Thursday, 30 August 2018

यादों के झरोखों में पहला विवाह उत्सव (२४)

यादों के झरोखों में पहला विवाह उत्सव (२४)
   भारत में शादियां व्यक्ति के संग ही उसके पूरे समाज के लिए भी अत्यधिक हर्षोउल्लास का विषय होता है, आखिरकार जीवन मे एक ही बार शादी होती है (अमूमन)तब तो धूमधाम भी मचनी ही चाहिये और जब आर्थिक स्थिति मजबूत हो तब तो भारतीय शादियों के कहने ही क्या!
   मेहंदी ने होश सम्भालने के बाद पहली बार इतनी भीड़ भाड़ ,तड़क भड़क, शोर शराबा, तैयारियाँ देखी थीं। वो भी अपने मामा की शादी में जाने के लिए उत्साहित थी। फ्रॉक या स्कर्ट पहनने वाली मेहंदी के लिए उसकी मामी (जिनकी शादी थी उनकी भाभी) ने हल्के हरे रंग का कुर्ता और काली सलवार व काले दुपट्टे का परिधान स्वयं ही सिला था जिसे पहन वो फूली ना समा रही थी।उसके रिश्ते के भाई बहन उसे चिढ़ाने लगे पंजाबन पंजाबन ,पर वो नई तरह के परिधान पहन कर ही मुग्ध थी। उस दिन मानव मन की ये गुत्थी भी समझ आई कि किसी को चिढ़ाने में आनन्द भी तभी तक आता है जब तक वो चिढ़ता है, जहाँ कोई असर नहीं होता वहाँ से ध्यान हट जाता है। अब बच्चा पार्टी का ध्यान आकर्षित हुआ घोड़ी पर।
   सबने जिद पकड़ ली हम भी मामा/ चाचा के संग घोड़ी पर बैठेंगें । घोड़ी एक बच्चों की संख्या भरपूर ,नानाजी (जिन्हें सब लालाजी कहते थे) ने समस्या का समाधान किया कि दो घोड़ी मंगवाई जायेंगी । दो घोड़ी आयी, बड़े भैया बने सहबाला (घुड़चढ़ी की परंपरा शादी में सबसे रोमांचक रस्म होती है। इसमें पहले दूल्हे को घर के बड़े तिलक कर अपना आशीर्वाद देते हैं। भाभियां काजल लगाकर नजर न लगने की कामना करती हैं। घोड़ी को चने की दाल खिलाकर घोड़ीवाले को नेग दिया जाता है। लगाम पकड़ने पर फूफा और दामादों को दूल्हे के पिता नेग देते हैं। घुड़चढ़ी के समय ढोल-ताशे बजते हैं। दूल्हे संग सहबाला बैठाया जाता है। अग्रवाल समाज में छतर की परंपरा भी रही है। इसमें कोई चांदी का तो कई चांदी के तारों का छतर इस्तेमाल करता है। घुड़चढ़ी के बाद बहनें या बुआ दूल्हे की आरती उतारती हैं और बहनोई सेहरा और कमरबंध पहनाता है, जिसका उन्हें नेग दिया जाता है। मां लड्डू खिला कर विदा करती है। घुड़चढ़ी मन्दिर जाती है वहां से पूजन के पश्चात बारात रवानगी हो जाती है, घुड़चढ़ी के बाद दूल्हा दुल्हन लेकर ही पुनः घर आता है) 
     पूरी सजधन नाच गानों के साथ बारात पहुँची, सभी रस्मो के संग दुल्हन का आगमन हुआ। मेहंदी ने पहली बार किसी को दुल्हन बना देखा था वो तो अपनी मामी को देखती ही रह गयी, उसकी निगाहें टिकी ही रह गईं दुल्हन के रूप पर।विदाई के बाद सब दुल्हन संग ननिहाल वापस  आ गए वहां सभी महिलायें दुल्हन को घेर कर बैठीं थीं ,मेहंदी एकटक दुल्हन को निहार रही थी तभी किसी ने दुल्हन से कहा देखो तुम्हारी भांजी तुम्हें देखे ही जा रही है , मामी ने धीरे से मेहंदी का चेहरा थाम कर  कहा...अरे...! मेहंदी को तो जैसे सारे जहान की खुशियां मिल गयीं ....वो इतनी खुश थी जैसे किसी परिकथा की परी ने उसको स्पर्श किया हो।