Saturday, 30 March 2019

नवाब साहब से हाथ मिलाना(३२)

              नवाब साहब से हाथ मिलाना(३२)
     नई जगह आने के बाद नित्य कुछ नवीन घटित होता रहता है कभी कोई नई जगह देखने को मिलती है कभी नई तरह के लोगों से मिलने को मिलता है ।विद्यालय तो नया था ही नई सखियां बन गई थी 6 साल की बच्चे के लिए यह सब सामंजस्य करने बहुत ही सरल थे ,क्योंकि बच्चे कच्ची मिट्टी की भांति शीघ्र ही नए परिवेश में ढल जाते हैं मेहंदी में भी नये विद्यालय नई सखियों के मध्य तारतम्य बैठा लिया था। मेहंदी के पापा को बच्चों को घुमाने फिराने का भी खूब शौक था। दशहरे का मौका आया रावण का पुतला लगा ,खूब आतिशबाजी की तैयारियां थी,उस दिन दशहरे के मुख्य अतिथि थे जिले के सांसद और उस रियासत के नवाब साहब। जब भी कोई प्रमुख व्यक्ति ऐसे मौकों पर आता है तो डॉक्टर की ड्यूटी लगती है डॉक्टर साहब की भी ड्यूटी लगी थी बच्चे भी पहुंच गए मेले में 6 साल की मेहंदी को एहसास ही नहीं था कि पापा ड्यूटी कर रहे हैं वह तो मेले का आनंद ले रही थी अपने भाइयों के साथ और आनंद लेने के बाद पापा के पास पहुंच गई ।पापा ने भी मेहंदी को नवाब साहब से मिलाया उन से हाथ मिलाने को कहा नवाब साहब ने मेहंदी की तरफ हाथ बढ़ा दिया।मेहंदी ने सकुचाते हुए हाथ मिला लिया। उसके लिए यह कोई महत्व की बात नहीं थी कि वह नवाब हैं या सांसद हैं, वह तो पापा का ही कोई परिचित समझकर उनसे नमस्ते कर रही थी। जब मेहंदी बड़ी हुई तब उस एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी शख्सियत से हाथ मिला रखा है ।।           कितना अच्छा होता है ना वह मासूम प्यारा भोला सा बचपन जहां ना कोई बड़ा होता है ना कोई छोटा होता है ।  माता पिता के निर्देशानुसार  ही हमारा परिचय विभिन्न क्षेत्रों से होता है जिसे सब अपनी बुद्धिअनुसार समझते हैं। समय के नए-नए आयाम मेहंदी की आंखों के आगे खुल रहे थे और वह सीख रही थी सब कुछ नया ऐसे ही जीवन धारा चलती रहती है। कोई भी मां के पेट से सीख कर नहीं आता यह दुनिया ही उसे सब कुछ सिखा कर पारंगत बना देती है।
   मासूम सी मेहंदी दुनिया में आकर कुछ कुछ सीखने लगी थी पर अभी भी वह काफ़ी काफी नादान थी ।वह मेहंदी जो विद्यालय से आकर सर्वप्रथम गृह कार्य करती थी अब थोड़ी ढिलाई करने लगी थी। एक दिन डॉक्टर साहब के टोकने पर वह कह बैठी कि यहां तो मेरी नई-नई सहेलियां बन गई है इसलिए मैं उनके साथ खेलने में लगी रहती हूं। 6 साल की बच्ची की वह मासूम बात सब रिश्तेदारों को बड़ी हंसी हंसी बताई जाती थी, तब मेहंदी को एहसास हुआ कि कुछ बोलने से पहले सोचना पड़ता है नहीं तो परिहास बनता है ।यह एक छोटी सी बात मेहंदी को सोच समझ कर बोलने की कला सिखा गयी।

Friday, 1 February 2019

मूवी का चस्का ( ३३)

मूवी का चस्का(३३)
  1. चलचित्र, मूवी,या फिल्में जिस नाम से भी पुकारा जाए रहेगा भारतीय जनमानस से जुड़ा एक अहम हिस्सा ही। कुछ चीजें जीवन से इस कदर जुड़ी होती है कि वह हमें अलग से एक उद्योग लगता ही नहीं, लगता है यह हमारे जीवन का ही एक अभिन्न अंग है जैसे पढ़ना लिखना, घूमना फिरना, रिश्तेदारों से मिलना, त्यौहार मनाना, जीवन में दिनचर्या में आरंभ से ही सम्मिलित रहता है, ऐसे ही हिंदी फिल्में देखना भी जीवन में एक कार्य की तरह ही जुड़ा रहता है ।डॉ साहब को टैक्स फ्री फिल्में देखने और दिखाने का बड़ा ही चाव था । उनका कहना था कि सरकार इन फिल्मों को टैक्स फ्री इसलिए करती है क्योंकि इसमें समाज के लिए कोई आवश्यक संदेश होता है, और उस आवश्यक संदेश को देखने के लिए हमें यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए..... मेहंदी को तो बस पापा का साथ चाहिए होता था, चाहे वह टैक्स फ्री फिल्म दिखाएं या कला फिल्म अथवा मसाला फिल्म दिखाएं , मम्मी पापा और मेहंदी तीनों जाया करते थे टैक्स फ्री फिल्में देखने स्कूटर से।
  2. छोटा भाई बहुत ही छोटा था वह घर पर रह जाता था मुरारी नाम के सेवक के पास तथा दोनों बड़े भाई डॉक्टर साहब से डील कर लेते थे कि वह मसाला फिल्म देखेंगे, टैक्स फ्री फिल्म नहीं देखेंगे, और प्रसिद्ध महानायक की फिल्म देख कर आया करेंगे ।मेहंदी तो देखकर आती थी ब्रजभूमि, दुल्हा बिकता है, पशु संग्राम आदि जैसी टैक्स फ्री फिल्में तथा दोनों भाई देख कर आते थे महानायक की खुद्दार, सत्य पे सत्ता, नसीब ,देश प्रेमी,नमक हलाल जैसी मसाला फिल्में और घर आकर सबको जलाते हुए ढिशुम ढिशुम करते, फिल्मों के प्रसिद्ध संवाद सुनाते थे। मेहंदी रुआंसी हो जाती तो डॉक्टर साहब उसके मन की बात समझ जाते और फिर वह लोग भी देख कर आते ,बॉलीवुड की हिट मसाला फिल्म।इस तरह मेहंदी दोनों फिल्म देख लेती थी मसाला फिल्म भी और टैक्स फ्री फिल्म भी।  उसके बाद तीनो भाई बहन मिलकर उस फिल्म के खूब डायलॉग बोलते ,ढिशुम ढिशुम करते हुए गाने गुनगुनाते घूमते ।
  3.    कोई रिश्तेदार आता तो उनको भी मूवी दिखाने ले जाया जाता ,उन दिनों बाहर खाना खाने का इतना रिवाज नहीं था तथा टीवी पर भी अधिक प्रोग्राम नहीं आते थे ।गर्मियों की छुट्टियां आदि में जब भी कोई रिश्तेदार आता था तो मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन बॉलीवुड फिल्म ही होती। पूरी पूरी फैमिली रिक्शा में भरकर फिल्में देखने जाती थी और फिर कई दिन तक चर्चा होती थी। खास तौर पर फिल्म के एक्शन और संवादों की धूम मची रहती थी। इसके अलावा फिल्म के गानों की भी अंताक्षरी होती और टेप रिकॉर्ड पर फिल्म के गानों की कैसेट सुनी जाती। जब तक एक फिल्म का खुमार उतरता था तब तक दूसरी फिल्म आ जाती थी और फिर वही सब उसके साथ होता था।
  4.  एक अलग ही दौर था जब छोटी-छोटी खुशियों में एक मूवी देखना भी एक बहुत बड़ी लग्जरी माना जाता था और टीवी पर आने वाली रविवारिय मूवी भी इतनी ही शिद्दत से देखी जाती चाहे कैसी भी फिल्म को टीवी पर देखने का एक अलग ही क्रेज होता था। जल्दी जल्दी से बच्चे पढ़ाई करके बैठ जाते थे शाम को मूवी देखेंगे महिलाएं भी खाने की तैयारी करके रख देती कि मूवी देखते समय बीच में उठना ना हो , तथा सभी उस फिल्म को बहुत उत्साहित होकर देखा करते थे ।
  5. उस समय टीवी भी बहुत ही कम घरो में होते थे तथा खिड़की पर आसपास के बच्चों का जमघट लग जाता था जो फिल्म देखते समय खूब हल्ला गुल्ला करते थे। सुनने देखने में व्यवधान तो होता था पर उनके उत्साह को देखकर अच्छा भी लगता था, ऐसा ही दौर था वह जब सब लोगों की खुशी में अपनी भी खुशी दिखती थी। और कम साधनों में भी अधिक से अधिक आनंद आता था । 
  6. एक बार दूरदर्शन पर फिल्म आ गई, चला मुरारी हीरो बनने और हमने अपने सेवक मुरारी को खूब छेड़ा कि तू तो हीरो बनने जा रहा है हीरो बनने.... और वह भी खूब ही खुश हुआ, इतना खुश हुआ जैसे कि वाकई में उसी के ऊपर वह फिल्म बनी हो ।बस यही पल होते थे छोटे-छोटे, आनंद खोजने के, कम साधन में भी और अन्य को खुश करके खुशी मनाना मूल मंत्र था उन दिनों जीवन का।

Thursday, 31 January 2019

दुकानदारी(३१)

दुकानदारी (३१)
   एक बार मेहंदी और उसके भाइयों ने टॉफी बिस्किट्स  की दुकान लगाने की सोची। पड़ोस के भी 3 बच्चे तैयार हो गए बोलो उन्होंने अपने गुल्लक खोली, उसमें निकले ₹7 .75 , 25 पैसे बच गए और ₹7 50 का सामान ला कर दुकान सजा ली । उसमें थी ऑरेंज वाली कैंडी खट्टी मीठी चूसने की टोपियां लॉलीपॉप च्यूइंगम और भी इसी तरह का समान । पड़ोस के 3 बच्चे भी ले आए अपने पास इकट्ठे रूपयों का इकट्ठा रूपों का सामान। उन्होंने भी सामने ही एक कपड़ा बिछाकर दुकान से सजा ली। आमने सामने अपनी दुकानों पर तीन-तीन बच्चे बैठे हैं खुद खुद ही बैठे-बैठे बोर हो गए किसी की कोई बिक्री नहीं हो रही थी तो बीच वाले भैया को विचार आया उनके पास एक चवन्नी बची थी उसे ले जाकर पड़ोस के बच्चों से टॉफियां ले आए और खा ली। अब सामने वाले बच्चों के पास आ गईं चवन्नी उन्होंने मेहंदी  से टॉफी खरीदी और खा लीं। मेहंदी ने फिर उनसे बिस्कुट वगैरह खरीदे इस तरह से होते-होते पूरी दुकान का सामान बिक गया। और उन लोगों ने एक दूसरे का सब सामान खा लिया शाम को पापा आए मेहंदी जल्दी से भागी पापा के पास। पापा को पता था आज दुकान लगाई है उन्होंने पूछा और सुनाओ तुम्हारे समान कितना बिका ।मेहंदी बहुत खुश पापा पापा हमारा दोनों दुकानों का सामान सारा बिक गया।वह पहली बार दुकानदारी की और 100 प्रतिशत बिक्री। और बताओ कितना मुनाफा हुआ ।मेहंदी बोली ,पापा बिक्री तो बहुत हुई पर मुनाफा नहीं हुआ जो चवन्नी हमारे पास थी वहीं बच गई और इसके अलावा कुछ नहीं ।पापा ने पूरा किस्सा सुनाऔर हंसते हुए बोले तुम लोगों की बस की नहीं है दुकानदारी। दुकानदार नहीं बन सकतेतुम कभी भी। इसी के साथ उन लोगों का 1 दिन का बिजनेस समाप्त हुआ जो सिखा गया कि सबक खेल खेल में ही।

Wednesday, 9 January 2019

पहला व्रत (३०)

पहला व्रत (३०)
     महाशिवरात्रि का पर्व घर में मम्मी पापा का व्रत हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी था। इस बार बच्चों को भी चाव लगा हम भी व्रत रखेंगे, मम्मी को क्या परेशानी बिना व्रत का अलग बनाती और अब सारा खाना एक साथ ही बन जाएगा उन्होंने भी हाँ कह दी।
   स्कूल की छुट्टी थी ही सुबह सुबह उठकर सब स्नान कर मंदिर गए भगवान शिव का जलाभिषेक किया, उसके पश्चात घर आए मम्मी तो रसोई घर में व्यस्त हो गई और बच्चों को तो सताने लगी भूख ,भूल गए कि आज व्रत रखा है अलमारी में मूंगफली रखी थी, झट से निकाली और फट से खालीं।खाते-खाते याद आया अरे आज तो व्रत रखा था ये क्या हुआ  जीवन में पहली बार व्रत रखा वो भी टूट गया। बीच वाले भैया शरारती थे उन्होंने कहा अब तो व्रत टूट ही गया है तो क्यों ना ऐसा करें बिस्कुट खा लेते हैं और उन्होंने बिस्किट्स का पैकेट खोला। तीनों ने खा लिया लेकिन मन बड़ा गुमसुम था कि पहली बार रखा व्रत टूट गया ।तभी पापा भी  घर आ गए उनको देखकर मेहंदी झट गयी उनके पास। पापा पापा मेरा व्रत टूट गया। ओह्ह कैसे? डॉ साहब ने पूछा।मूंगफली मुँह लटकाये मेहंदी ने कहा। अरे बिटिया मूंगफली तो व्रत में खा सकते हैं तुम्हारा व्रत नहीं टूटा। मेहंदी चहक उठी अच्छा पापा बिस्किट्स खाने से?
    बिस्किट नहीं खाते हैं व्रत में ।
  अब तो मेहंदी को इतना दुःख हुआ जितना मूँगफली खाने से व्रत टूटने का सोच कर भी नहीं हुआ था। गुस्सा भी आया बीच वाले भैया पर उनके कारण ही.....गुरर्र।
     शाम को एक अंकल आये उन्हें पूरा किस्सा पता लगा तो उन्होंने बताया जब वो बचपन मे व्रत रखने की जिद करते थे तो उनकी मम्मी एक दाढ़ का व्रत रखने को कहती थीं वो एक तरफ के दांतों से पूरा खाना खा लेते थे। मेहंदी तुमने एक तरफ से ही तो बिस्किट खाये होंगें। मेहंदी को इतना ध्यान नहीं था उसका व्रत ना रख पाने का संताप जन्माष्टमी का व्रत रखने के पश्चात ही दूर हुआ। उसके बाद मेहंदी ध्यानपूर्वक जन्माष्टमी व शिवरात्रि के व्रत सालोंसाल रखती रही।