Thursday, 12 July 2018

आशा का दीप (२३)

            आशा का दीप (२३)
   डॉ साहब अक़्सर किस्से कहानियां सुनाया करते थे, समय बिताने का ये उनका शगल था।अकबर बीरबल के मजेदार किस्से भी उनकी बातचीत में आ जाते, ऐसा ही एक किस्सा मेहंदी के मन में गहरा पैठ गया।
              "बीरबल की खिचड़ी"
   एक दफा शहंशाह अकबर ने घोषणा की कि यदि कोई व्यक्ति सर्दी के मौसम में नर्मदा नदी के ठंडे पानी में घुटनों तक डूबा रह कर सारी रात गुजार देगा उसे भारी भरकम तोहफ़े से पुरस्कृत किया जाएगा।
         
एक गरीब धोबी ने अपनी गरीबी दूर करने की खातिर हिम्मत की और सारी रात नदी में घुटने पानी में ठिठुरते बिताई और जहाँपनाह से अपना ईनाम लेने पहुँचा।
बादशाह अकबर ने उससे पूछा, “तुम कैसे सारी रात बिना सोए, खड़े-खड़े ही नदी में रात बिताए? तुम्हारे पास क्या सबूत है?”
धोबी ने उत्तर दिया, “जहाँपनाह, मैं सारी रात नदी छोर के महल के कमरे में जल रहे दीपक को देखता रहा और इस तरह जागते हुए सारी रात नदी के शीतल जल में गुजारी।“
बादशाह ने क्रोधित होकर कहा, “तो इसका मतलब यह हुआ कि तुम महल के दिए की गरमी लेकर सारी रात पानी में खड़े रहे और ईनाम चाहते हो। सिपाहियों इसे जेल में बन्द कर दो”
बीरबल भी दरबार में था। उसे यह देख बुरा लगा कि बादशाह नाहक ही उस गरीब पर जुल्म कर रहे हैं। बीरबल दूसरे दिन दरबार में हाज़िर नहीं हुआ, जबकि उस दिन दरबार की एक आवश्यक बैठक थी। बादशाह ने एक खादिम को बीरबल को बुलाने भेजा। खादिम ने लौटकर जवाब दिया, बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं और वह खिचड़ी पकते ही उसे खाकर आएँगे।
जब बीरबल बहुत देर बाद भी नहीं आए तो बादशाह को बीरबल की चाल में कुछ सन्देह नजर आया। वे खुद तफ़तीश करने पहुँचे। बादशाह ने देखा कि एक बहुत लंबे से डंडे पर एक घड़ा बाँध कर उसे बहुत ऊँचा लटका दिया गया है और नीचे जरा सा आग जल रहा है। पास में बीरबल आराम से खटिए पर लेटे हुए हैं।
बादशाह ने तमककर पूछा, “यह क्या तमाशा है? क्या ऐसी भी खिचड़ी पकती है?”
बीरबल ने कहा, “ माफ करें, जहाँपनाह, जरूर पकेगी। वैसी ही पकेगी जैसी कि धोबी को महल के दिये की गरमी मिली थी”
बादशाह को बात समझ में आ गई। उन्होंने बीरबल को गले लगाया और धोबी को रिहा करने और उसे ईनाम देने का हुक्म दिया।

        कभी कभी व्यक्ति जब उदासियों की ठंडक में कांप रहा होता है तो दूर टिमटिमाता दिया भी रात व्यतीत करने का साधन बन जाता है वो दिया जिसे पता नहीं किसने महल की प्राचीर पर रखा होगा,जिस दिये को ना वो जला सकता है ना बुझा सकता है किन्तु वो संबल बन जाता है दूर शीतल जल में खड़े व्यक्ति का।
   वो दिया जिस पर उसका कोई हक़ नही जिसे वो सिर्फ़ देख सकता है,ना छू सकता है ना पा सकता है।
  जिस तरह उस धोबी पर इल्जाम लगे कि उसने दिये की गर्माहट में रात गुजार दी उसी तरह आशा के दीप के लिए भी कई इल्जाम ये समाज लगा कर व्यक्ति को उसके हक़ से वंचित कर सकता है एवं सबके जीवन में कोई बीरबल आकर समस्या का समाधान करे ये सम्भव नहीं ।अतः वो छुपाता रहता है अपने अन्तर्मन में उस दिये की गर्माहट को .....क्योंकि जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिये किसी तरह बितानी तो है ही ये सर्द रात्रि शीतल नदी के जल में खड़े खड़े ही।

Monday, 9 July 2018

छाला (२२)

   छाला (२२)
    घरेलू नौकर के ना आने पर एक दिन मम्मी ने मेहंदी से आधी बाल्टी पानी हैण्डपम्प से भरने को कह दिया।काफी बड़ी बाल्टी थी मेहंदी को पहली बार इतनी मेहनत का काम मिला था तो उसने जोश जोश में पूरी बाल्टी भर दी....पर ये क्या उसका हाथ सूज कर फूला फूला क्यों हो गया।दर्द भरे हाथ लेकर मम्मी के पास भागी ,मम्मी इतना बड़ा छाला देख घबरा गयीं अब तो डॉ साहब से डाँट पड़नी पक्की है कि मेरी लाडली से इतना काम क्यों करवाया।उन्होंने पूरी भरी बाल्टी देखी और मेहंदी पर चिल्लाने लगीं तुझे आधी बाल्टी कही थी पूरी क्यों भरी। मेहंदी सहम कर नन्हे भाई के पास बैठ गयी तभी वहां बड़े भैया आ गये और उसके हाथ के छाले को स्नेह से सहलाते हुए उस पर मरहम लगाया और छोटे भाई के नर्म नाजुक गुलाबी तलवे दिखा कर बोले तू भी इसकी तरह सारे दिन बैठी रहा कर इसके जैसी ही नाजुक नर्म रहना।मेहंदी की समझ में भैया की बातें आयीं या नहीं पता नहीं पर मरहम से ठंडक मिली किन्तु वो सोच रही थी जैसे भैया उसे प्यार करते हैं माँ क्यों नहीं करतीं हमेशा मेहंदी में उन्हें कमियाँ ही क्यों दिखती हैं .....कुछ करो तो भी ना करो तो भी.....
   काश भैया की तरह माँ ने भी उसकी चोट सहला दी होती। ये छाला तो कुछ दिन में ठीक हो जायेगा किन्तु जो छाले मम्मी के व्यवहार से मन में उभर गये हैं वो क्या कभी भी भर पायेंगे?