नादान मोनू(२६)
सांप्रदायिक दंगे किसी देश की संपत्ति सुख-शांति प्रगति को तो भंग करते ही हैं अपितु उस देश के जनों की भावनाओं को भी कई तरीके से परिवर्तित कर देते हैं ।जो दंगों की विभीषिका में जलता है वहीं इस दर्द को समझ सकता है। इसी तरह के परिवारों में एक परिवार था मेहंदी की दूर के रिश्ते की मौसी का ।उनके पति को दंगाइयों ने खत्म कर दिया था ऐसा भी अनुमान से ही कहा जा सकता है क्योंकि जब शहर में दंगे भड़क रहे थे तब वे अपने काम से वापस आ रहे थे और कभी भी अपने घर लौट कर नहीं आ पाए हमेशा के लिए लापता हो गए ना ही उनका शव मिला ना ही उनका कोई समाचार केवल एक अनुमान ही जीवन पर्यंत लगाया जाता रहा कि दंगाइयों द्वारा उनको समाप्त कर दिया गया होगा । एक औरत की दशा का अनुमान कीजिए जो ना सधवा रही ना विधवा । बिना पति के अपने बच्चों को संभालना,उनका पालन पोषण एक घरेलू भारतीय महिलाा के लिए बहुत ही दुष्कर कार्य था। किंतु जब सर पर कोई विपदा आ पड़ती है तो उसे सहने की शक्ति भी ईश्वर प्रदान करते हैं। रिश्ते नातों की परख भी ऐसे प्रतिकूल समय में ही होती है।
मौसी के दुख से सभी द्रवित थे और जितना भी बन पड़ता था उनकी सहायता करने के लिए तत्पर रहते थे। मेहंदी की मम्मी भी जब अपने मायके गई तब अपनी बहन और उनकी बच्चों की सहायतार्थ कुछ सामान लेकर उनसे मिलने गयी, यह मेहंदी की मम्मी का बड़प्पन ही था कि वह कभी यह नहीं जतलाती थी कि हम तुम्हारी सहायता के लिए सामान लाए हैं अपितु वह एक बड़ी बहन द्वारा जिस तरह मिलने पर कुछ भी भेंंट इत्यादि लेकर जाते हैं उसी रूप में सब चीज लेकर जाती थीं। फल ,मिठाई वस्त्र इत्यादि जो कुछ संभव होता था प्रदान कर आर्थिक भरपाई करने का प्रयास उनके सम्मान को ठेस पहुंचाए बिना करतीं।
दोनों बहनें अपना सुख-दुख बाटनें में व्यस्त हो गयीं और सभी बच्चे छत पर खेलने में। छत पर खेलते खेलते अचानक ही मोनू रुक गया और एकटक मेहंदी को देखता रहा देखता रहा देखता ही रहा। मेहंदी बहुत छोटी थी पर फिर भी वह सोच रही थी कि मुझे क्यों ऐसे देखे जा रहा है। वह लोग कोई पकड़म पकड़ाई जैसा खेल खेल रहे थे और अचानक ही मोनू नीचे अपनी मम्मी के पास चला गया। सब बच्चे आपस में फिर खेलने में व्यस्त हो गए थोड़ी देर बाद सब बच्चों को नाश्ता करने के लिए नीचे से पुकारा गया वहां जाने पर मोनू की मम्मी ने हंसते हुए बताया कि हमारा मोनू तो कह रहा है वह बड़े होकर मेहंदी से शादी करेगा । मेहंदी लजा गयी शायद लड़कियां बचपन से ही समझने लगती है कि शादी विवाह जैसी बातों पर शर्माना चाहिए । खैर बचपन की मासूमियत समझ बात आई गई हो गई ,लेकिन तब से जब भी किसी को मौका मिलता वह मेहंदी को चिढ़ाने का मौका नहीं छोड़ता। बड़े होने के बाद मेहंदी की शादी हो गई और मोनू की भी। लेकिन किसी विवाह उत्सव या अन्य पारिवारिक समारोह में मोनू मिलता तो एक बार मेहंदी से जरूर पूछता था 'तुम कैसी हो "और मेहंदी हंस करके देती "अच्छी हूं ,और तुम बताओ भाभी जी कैसी हैं ?"मोनू भी हंसकर कह देता " अच्छी है 'लेकिन उसकी आंखों का खालीपन मेहंदी कभी समझ ही नहीं पाती थी बहुत बाद में मेहंदी को यह एहसास हुआ कि एक बार केवल एक बार अगर वह भी कह देती कि तुम कैसे हो तो शायद मोनू की आंखों का वो खालीपन भर जाता ।एक बार मेहंदी ने निश्चय किया, इस बार उससे मिलने पर वह जरुर पूछेगी कि तुम कैसे हो पर नियति का परिहास ही जानिये उस दिन के बाद किसी समारोह में मोनू मेहंदी से मिला ही नहीं और मेहंदी टकटकी लगाए हर समारोह में सोचती है कि शायद वो आएगा और वो पूछेगी तुम कैसे हो ,और भर देगी उसके मन का वह खाली कोना जिसमें बचपन से केवल उसी के लिए जगह रिक्त है। कच्ची उम्र का आकर्षण कभी-कभी शायद बड़े होने तक जीवित रहता है जिसे बचपना समझ कर भूल जाते हैं किंतु एक स्थान रिक्त रहता है जीवन पर्यंत ही ........
सांप्रदायिक दंगे किसी देश की संपत्ति सुख-शांति प्रगति को तो भंग करते ही हैं अपितु उस देश के जनों की भावनाओं को भी कई तरीके से परिवर्तित कर देते हैं ।जो दंगों की विभीषिका में जलता है वहीं इस दर्द को समझ सकता है। इसी तरह के परिवारों में एक परिवार था मेहंदी की दूर के रिश्ते की मौसी का ।उनके पति को दंगाइयों ने खत्म कर दिया था ऐसा भी अनुमान से ही कहा जा सकता है क्योंकि जब शहर में दंगे भड़क रहे थे तब वे अपने काम से वापस आ रहे थे और कभी भी अपने घर लौट कर नहीं आ पाए हमेशा के लिए लापता हो गए ना ही उनका शव मिला ना ही उनका कोई समाचार केवल एक अनुमान ही जीवन पर्यंत लगाया जाता रहा कि दंगाइयों द्वारा उनको समाप्त कर दिया गया होगा । एक औरत की दशा का अनुमान कीजिए जो ना सधवा रही ना विधवा । बिना पति के अपने बच्चों को संभालना,उनका पालन पोषण एक घरेलू भारतीय महिलाा के लिए बहुत ही दुष्कर कार्य था। किंतु जब सर पर कोई विपदा आ पड़ती है तो उसे सहने की शक्ति भी ईश्वर प्रदान करते हैं। रिश्ते नातों की परख भी ऐसे प्रतिकूल समय में ही होती है।
मौसी के दुख से सभी द्रवित थे और जितना भी बन पड़ता था उनकी सहायता करने के लिए तत्पर रहते थे। मेहंदी की मम्मी भी जब अपने मायके गई तब अपनी बहन और उनकी बच्चों की सहायतार्थ कुछ सामान लेकर उनसे मिलने गयी, यह मेहंदी की मम्मी का बड़प्पन ही था कि वह कभी यह नहीं जतलाती थी कि हम तुम्हारी सहायता के लिए सामान लाए हैं अपितु वह एक बड़ी बहन द्वारा जिस तरह मिलने पर कुछ भी भेंंट इत्यादि लेकर जाते हैं उसी रूप में सब चीज लेकर जाती थीं। फल ,मिठाई वस्त्र इत्यादि जो कुछ संभव होता था प्रदान कर आर्थिक भरपाई करने का प्रयास उनके सम्मान को ठेस पहुंचाए बिना करतीं।
दोनों बहनें अपना सुख-दुख बाटनें में व्यस्त हो गयीं और सभी बच्चे छत पर खेलने में। छत पर खेलते खेलते अचानक ही मोनू रुक गया और एकटक मेहंदी को देखता रहा देखता रहा देखता ही रहा। मेहंदी बहुत छोटी थी पर फिर भी वह सोच रही थी कि मुझे क्यों ऐसे देखे जा रहा है। वह लोग कोई पकड़म पकड़ाई जैसा खेल खेल रहे थे और अचानक ही मोनू नीचे अपनी मम्मी के पास चला गया। सब बच्चे आपस में फिर खेलने में व्यस्त हो गए थोड़ी देर बाद सब बच्चों को नाश्ता करने के लिए नीचे से पुकारा गया वहां जाने पर मोनू की मम्मी ने हंसते हुए बताया कि हमारा मोनू तो कह रहा है वह बड़े होकर मेहंदी से शादी करेगा । मेहंदी लजा गयी शायद लड़कियां बचपन से ही समझने लगती है कि शादी विवाह जैसी बातों पर शर्माना चाहिए । खैर बचपन की मासूमियत समझ बात आई गई हो गई ,लेकिन तब से जब भी किसी को मौका मिलता वह मेहंदी को चिढ़ाने का मौका नहीं छोड़ता। बड़े होने के बाद मेहंदी की शादी हो गई और मोनू की भी। लेकिन किसी विवाह उत्सव या अन्य पारिवारिक समारोह में मोनू मिलता तो एक बार मेहंदी से जरूर पूछता था 'तुम कैसी हो "और मेहंदी हंस करके देती "अच्छी हूं ,और तुम बताओ भाभी जी कैसी हैं ?"मोनू भी हंसकर कह देता " अच्छी है 'लेकिन उसकी आंखों का खालीपन मेहंदी कभी समझ ही नहीं पाती थी बहुत बाद में मेहंदी को यह एहसास हुआ कि एक बार केवल एक बार अगर वह भी कह देती कि तुम कैसे हो तो शायद मोनू की आंखों का वो खालीपन भर जाता ।एक बार मेहंदी ने निश्चय किया, इस बार उससे मिलने पर वह जरुर पूछेगी कि तुम कैसे हो पर नियति का परिहास ही जानिये उस दिन के बाद किसी समारोह में मोनू मेहंदी से मिला ही नहीं और मेहंदी टकटकी लगाए हर समारोह में सोचती है कि शायद वो आएगा और वो पूछेगी तुम कैसे हो ,और भर देगी उसके मन का वह खाली कोना जिसमें बचपन से केवल उसी के लिए जगह रिक्त है। कच्ची उम्र का आकर्षण कभी-कभी शायद बड़े होने तक जीवित रहता है जिसे बचपना समझ कर भूल जाते हैं किंतु एक स्थान रिक्त रहता है जीवन पर्यंत ही ........