नवाब साहब से हाथ मिलाना(३२)
नई जगह आने के बाद नित्य कुछ नवीन घटित होता रहता है कभी कोई नई जगह देखने को मिलती है कभी नई तरह के लोगों से मिलने को मिलता है ।विद्यालय तो नया था ही नई सखियां बन गई थी 6 साल की बच्चे के लिए यह सब सामंजस्य करने बहुत ही सरल थे ,क्योंकि बच्चे कच्ची मिट्टी की भांति शीघ्र ही नए परिवेश में ढल जाते हैं मेहंदी में भी नये विद्यालय नई सखियों के मध्य तारतम्य बैठा लिया था। मेहंदी के पापा को बच्चों को घुमाने फिराने का भी खूब शौक था। दशहरे का मौका आया रावण का पुतला लगा ,खूब आतिशबाजी की तैयारियां थी,उस दिन दशहरे के मुख्य अतिथि थे जिले के सांसद और उस रियासत के नवाब साहब। जब भी कोई प्रमुख व्यक्ति ऐसे मौकों पर आता है तो डॉक्टर की ड्यूटी लगती है डॉक्टर साहब की भी ड्यूटी लगी थी बच्चे भी पहुंच गए मेले में 6 साल की मेहंदी को एहसास ही नहीं था कि पापा ड्यूटी कर रहे हैं वह तो मेले का आनंद ले रही थी अपने भाइयों के साथ और आनंद लेने के बाद पापा के पास पहुंच गई ।पापा ने भी मेहंदी को नवाब साहब से मिलाया उन से हाथ मिलाने को कहा नवाब साहब ने मेहंदी की तरफ हाथ बढ़ा दिया।मेहंदी ने सकुचाते हुए हाथ मिला लिया। उसके लिए यह कोई महत्व की बात नहीं थी कि वह नवाब हैं या सांसद हैं, वह तो पापा का ही कोई परिचित समझकर उनसे नमस्ते कर रही थी। जब मेहंदी बड़ी हुई तब उस एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी शख्सियत से हाथ मिला रखा है ।। कितना अच्छा होता है ना वह मासूम प्यारा भोला सा बचपन जहां ना कोई बड़ा होता है ना कोई छोटा होता है । माता पिता के निर्देशानुसार ही हमारा परिचय विभिन्न क्षेत्रों से होता है जिसे सब अपनी बुद्धिअनुसार समझते हैं। समय के नए-नए आयाम मेहंदी की आंखों के आगे खुल रहे थे और वह सीख रही थी सब कुछ नया ऐसे ही जीवन धारा चलती रहती है। कोई भी मां के पेट से सीख कर नहीं आता यह दुनिया ही उसे सब कुछ सिखा कर पारंगत बना देती है।
मासूम सी मेहंदी दुनिया में आकर कुछ कुछ सीखने लगी थी पर अभी भी वह काफ़ी काफी नादान थी ।वह मेहंदी जो विद्यालय से आकर सर्वप्रथम गृह कार्य करती थी अब थोड़ी ढिलाई करने लगी थी। एक दिन डॉक्टर साहब के टोकने पर वह कह बैठी कि यहां तो मेरी नई-नई सहेलियां बन गई है इसलिए मैं उनके साथ खेलने में लगी रहती हूं। 6 साल की बच्ची की वह मासूम बात सब रिश्तेदारों को बड़ी हंसी हंसी बताई जाती थी, तब मेहंदी को एहसास हुआ कि कुछ बोलने से पहले सोचना पड़ता है नहीं तो परिहास बनता है ।यह एक छोटी सी बात मेहंदी को सोच समझ कर बोलने की कला सिखा गयी।
नई जगह आने के बाद नित्य कुछ नवीन घटित होता रहता है कभी कोई नई जगह देखने को मिलती है कभी नई तरह के लोगों से मिलने को मिलता है ।विद्यालय तो नया था ही नई सखियां बन गई थी 6 साल की बच्चे के लिए यह सब सामंजस्य करने बहुत ही सरल थे ,क्योंकि बच्चे कच्ची मिट्टी की भांति शीघ्र ही नए परिवेश में ढल जाते हैं मेहंदी में भी नये विद्यालय नई सखियों के मध्य तारतम्य बैठा लिया था। मेहंदी के पापा को बच्चों को घुमाने फिराने का भी खूब शौक था। दशहरे का मौका आया रावण का पुतला लगा ,खूब आतिशबाजी की तैयारियां थी,उस दिन दशहरे के मुख्य अतिथि थे जिले के सांसद और उस रियासत के नवाब साहब। जब भी कोई प्रमुख व्यक्ति ऐसे मौकों पर आता है तो डॉक्टर की ड्यूटी लगती है डॉक्टर साहब की भी ड्यूटी लगी थी बच्चे भी पहुंच गए मेले में 6 साल की मेहंदी को एहसास ही नहीं था कि पापा ड्यूटी कर रहे हैं वह तो मेले का आनंद ले रही थी अपने भाइयों के साथ और आनंद लेने के बाद पापा के पास पहुंच गई ।पापा ने भी मेहंदी को नवाब साहब से मिलाया उन से हाथ मिलाने को कहा नवाब साहब ने मेहंदी की तरफ हाथ बढ़ा दिया।मेहंदी ने सकुचाते हुए हाथ मिला लिया। उसके लिए यह कोई महत्व की बात नहीं थी कि वह नवाब हैं या सांसद हैं, वह तो पापा का ही कोई परिचित समझकर उनसे नमस्ते कर रही थी। जब मेहंदी बड़ी हुई तब उस एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी शख्सियत से हाथ मिला रखा है ।। कितना अच्छा होता है ना वह मासूम प्यारा भोला सा बचपन जहां ना कोई बड़ा होता है ना कोई छोटा होता है । माता पिता के निर्देशानुसार ही हमारा परिचय विभिन्न क्षेत्रों से होता है जिसे सब अपनी बुद्धिअनुसार समझते हैं। समय के नए-नए आयाम मेहंदी की आंखों के आगे खुल रहे थे और वह सीख रही थी सब कुछ नया ऐसे ही जीवन धारा चलती रहती है। कोई भी मां के पेट से सीख कर नहीं आता यह दुनिया ही उसे सब कुछ सिखा कर पारंगत बना देती है।
मासूम सी मेहंदी दुनिया में आकर कुछ कुछ सीखने लगी थी पर अभी भी वह काफ़ी काफी नादान थी ।वह मेहंदी जो विद्यालय से आकर सर्वप्रथम गृह कार्य करती थी अब थोड़ी ढिलाई करने लगी थी। एक दिन डॉक्टर साहब के टोकने पर वह कह बैठी कि यहां तो मेरी नई-नई सहेलियां बन गई है इसलिए मैं उनके साथ खेलने में लगी रहती हूं। 6 साल की बच्ची की वह मासूम बात सब रिश्तेदारों को बड़ी हंसी हंसी बताई जाती थी, तब मेहंदी को एहसास हुआ कि कुछ बोलने से पहले सोचना पड़ता है नहीं तो परिहास बनता है ।यह एक छोटी सी बात मेहंदी को सोच समझ कर बोलने की कला सिखा गयी।