जड़ों से पुनः जुड़ना(२८)
डॉ साहब का अपने गृह जनपद में स्थानांतरण हो गया ।पुनः अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ। वहां जेल परिसर में मिला खूब बड़ा सा मकान उनका निवास बना उस मकान के चारों और खूब सारी खुली जमीन थी खूब चौड़ी चौड़ी दीवारें थी जिस पर सब बच्चे पैरों पैरों भी चल लेते थे । किराये के घर में रह कर आने के बाद बड़े से सरकारी मकान में रहना सबको बहुत सुखद लग रहा था। मकान के पास खाली जमीन में उगाये भांति भांति के फूल और सब्जियां ।टमाटर, कद्दू ,लौकी, तुरई, प्याज व करेला भिन्न-भिन्न तरह की सब्जियां उगाई गई इसके अलावा सर्दियों के मौसम में पालक मेथी हरा धनिया प्रचुर मात्रा में उगाया गया। रोज मम्मी खूब सारे अंडे उबाल कर रख देती मेहंदी खेलते खेलते मम्मी के पास आकर कहती मम्मी एक आलू दे दो और मम्मी एक उबला हुआ अंडा दे देतीं मेहंदी उसका पीला भाग खाती थी और सफेद हिस्सा कौवे को खाने के लिए फेंक देती। मेहंदी का छोटा भाई भी अब अपने पैरों पर धीरे धीरे चलने लगा था ,कभी कभी वह दूध पीने में आनाकानी करता था तो वह तीनों भाई बहन उसे घेरकर खड़े हो जाते और उसके मुंह में शीशी लगाकर फिल्मी गाने गाना शुरू कर देते थे और फिल्मी गानों की तर्ज वह जल्दी जल्दी जल्दी मुँह चला कर सारी शीशी खाली कर देता था अपना यह छोटा सा प्रयास भाई बहनों को बड़ी खुशी देता था ।तरह तरह की शरारतें करते हुए उनका बचपन अत्यंत सुखद और आराम से गुजरने लगा कई बार तीनों बच्चे पापा के साथ जेल के अंदर कैदियों को देखने भी गए वहां बड़े-बड़े खूंखार कैदी थे।
उनकी लाल लाल आंखें देखकर मेहंदी को तो डर भी लगने लगा लेकिन कुछ कैदी बिल्कुल ही सामान्य इंसानों की तरह थे। उनको खाना बनाने का काम सौंपा गया था, मेहंदी ने देखा एक जगह खूब सारी रोटियां एक साथ बनते हुए खूब बड़ी सी जगह पर आटा बेला जाता था और उसे गोल-गोल काट लिया जाता था फिर सेकते थे। खाने के लिए कैदियों की लाइन लगती थी।उनके द्वारा कई अन्य तरह के कार्य यथा खेतीबाड़ी आदि भी कराये जाते ।बड़े चाव से ये सब देखते हुये जीवन में आने वाली परिस्थितियों के बारे में काफी कुछ सीखने और जानने को मिला अपने गृह जनपद में अपने दादा दादी का घर और चाचा चाची से मिलना रिश्तो से जुड़ा गया।
कुछ कैदी डॉ साहब के घर के पास की जमीन की निराई गुड़ाई करने भी आ जाते थे तथा मम्मी के द्वारा बनी चाय पीकर ही जाते थे। जेल का सायरन बजने पर सिपाही उन्हें चलने के लिए कहता था तो वह डॉक्टर साहिबा के हाथ की चाय पिए बिना जाने को तैयार ही नहीं होते थे,कहते थे तुम तो गुड़ की चाय पिलाओगे यहाँ चीनी की चाय मिलती है ।
मम्मी भी उनसे खूब बातें कर लेती थी। एक बार एक कैदी से उन्होंने पूछा तुम सजा मिलने से पहले क्या काम करते थे कैदी बोला मैं बाल काटता था तो मम्मी बोली कि अच्छा पहले सर की घास काटते थे अब जमीन की घास काट रहे हो। इसी तरह के हास परिहास के मध्य खूब खुशी खुशी उनके काम करते थे ।
मेहंदी को आश्चर्य भी होता था कि मम्मी इतनी सहजता से इन अपराधी लोगों से कैसे बात कर पाती हैं पर गांधी जी ने कहा है "घृणा पाप से करो पापी से नहीं " मेहंदी की मम्मी इस बात का बखूबी ध्यान रखती थीं।
डॉ साहब का अपने गृह जनपद में स्थानांतरण हो गया ।पुनः अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ। वहां जेल परिसर में मिला खूब बड़ा सा मकान उनका निवास बना उस मकान के चारों और खूब सारी खुली जमीन थी खूब चौड़ी चौड़ी दीवारें थी जिस पर सब बच्चे पैरों पैरों भी चल लेते थे । किराये के घर में रह कर आने के बाद बड़े से सरकारी मकान में रहना सबको बहुत सुखद लग रहा था। मकान के पास खाली जमीन में उगाये भांति भांति के फूल और सब्जियां ।टमाटर, कद्दू ,लौकी, तुरई, प्याज व करेला भिन्न-भिन्न तरह की सब्जियां उगाई गई इसके अलावा सर्दियों के मौसम में पालक मेथी हरा धनिया प्रचुर मात्रा में उगाया गया। रोज मम्मी खूब सारे अंडे उबाल कर रख देती मेहंदी खेलते खेलते मम्मी के पास आकर कहती मम्मी एक आलू दे दो और मम्मी एक उबला हुआ अंडा दे देतीं मेहंदी उसका पीला भाग खाती थी और सफेद हिस्सा कौवे को खाने के लिए फेंक देती। मेहंदी का छोटा भाई भी अब अपने पैरों पर धीरे धीरे चलने लगा था ,कभी कभी वह दूध पीने में आनाकानी करता था तो वह तीनों भाई बहन उसे घेरकर खड़े हो जाते और उसके मुंह में शीशी लगाकर फिल्मी गाने गाना शुरू कर देते थे और फिल्मी गानों की तर्ज वह जल्दी जल्दी जल्दी मुँह चला कर सारी शीशी खाली कर देता था अपना यह छोटा सा प्रयास भाई बहनों को बड़ी खुशी देता था ।तरह तरह की शरारतें करते हुए उनका बचपन अत्यंत सुखद और आराम से गुजरने लगा कई बार तीनों बच्चे पापा के साथ जेल के अंदर कैदियों को देखने भी गए वहां बड़े-बड़े खूंखार कैदी थे।
उनकी लाल लाल आंखें देखकर मेहंदी को तो डर भी लगने लगा लेकिन कुछ कैदी बिल्कुल ही सामान्य इंसानों की तरह थे। उनको खाना बनाने का काम सौंपा गया था, मेहंदी ने देखा एक जगह खूब सारी रोटियां एक साथ बनते हुए खूब बड़ी सी जगह पर आटा बेला जाता था और उसे गोल-गोल काट लिया जाता था फिर सेकते थे। खाने के लिए कैदियों की लाइन लगती थी।उनके द्वारा कई अन्य तरह के कार्य यथा खेतीबाड़ी आदि भी कराये जाते ।बड़े चाव से ये सब देखते हुये जीवन में आने वाली परिस्थितियों के बारे में काफी कुछ सीखने और जानने को मिला अपने गृह जनपद में अपने दादा दादी का घर और चाचा चाची से मिलना रिश्तो से जुड़ा गया।
कुछ कैदी डॉ साहब के घर के पास की जमीन की निराई गुड़ाई करने भी आ जाते थे तथा मम्मी के द्वारा बनी चाय पीकर ही जाते थे। जेल का सायरन बजने पर सिपाही उन्हें चलने के लिए कहता था तो वह डॉक्टर साहिबा के हाथ की चाय पिए बिना जाने को तैयार ही नहीं होते थे,कहते थे तुम तो गुड़ की चाय पिलाओगे यहाँ चीनी की चाय मिलती है ।
मम्मी भी उनसे खूब बातें कर लेती थी। एक बार एक कैदी से उन्होंने पूछा तुम सजा मिलने से पहले क्या काम करते थे कैदी बोला मैं बाल काटता था तो मम्मी बोली कि अच्छा पहले सर की घास काटते थे अब जमीन की घास काट रहे हो। इसी तरह के हास परिहास के मध्य खूब खुशी खुशी उनके काम करते थे ।
मेहंदी को आश्चर्य भी होता था कि मम्मी इतनी सहजता से इन अपराधी लोगों से कैसे बात कर पाती हैं पर गांधी जी ने कहा है "घृणा पाप से करो पापी से नहीं " मेहंदी की मम्मी इस बात का बखूबी ध्यान रखती थीं।