पुनर्जीवित
मचलती तो थी प्रत्येक वर्ष सावन की रिमझिम बौछारों में
किन्तु ये शीतलता,ये सौंधी सुगन्ध,ये इन्द्रधनुष तब हुये....
जब हम तुम बादल हुये
ढूँढती तो थी गुमनाम खुशियां ज़िन्दगी के अंजान सफ़र में
किन्तु ये बेक़रार राहें,ये रंगीन नज़ारे,ये रोमांचक पड़ाव तब हुये .....
जब हम तुम हमराही हुये
तराशती तो थी स्वयं को मुग्धांत मूरत की सूरत में
किन्तु ये स्निग्ध आकृति,ये स्वच्छन्द मन,ये पुनर्जीवित तब हुये.....
जब हम तुम शिल्पकार हुये
मीनाक्षी मेहंदी
मचलती तो थी प्रत्येक वर्ष सावन की रिमझिम बौछारों में
किन्तु ये शीतलता,ये सौंधी सुगन्ध,ये इन्द्रधनुष तब हुये....
जब हम तुम बादल हुये
ढूँढती तो थी गुमनाम खुशियां ज़िन्दगी के अंजान सफ़र में
किन्तु ये बेक़रार राहें,ये रंगीन नज़ारे,ये रोमांचक पड़ाव तब हुये .....
जब हम तुम हमराही हुये
तराशती तो थी स्वयं को मुग्धांत मूरत की सूरत में
किन्तु ये स्निग्ध आकृति,ये स्वच्छन्द मन,ये पुनर्जीवित तब हुये.....
जब हम तुम शिल्पकार हुये
मीनाक्षी मेहंदी