तो कोई ना कोई राह अवशय निकलती है तो उन्होनें डॉ बनने की इच्छा को मान लिया तो यही बनना है ये ठान लिया।यदि लगन सच्ची हो तो राहें निकल ही आती हैं।